ETV Bharat / bharat

Mini Brazil in India: इस कोच ने आदिवासी गांव को बनाया 'मिनी ब्राजील', PM मोदी ने 'मन की बात' में बांधे तारीफों के पुल

author img

By

Published : Jul 31, 2023, 6:54 PM IST

Mini Brazil Of Madhya Pradesh: एमपी के शहडोल के उस आदिवासी नौजवान रईस खान के चर्चे देश भर में हैं, जिसने आदिवासी इलाके शहडोल में फुटबाल टीम खड़ी कर दी और कैसे उसने आदिवासियों को इस खेल से जोड़ा. आइए उस फुटबाल कोच से जानते हैं, जिसने विचारपुर गांव के आदिवासियों को फुटबाल का पेले बन जाने का सपना भर नहीं दिखाया, बल्कि मैदान भी दिया.

Mini Brazil in India
भारत के मिनी ब्राजील की खासियत

मिनी ब्राजील के हर दूसरे घर में फुटबॉल खिलाड़ी

शहडोल। मध्यप्रदेश के शहडोल जिला, आदिवासी बाहुल्य जिला है और इस जिले में आज भी कई गांव ऐसे हैं जो अपनी स्पेशलिटी की वजह से देश भर में नाम कमा रहे हैं. ऐसे ही शहडोल जिला मुख्यालय से लगा हुआ एक ऐसा ही आदिवासी बाहुल्य गांव है विचारपुर, जिसे आजकल लोग मिनी ब्राजील के नाम से भी जानते हैं, क्योंकि इस गांव के हर दूसरे घर में आपको फुटबॉल के नेशनल खिलाड़ी मिल जाएंगे. इस गांव की इसी खासियत की वजह से प्रधानमंत्री भी मन की बात में भी इनकी तारीफ कर चुके हैं, साथ ही फुटबॉल कोच रईस अहमद की भी प्रधानमंत्री ने तारीफ की है, जिसने इन खिलाड़ियों को निखारने में करीब ढाई दशक तक जमकर मेहनत की. ईटीवी भारत ने कोच रईस अहमद खान से की है खास बातचीत, जिसने आदिवसियों को सिखाई फुटबॉल की सुपरहिट किक.

सवाल: फुटबॉल ने आपको पूरे देश में सुर्खियों में ला दिया, कैसा महसूस कर रहे हैं?
जवाब: सबसे पहले तो मैं पीएम का बहुत आभारी हूं, शुक्रगुजार हूं, जिन्होंने हमारे छोटे से विचारपुर गांव(शहडोल) का नाम लिया. मेरा नाम लेकर तारीफ की, मैंने जो थोड़ा बहुत काम किया उसका श्रेय दिया. निश्चित ही हम लोगों के लिए ये बहुत सौभाग्य की बात है, 25 साल पहले मैंने इस विचारपुर गांव में शुरुआत की थी, मैं खुद भी एक नेशनल खिलाड़ी था.

Mini Brazil in India
आदिवासी गांव को बना मिनी ब्राजील

सवाल: आप विचारपुर तक कैसे पहुंचे? आप खुद भी एक नेशनल खिलाड़ी थे, इंटरनेशनल लेवल तक नहीं पहुंच पाए, क्या मन में ये कसक भी थी?
जवाब: नेशनल खिलाड़ी था, तो मुझे पता था कि यहां शुरुआत में दिक्कतें कहां आती हैं. मैंने जब कोलकाता से एनआईएस का कोर्स करके आया, तो मैंने उसमें फुटबॉल की बारीकियों को सीखा. मैं समझा कि कोच का कितना बड़ा महत्व होता है खिलाड़ी के लिए, बिना कोच अच्छे खिलाड़ी तैयार करना बहुत मुश्किल होता है, जब मैं ट्रेनिंग करके आया तो मैं शहडोल के ही रेलवे ग्राउंड में फुटबॉल सिखाना बच्चों को शुरू किया और तब मुझे पता चला कि विचारपुर गांव में अच्छे लड़के हैं, जो बेहतरीन फुटबॉल खेलते हैं और उनकी स्टेमिना, फिटनेस भी बहुत अच्छी है, फिजिकली स्ट्रांग हैं, उनमें दमखम तो दिखा, लेकिन वह चीज नहीं दिखी जो आज के दौर में खिलाड़ियों में चल रही है. फुटबॉल की टेक्निक स्किल, फिर मैंने सोचा कि इस गांव के बच्चों को अगर अच्छी ट्रेनिंग दी जाए, तो बच्चे बहुत आगे तक जा सकते हैं.

फिर मैंने छोटे बच्चों का वहां एक ग्रुप तैयार किया और पहले मैं रेलवे ग्राउंड में फुटबॉल सुबह सिखाता था और फिर 3 किलोमीटर दूर विचारपुर गांव जाता था. शाम को और उन बच्चों को सिखाता था, क्योंकि रेलवे ग्राउंड तक उन्हें आने में दिक्कत थी. मैंने उन बच्चों में टेक्निकल स्किल डेवलप करना शुरू किया, मुझे मालूम था कि अगर मैं यह चीज इन बच्चों में डेवलप कर देता हूं, तो इनमें इतना दम है कि ये आगे चलकर अच्छे खिलाड़ी बनेंगे, क्योंकि फुटबॉल इन में नेचुरल था, मुझे बस इन्हें टेक्निकल साउंड करना है.

football revolution of shahdol Village Vicharpur
फुटबाल कोच रईस अहमद की गांव को दी नई पहचान

सवाल: आदिवासी क्षेत्र में सबसे बड़ी समस्या आती है परिवार को समझाना कि बच्चों को फुटबॉल खेलने ग्राउंड भेजें, क्या आपको भी इस समस्या का सामना करना पड़ा?
जवाब: शुरुआत में इस तरह की समस्याएं तो झेलनी पड़ी, क्योंकि विचारपुर में लड़के, लड़कियां सभी फुटबॉल प्लेयर हैं. यहां पहले एक दो लड़कियां भी खेलने आती थीं, ज्यादातर पैरेंट्स लड़कियों को आने नहीं देते थे फिर मैं एक दिन जाकर पेरेंट्स से मिला, उनसे बात की और उन्हें समझाया कि आजकल खेल में भी करियर है. खेल से आपका नाम रोशन होगा, गांव का नाम रोशन होगा और बच्चों का नाम रोशन होगा, ये लड़कियां बहुत आगे तक जा सकती हैं. इसके बाद सारे तो नहीं मानें, लेकिन दो-तीन लोग मान गए.

सुजाता कुंडे, रजनी और यशोदा यह जो 2-3 लड़कियां थीं, ये आने लगीं और जो लड़कियां आ रहीं थीं उनके पैरेंट्स-भाई भी फुटबॉल प्लेयर थे, तो उन्हें समझाना आसान हुआ. फिर इन पर हमने काम करना शुरू किया और जब यह नेशनल लेवल तक पहुंच गए, नेशनल खेल कर आए तो फिर यहां मीडिया ने भी इन खिलाड़ियों को अच्छा मोटिवेट किया, जिसका बहुत फायदा मिला और इन्हें देखकर गांव की और लड़कियां आने लगीं. फिर फुटबॉल की टीम ही पूरी बन गई, काफी सारी बच्चियां वहां आने लग गई और उस दौर में मध्य प्रदेश की टीम से फर्स्ट इलेवन में हमारे विचारपुर से 8 से 9 लड़कियां मध्य प्रदेश की टीम से खेलती थीं, जो एक बड़ी अचीवमेंट थी.

इन खबरों को भी जरूर पढ़िए:

भारत के मिनी ब्राजील की खासियत: फुटबॉल कोच रईस अहमद ने गांव की खासियत बताते हुए कहा कि "इस गांव की खास बात ये भी है कि यहां से 40 से 45 बच्चों ने राष्ट्रीय स्तर का फुटबॉल खेला है, एक-एक घर से भाई-बहन यहां सब राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी हैं. एक लड़के का सिलेक्शन यहां से इंटरनेशनल लेवल के लिए भी भारतीय टीम में भी हुआ था, उसे श्रीलंका में खेलने जाना था, लेकिन उसका दुर्भाग्य था कि श्रीलंका में सुनामी आ गई थी जिसकी वजह से वह दौरा ही रद्द हो गया था और फिर वह नहीं खेल पाया था."

सवाल: एक दौर था जब यहां के खिलाड़ी हताश होने लगे थे, तब फुटबॉल क्रांति ने कैसे जान फूंकी?
जवाब: हमारे कमिश्नर राजीव शर्मा जी हैं, जब वो शहडोल आए तो उन्होंने देखा कि एक छोटे से गांव से फुटबॉल की इतनी प्रतिभाएं उभर कर सामने आ सकती हैं, तो ये तो पूरा संभाग ही आदिवासी अंचल है. उन्होंने देखा कि यहां तो गांवों में फुटबॉल की अपार संभावनाएं बन सकती हैं, फिर इसके बाद उन्होंने फुटबॉल क्रांति की संभाग में अलख जगानी शुरू की और फिर इसकी शुरुआत की गई, जिसमें उन्होंने 1000 ग्राम पंचायतों में फुटबाल क्लबों का संभाग में गठन किया.

इसमें करीब 700 क्लब सक्रिय होकर आज भी फुटबॉल ग्राउंड से जुड़े हुए हैं, ग्राउंड में खेल रहे हैं और इसके अलावा नगर पालिका क्षेत्र में भी क्लबों का गठन किया जा रहा है, जिसमें ढाई सौ क्लब गठित हो चुके हैं, और 90 से 95 फुटबॉल प्रतियोगिता भी संभाग, जिला और राज्य स्तर की हो चुकी हैं. इसमें जो ग्राम पंचायतों में टूर्नामेंट हो रही है, उसमें 60 से 70 टीम हिस्सा लेती हैं. ये बहुत बड़ी उपलब्धि है, जो उन्होंने फुटबॉल क्रांति का नाम दिया और इस पर जमजर मेहनत भी कर रहे हैं. खिलाड़ियों को प्रोत्साहित भी कर रहे हैं और अब उसके परिणाम भी आने शुरू हो चुके हैं.

सवाल: मन की बात में नाम आने के बाद गांव में कैसा माहौल था?
जवाब: सभी बच्चे काफी खुश थे, क्योंकि उनके गांव का नाम पूरे देश में लोग जानने लगे, खुद देश के प्रधानमंत्री ने उनके गांव की तारीफ की, पीएम ने उनके गांव का नाम लिया, लोगों में काफी उत्साह था.

Mini Brazil Of Madhya Pradesh
शहडोल का नाम फुटबॉल के चलते पूरे देश में सुर्खियों में

सवाल: तब से लेकर अब तक विचारपुर में कितना बदलाव आया?
जवाब: विचारपुर की खासियत है कि वहां जब बच्चा चलना सीखता है, तो वहां के पेरेंट्स उसे फुटबॉल मैदान में छोड़ जाते हैं और बच्चा सही से दौड़ना चलना फुटबॉल के साथ ही सीखता है. वहां अब यह एक कल्चर डेवलप हो चुका है और उसका फायदा भी मिल रहा है. खुद सोचिए जब कोई बच्चा फुटबाल के साथ ही अपनी जिंदगी की शुरुआत करेगा, तो फिर किस स्तर तक जाएगा. आगे चल के वहां बहुत अच्छे फुटबॉल प्लेयर निकलेंगे.

अभी तक तो मैं अकेले ही वहां फुटबॉल कोचिंग देता था, लेकिन अब मेरे ही स्टूडेंट जो कई सारे नेशनल खेले हुए हैं कमिश्नर के निर्देश के बाद रिलायंस फाउंडेशन के माध्यम से जो 12 से 24 राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी हैं, उन्हें ई लाइसेंस कोर्स कराया गया और अब वो भी कोच हो गए हैं. वह बच्चे अब ग्राउंड में जाकर और खिलाड़ियों को तैयार कर रहे हैं, गांव-गांव जाकर प्रैक्टिस करा रहे हैं. मैं उन्हें सिर्फ गाइड कर रहा हूं, थोड़ा बहुत मदद करता हूं और वह जाकर उन्हें सिखाते हैं. आने वाले समय में संभाग लेवल से ही कई अच्छे अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी निकल कर सामने आ सकते हैं.

विचारपुर में हर दूसरे घर में फुटबॉल के खिलाड़ी: गौरतलब है कि शहडोल जिले के विचारपुर गांव में हर दूसरे घर में फुटबॉल के नेशनल खिलाड़ी मिल जाएंगे और ऐसे खिलाड़ी मिलेंगे जो 1-2 नेशनल की बात तो अलग है, यहां कई खिलाड़ी 5 से 7 नेशनल अकेले ही खेल चुके हैं और यह हुआ है कोच रईस अहमद खान के 25 सालों के अथक मेहनत से. फुटबॉल के कोच रईस अहमद खान ढाई दशक से विचारपुर गांव से जुड़े हुए हैं, वहां के बच्चों को फुटबॉल सिखाते हैं और इसी का परिणाम है कि अब खुद पीएम मोदी ने इस विचारपुर गांव की और कोच रईस अहमद खान के अथक मेहनत की तारीफ मन की बात में की है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.