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हमारे समाज के साथ समस्या यह है कि हम दूसरों की बात नहीं सुन रहे, केवल अपनी सुन रहे: सीजेआई

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By PTI

Published : Dec 9, 2023, 7:50 PM IST

Chief Justice of India D Y Chandrachud
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़

पुणे में सिम्बायोसिस इंटरनेशनल विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हमारे समाज के साथ समस्या यह है कि हम दूसरों की बता नहीं सुन रहे, सिर्फ अपनी ही बातें सुन रहे हैं. उन्होंने कहा कि दूसरों को सुनने की शक्ति जीवन के हर क्षेत्र में जरूरी है. पढ़िए पूरी खबर... Chief Justice of India D Y Chandrachud, Symbiosis International University in Pune

मुंबई : प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को नागरिकों से दूसरों की बात सुनने का धैर्य रखने का आग्रह करते हुए कहा कि 'जो हम सुनना चाहते हैं वहीं सुनने की आदत' को विराम देना हमे अपने आसपास की दुनिया के बारे में नई समझ विकसित करने का अवसर प्रदान करता है.

प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) चंद्रचूड़ पुणे में सिम्बायोसिस इंटरनेशनल (डीम्ड) विश्वविद्यालय के 20वें दीक्षांत समारोह में बोल रहे थे. उन्होंने कहा, 'दूसरों को सुनने की शक्ति जीवन के हर क्षेत्र में आवश्यक है. दूसरों को वह स्थान प्रदान करना अत्यधिक सुखद होता है. हमारे समाज के साथ समस्या यह है कि हम दूसरों की बात नहीं सुन रहे हैं... हम केवल अपनी ही सुन रहे हैं.'

सीजेआई ने कहा कि सुनने का धैर्य होने से व्यक्ति यह स्वीकार करता है कि उसके पास सभी सही उत्तर नहीं हो सकते, लेकिन वह उन्हें तलाशने और खोजने के लिए तैयार है. उन्होंने यह भी कहा कि 'जो हम सुनना चाहते हैं वहीं सुनने की आदत' को विराम देना हमे अपने आसपास की दुनिया के बारे में नई समझ विकसित करने का अवसर प्रदान करता है. उन्होंने कहा, 'जीवन का हमें सिखाने का एक अनोखा तरीका होता है. विनम्रता, साहस और ईमानदारी को इस यात्रा में अपना साथी बनाएं.'

सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि आम गलत धारणा के विपरीत, ताकत क्रोध या हिंसा या किसी के व्यक्तिगत स्थान और पेशेवर जीवन में व्यक्ति के प्रति असम्मानजनक होने से नहीं प्रदर्शित की जाती. उन्होंने कहा, 'लोगों की असली बुद्धिमत्ता और ताकत जीवन की कई प्रतिकूलताओं का सामना करने और विनम्रता एवं अनुग्रह के साथ अपने आसपास के लोगों को मानवीय बनाने की क्षमता को बरकरार रखने में है.'

उन्होंने कहा कि अधिकांश लोग समृद्ध जीवन के लिए प्रयासरत हैं और इसमें कुछ भी गलत नहीं है, प्रक्रिया मूल्य आधारित होनी चाहिए और सिद्धांतों और मूल्यों पर कोई समझौता नहीं होना चाहिए. सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, 'सफलता को न केवल लोकप्रियता से मापा जाता है, बल्कि उच्च उद्देश्य के प्रति प्रतिबद्धता से भी मापा जाता है. लोगों को खुद के प्रति सहृदय होना चाहिए और स्वयं के अस्तित्व पर कठोर नहीं होना चाहिए.'

सीजेआई ने कहा कि उनकी पीढ़ी के लोग जब छोटे थे तो उन्हें सिखाया जाता था कि बहुत सारे सवाल न पूछें, लेकिन अब यह बदल गया है और युवा अब सवाल पूछने और अपने अंतर्ज्ञान को शांत करने से घबराते नहीं हैं. सीजेआई ने कहा कि उन्होंने हाल ही में एक इंस्टाग्राम रील देखी जिसमें एक युवती अपने आवासीय क्षेत्र में सड़कों की खराब स्थिति पर चिंता जता रही है. उन्होंने कहा, 'जैसे ही मैंने वह रील देखी, मेरा मन वर्ष 1848 में चला गया जब यहां पुणे में लड़कियों का पहला स्कूल खोला गया था. श्रेय सावित्रीबाई फुले को जाता है जिन्होंने हिंसक पितृसत्तात्मक प्रवृत्तियों के बावजूद शिक्षा को प्रोत्साहित किया. जब सावित्रीबाई फुले स्कूल जाती थीं, तो वह एक अतिरिक्त साड़ी लेकर जाती थीं क्योंकि ग्रामीण उन पर कचरा फेंकते थे.'

उन्होंने कहा कि लोगों को कभी भी विचारशीलता को रोकना नहीं चाहिए. उन्होंने कहा कि उनमें दूसरों की बात सुनने की क्षमता होनी चाहिए और जब वे सही या गलत हों तो उन्हें स्वीकार करने की विनम्रता होनी चाहिए. उन्होंने कहा, 'एक न्यायाधीश वादियों की परेशानियों से सबसे अधिक सीखता है, एक चिकित्सक अपने अनुभव से सबसे अधिक सीखता है, एक माता-पिता अपने बच्चों की शिकायतें सुनकर सबसे अधिक सीखते हैं, एक शिक्षक छात्रों के सवालों से सबसे अधिक सीखता है और आप (छात्र) जीवन में बड़े होने पर लोगों द्वारा आपसे सवाल पूछने से अधिक सीखेंगे.'

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