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परीक्षा पे चर्चा का 5वां संस्करण : पीएम मोदी ने छात्रों को दिया सफलता का मंत्र

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Published : Apr 1, 2022, 11:04 AM IST

Updated : Apr 2, 2022, 9:06 AM IST

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पीएम मोदी ने परीक्षा पर चर्चा कार्यक्रम में कहा, ये मेरा बड़ा प्रिय कार्यक्रम है, लेकिन कोरोना के कारण बीच में मैं आप जैसे साथियों से मिल नहीं पाया. मेरे लिए आज का कार्यक्रम विशेष खुशी का है, क्योंकि एक लंबे अंतराल के बाद आप सबसे मिलने का मौका मिल रहा है. त्योहारों के बीच में exam भी होते हैं. इस वजह से त्योहारों का मजा नहीं ले पाते, लेकिन अगर exam को ही त्योहार बना दें, तो उसमें कईं रंग भर जाते हैं.

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'परीक्षा पे चर्चा' कार्यक्रम के जरिए छात्रों से संवाद किया. ये कार्यक्रम आज दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में संपन्न हुआ. पीएम ने छात्रों को बताया कि किस तरह से परीक्षा के दबाव को कम किया जाए. परीक्षा पे चर्चा का ये पांचवां एडिशन था. इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए 15 लाख से अधिक छात्रों ने रजिस्ट्रेशन कराया था.

पीएम मोदी ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा, 'मन में तय कर लीजिए कि परीक्षा जीवन का सहज हिस्सा है. हमारी विकास यात्रा के ये छोटे-छोटे पड़ाव हैं. इस पड़ाव से पहले भी हम गुजर चुके हैं. पहले भी हम कई बार परीक्षा दे चुके हैं. जब ये विश्वास पैदा हो जाता है तो आने वाले एक्जाम के लिए ये अनुभव आपकी ताकत बन जाता हैं. अपने इन अनुभवों को, जिस प्रक्रिया से आप गुजरे हैं, उसको आप कतई छोटा मत मानिए. दूसरा आपके मन में जो पैनिक होता है, उसके लिए मेरा आपसे आग्रह है कि आप किसी दबाव में मत रहिए. जितनी सहज दिनचर्या आपकी रहती है, उसी सहज दिनचर्या में आप अपने आने वाले परीक्षा के समय को भी बिताइए. जब आप ऑनलाइन पढ़ाई करते हैं तो क्या आप सच में पढ़ाई करते हैं, या reel देखते हैं? दोष ऑनलाइन या ऑफलाइन का नहीं है. क्लासरूम में भी कई बार आपका शरीर क्लासरूम में होगा, आपकी आंखें टीचर की तरफ होंगी, लेकिन कान में एक भी बात नहीं जाती होगी, क्योंकि आपका दिमाग कहीं और होगा. मन कहीं और होगा तो सुनना ही बंद हो जाता है. जो चीजें ऑफलाइन होती हैं, वही ऑनलाइन भी होती हैं. इसका मतलब है कि माध्यम समस्या नहीं है, मन समस्या है. माध्यम ऑनलाइन हो या ऑफलाइन, अगर मन पूरा उसमें डूबा हुआ है, तो आपके लिए ऑनलाइन या ऑफलाइन का कोई फर्क नहीं पड़ेगा. जब हम डिजिटल गैजेट के माध्यम से बड़ी आसानी से और व्यापक रूप से चीजों को प्राप्त कर सकते हैं. हमें इसे एक opportunity मानना चाहिए, न कि समस्या.

पीएम ने आगे कहा, दिन भर में कुछ पल ऐसे निकालिए, जब आप ऑनलाइन भी नहीं होंगे, ऑफलाइन भी नहीं होंगे, बल्कि इनरलाइन में होंगे. तनाव खत्म हो जाएगा, आप अपनी ऊर्जा को अनुभव करेंगे. अगर इन चीजों को कर लेते हैं, तो मुझे नहीं लगता कि ये सारे संकट आपके लिए कोई कठिनाई पैदा कर सकते हैं. 2014 से ही हम नई नेशनल एजुकेशन पॉलिसी के काम पर लगे थे. हिंदुस्तान के हर कोने में इस काम के लिए इस विषय पर brainstorming सेशन हुआ. देश के अच्छे विद्वान, जो लोग साइंस और टेक्नोलॉजी से जुड़े थे, उनके नेतृत्व में इसकी चर्चा हुई. इसमें लाखों लोग शामिल हैं. इसे देश के नागरिकों, विद्यार्थियों, अध्यापकों ने बनाया है और देश के भविष्य के लिए बनाया है. सरकार कुछ भी करे तो कहीं न कहीं से तो विरोध का स्वर उठता ही है. किन्तु मेरे लिए खुशी की बात है कि नेशनल एजुकेशन पॉलिसी का हिंदुस्तान के हर तबके में पुरजोर स्वागत हुआ है. इसलिए इस काम को करने वाले सभी लोग अभिनंदन के अधिकारी हैं. पहले हमारे यहां खेलकूद एक एक्स्ट्रा एक्टिविटी माना जाता था. लेकिन इस नेशनल एजुकेशनल पॉलिसी में उसे शिक्षा का हिस्सा बना दिया गया है. हमें 21वीं सदी के अनुकूल अपनी सारी व्यवस्थाओं और सारी नीतियों को ढालना चाहिए.

परीक्षा पर छात्रों से चर्चा में पीएम मोदी ने आगे बताया, अगर हम अपने आपको इन्वॉल्व नहीं करेंगे, तो हम ठहर जाएंगे और पिछड़ जाएंगे. सबसे पहले परिजनों से और शिक्षकों से ये कहना चाहूंगा कि आप अपने सपने, जिन्हें आप पूरा नहीं कर पाए, उन्हें आप बच्चों पर डालने का प्रयास न करें. हमारे बच्चों के विकास में ये सब बहुत चिंता का विषय है. हमें उन चीजों को स्वीकार करना है, जो हमारे भीतर सहज रूप से है. हर बच्चे की अपनी सामर्थ होती है. परिजनों, शिक्षकों के तराजू में वो फिट हो या न हो, लेकिन ईश्वर ने उसे किसी न किसी विशेष ताकत के साथ भेजा है.

पीएम ने कहा कि ये आपकी कमी है कि आप उसकी सामर्थ, उसके सपनों को समझ नहीं पा रहे हैं. इससे आपके बच्चों से दूरी भी बढ़ने लगती है. लेकिन अब बच्चा दिन भर क्या करता है, उसके लिए मां बाप के पास समय नहीं है. शिक्षक को केवल सिलेबस से लेना देना है कि मेरा काम हो गया, मैंने बहुत अच्छी तरह पढ़ाया. लेकिन बच्चे का मन कुछ और करता है. पुराने जमाने में शिक्षक का परिवार से संपर्क रहता था. परिवार अपने बच्चों के लिए क्या सोचते हैं उससे शिक्षक परिचित होते थे. शिक्षक क्या करते हैं, उससे परिजन परिचित होते थे. यानि शिक्षा चाहे स्कूल में चलती हो या घर में, हर कोई एक ही प्लेटफार्म पर होता था. जब तक हम बच्चे की शक्ति, सीमाएं, रुचि और उसकी अपेक्षा को बारीकी से जानने का प्रयास नहीं करते हैं, तो कहीं न कहीं वो लड़खड़ा जाता है. इसलिए मैं हर अभिभावक और शिक्षक को कहना चाहूंगा कि आप अपने मन की आशा, अपेक्षा के अनुसार अपने बच्चे पर बोझ बढ़ जाए, इससे बचने का प्रयास करें.

बता दें कि, केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने 'परीक्षा पे चर्चा' को 'व्यापक जन आंदोलन' बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा की. प्रधान ने निर्धारित कार्यक्रम से एक दिन पहले कई ट्वीट करके कहा कि मोदी की मैत्रीपूर्ण सलाह और परिवार के बुजुर्ग व्यक्ति की तरह मार्गदर्शन ने इस कार्यक्रम को एक जन आंदोलन में बदल दिया है.

Last Updated :Apr 2, 2022, 9:06 AM IST
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