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जब यूपी में एक ही समय में बन गए थे दो मुख्यमंत्री, कल्याण सिंह ने ऐसे बचाई थी अपनी कुर्सी

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Published : Aug 21, 2021, 10:36 PM IST

कल्याण सिंह
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यूपी का सबसे बड़ा सियासी ड्रामा, जिसके क्लाइमेक्स में कल्याण सिंह बने हीरो. ये किस्सा साल 1998 का है, जब यूपी में एक साथ दो नेता मुख्यमंत्री थे. आइए जानते हैं क्या था पूरा वाकया.

लखनऊ: किसी राज्य में एक साथ दो मुख्यमंत्री हो सकते हैं. अगर आपसे ये सवाल पूछा जाए तो आप कहेंगे कि नहीं. क्योंकि संवैधानिक रूप से भी ऐसा नहीं हो सकता है. लेकिन, उत्तर प्रदेश में एक बार ऐसा भी हुआ है, जब एक समय में दो लोग सूबे के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन थे. इसमें एक थे कल्याण सिंह और दूसरे जगदंबिका पाल. ये वही जगदंबिका पाल हैं जो वर्तमान में यूपी की डुमरियागंज सीट से बीजेपी के सांसद हैं.

उत्तर पद्रेश
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ये वाकिया 23 साल पहले, साल 1998 का है. देश में 12वीं लोकसभा के लिए चुनाव होने रहे थे और सभी पार्टियां चुनाव प्रचार में व्यस्त थीं. उत्तर प्रदेश की कई सीटों पर मतदान हो चुनाव था और कई सीटों पर मतदान होना बाकी था. यूं तो लोकसभा चुनाव के बाद फैसला होना था कि दिल्ली की गद्दी पर कौन बैठेगा.

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लेकिन, लखनऊ में एक अलग ही सियासी खेल चल रहा था. बात 21 फरवरी 1998 की है, इस दिन तत्काली सीएम कल्याण सिंह गोरखपुर में चुनाव प्रचार कर रहे थे और बीजेपी के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष राजनाथ सिंह लखनऊ में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर लोकसभा चुनाव में पार्टी की जीत का दावा कर रहे थे. लेकिन, इस बीच राजभवन में अलग ही सियासी खेल चल रहा था.

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तत्कालीन बसपा उपाध्यक्ष मायावती बीएसपी विधायकों, अजीत सिंह की भारतीय किसान कामगार पार्टी के विधायकों, जनता दल के विधायकों और कल्याण सिंह सरकार को समर्थन कर रहे लोकतांत्रिक कांग्रेस के विधायकों के साथ राजभवन पहुंचीं. राजभवन पहुंचने के बाद मायावती ने यूपी के तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी के सामने लोकतांत्रिक कांग्रेस के नेता जगदंबिका पाल को आगे करते हुए कहा कि, इन्हें यहां मौजूद सभी दलों के विधायकों का समर्थन प्राप्त है.

इसलिए आप कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त कर इन्हें मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाइए. इसके बाद थोड़ी देर बाद मुलायम सिंह यादव ने बयान जारी कर कहा कि, उनकी पार्टी भी जगदंबिका पाल का समर्थन करती है. मुलायम के ऐलान के कुछ ही देर बाद समाजवादी पार्टी की तरफ से भी पाल के समर्थन की चिट्ठी राजभवन पहुंच गई.

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इस बात की जानकारी जैसे ही कल्याण सिंह को हुई वे आनन-फानन में गोरखपुर से सीधा राजभवन पहुंचे और राज्यपाल रोमेश भंडारी से मुलाकात कर बहुत सिद्ध करने का समय मांगा. कल्याण सिंह ने बोमई केस का हवाला देते हुए कहा कि बहुमत का फैसला सिर्फ सदन में हो सकता है, लेकिन राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह की मांग को खारिज दिया.

इसके बाद रात सवा 10 बजे के करीब राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त कर दिया. जिसके कल्याण सिंह सरकार में परिवहन मंत्री रहे जगदंबिका पाल को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी गई. जगदंबिका पाल साथ चार और मंत्रियों नरेश अग्रवाल, बच्चा पाठक, राजराम पांडे और हरिशंकर तिवारी को भी मंत्री बनाया गया. लोकतांत्रिक कांग्रेस के अध्यक्ष और कल्याण सिंह सरकार में बिजली मंत्री रहे नरेश अग्रवाल को उप-मुख्यमंत्री बनाया गया.

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22 फरवरी को लखनऊ सहित यूपी की कई लोकसभा सीटों पर वोटिंग हुई. लखनऊ लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने यहां अपना वोट डाला. इसके तुरंत बाद वे स्टेट गेस्ट हाउस में राज्यपाल रोमेश भंडारी के खिलाफ धरने पर बैठ गए. उधर तत्कालीन राष्ट्रपति के.आर. नारायणन ने उस समय प्रधानमंत्री रहे इंद्रकुमार गुजराल को पत्र लिखकर लखनऊ में राजनीतिक घटना क्रम और उसमें राज्यपाल रोमेश भंडारी की भूमिका पर असंतोष जाहिर किया.

उधर, कल्याण सिंह सरकार में मंत्री रहे नरेंद्र सिंह गौड़ इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर राज्यपाल रोमेश भंडारी के फैसले को अवसंवैधानिक कल्याण सिंह सरकार को बहाल करने की मांग की, जिसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 23 फरवरी को जगदंबिका पाल की सरकार को अवैध करार देते हुए, कल्याण सिंह सरकार को बहाल करने का आदेश दिया. हाईकोर्ट के फैसले के बाद अटल बिहारी वाजपेयी अपना अनशन खत्म कर दिया.

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इसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद जगदंबिका पाल ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. जिसके बाद 24 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने जगदंबिका पाल की याचिका पर सुनवाई करते विधानसभा में कंपोजिट फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दिया. कंपोजिट फ्लोर टेस्ट यानी कि दोनों मुख्यमंत्री कल्याण सिंह और जगदंबिका पाल एक साथ विश्वास प्रस्ताव रखेंगे और दोनों विश्वास प्रताव पर वोटिंग होगी. इस वोटिंग में जिसे ज्यादा विधायकों का समर्थन मिलेगा, उसे वोटिंग का नतीजा घोषित होने के समय से मुख्यमंत्री मान लिया जाएगा.

इसके बाद 25 फरवरी 1998 को यूपी विधानसभा में कंपोजिट फ्लोर टेस्ट हुआ. इस दौरान सबसे रोचक विधानसभा का सीटिंग अरेजमेंट था. विधानसभा अध्यक्ष केसरीनाथ त्रिपाठी के दोनों तरफ दो कुर्सियां लगाई गईं. जिसमें से एक कुर्सी पर कल्याण सिंह और दूसरी पर जगदंबिका पाल बैठे. इसके बाद दोनों ने अपना-अपना विश्वास प्रस्ताव पेश किया, जिस पर वोटिंग हुई.

सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार वोटिंग के दौरान सदन में 16 कैमरे लगवाए गए थे, जिनकी निगरानी में वोटिंग की पूरी प्रक्रिया सम्पन्न हुई. जिसमें 425 सीटों वाली विधानसभा (उस समय उत्तर प्रदेश संयुक्त हुआ करता था और यूपी और उत्तराखंड अलग नहीं हुए थे) में से कल्याण सिंह को 225 विधायकों का समर्थन मिला, जबकि जगदंबिका पाल को 196 वोट मिले. उस समय विधानसभा की कुछ सीटें खाली थीं. ऐसे में कल्याण सिंह इस कंपोजिट फ्लोर टेस्ट में जीत गए और मुख्यमंत्री पद पर जगदंबिका पाल की दावेदारी खत्म हो गई.

उधर, फ्लोर टेस्ट के बाद बसपा ने अपने कुछ विधायकों को गलत तरीके से तोड़े जाने का आरोप लगाते हुए उनके वोट रद्द करने की मांग की. जिसके बाद विधानसभा स्पीकर केसरी नाथ त्रिपाठी ने 12 विधायकों के वोट रद्द कर दिए. लेकिन, फिर भी कल्याण सिंह को 213 विधायकों का समर्थन प्राप्त था. इस प्रकार कोर्ट के दखल के बाद 5 दिनों तक चले इस सियासी ड्रामे का अंत हो गया.

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