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EX RAW Chief AS Dulat's Interview : 'कश्मीर में पाकिस्तान का खेल खत्म, पर आतंकवाद अब भी मौजूद'

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Published : Aug 14, 2023, 7:35 PM IST

Ex RAW Chief A S Dulat
रॉ के पूर्व चीफ एएस दुलत

आईबी और रॉ के पूर्व चीफ एएस दुलत (Ex RAW Chief A S Dulat) का कहना है कि कश्मीर में अब पाकिस्तान का खेल खत्म हो चुका है. दुलत ने इस बात पर जोर दिया कि आज कश्मीरी मानते हैं कि इसमें पाकिस्तान की कोई भूमिका नहीं है. ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता सौरभ शर्मा से खास बातचीत में रॉ के पूर्व चीफ ने क्या कहा.

नई दिल्ली : आईबी और रॉ के पूर्व चीफ एएस दुलत (Ex RAW Chief A S Dulat) ने कहा है कि कश्मीर में अब पाकिस्तान का खेल खत्म हो चुका है. जम्मू कश्मीर में आतंकवाद के अध्याय ने घाटी में प्रचलित धर्मनिरपेक्ष लोकाचार को तोड़ दिया है. 1980 के दशक के उत्तरार्ध से, कश्मीर कभी भी पहले जैसा नहीं रहा. पाकिस्तान में अस्थिरता और पूर्व पीएम नवाज शरीफ की एंट्री की अफवाहों और भारत पर इसके असर पर उन्होंने कहा, 'भारत के मियां साहब के साथ हमेशा अच्छे रिश्ते रहे हैं.'

कश्मीर मुद्दे पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सलाहकार रहे दुलत ने उग्रवाद कैसे शुरू हुआ, उसके बाद की अशांति, डॉ. फारूक अब्दुल्ला की भूमिका और दिल्ली की भागीदारी. दिल्ली कश्मीर को ब्लैक एंड व्हाइट में कैसे देख रही है और वर्तमान स्थिति क्या है, हर मुद्दे पर अपनी बात रखी. विस्तार से पढ़िए पूरा साक्षात्कार.

सवाल : आप जम्मू कश्मीर की वर्तमान स्थिति को कैसे देखते हैं, विशेषकर अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद? क्या कोई सकारात्मक विकास हुआ है?

जवाब : पर्यटन तेजी से बढ़ रहा है. आंकड़ों पर नजर डालें तो यह उल्लेखनीय है और कश्मीरी कारोबारियों के लिए यह एक बड़ा सकारात्मक घटनाक्रम है. सुरक्षा के मोर्चे पर, इस तथ्य को स्वीकार करना होगा कि पाकिस्तान अब ख़त्म हो चुका खेल है. आज भी कश्मीरी मानते हैं कि इसमें पाकिस्तान की कोई भूमिका नहीं है. इसलिए, मैं तो यह कहूंगा कि अलगाववाद में कमी आई है, लेकिन आतंकवाद में नहीं. हम पुंछ और राजौरी में आतंकी हमलों में वृद्धि देख रहे हैं जो एक चिंता का विषय है. आइए इसे इस तरह से कहें, अलगाववाद भले ही फीका पड़ गया हो, लेकिन इस मामले की सच्चाई यह है कि यह अभी भी जीवित है और बंद कक्षों के नीचे पनप रहा है. कोई नहीं जानता कि यह कब फूटेगा लेकिन हां! फिलहाल इसमें भारी कमी आई है.

सवाल : अपने एक हालिया लेख में आपने तर्क दिया है कि जमात-ए-इस्लामी कश्मीर में अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है. आपको ऐसा क्यों लगता है कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद यह अत्यधिक बढ़ गया है, इस तथ्य के बावजूद कि गृह मंत्रालय ने 2019 में इस पर प्रतिबंध लगा दिया था?

जवाब : जमात कश्मीर की जड़ों में घुस चुकी है जो मेरे लिए बेहद चिंता का विषय है. कश्मीर हमेशा से धर्मनिरपेक्षता की मीनार रहा है लेकिन उग्रवाद के बाद, इन सिद्धांतों को कट्टरवाद से खतरों का सामना करना पड़ा. लेकिन, इस समय अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद गृह मंत्रालय द्वारा लगाए गए प्रतिबंध के बावजूद, जमात की राजनीतिक पकड़ और समर्थन नेटवर्क के संदर्भ में इसका जमीनी स्तर पर बहुत कम प्रभाव पड़ा है.

सच तो यह है कि आप इस संगठन के सदस्यों को नीचा दिखा सकते हैं, लेकिन इसके समर्थकों को नहीं. 5 अगस्त के बाद अलगाव और निराशा ने कश्मीरियों के मानस पर भारी प्रभाव डाला है और उन्हें निराश कर दिया है. और इस निराशा और अलगाव ने जमात जैसे संगठनों को क्षेत्र में अपना पैर बढ़ाने के लिए एक आधार प्रदान किया.

सवाल : आपने कश्मीर का सबसे अशांत समय बहुत करीब से देखा है. आप वर्तमान स्थिति को कैसे देखते हैं जहां पिछले पांच वर्षों से कोई विधानसभा नहीं है?

जवाब : निराशा और सन्नाटा है, जो खतरनाक है. हमें लोकतांत्रिक प्रक्रिया के पुनरुद्धार और शीघ्र चुनाव की आवश्यकता है.

सवाल : आप अपनी आखिरी किताब में कहते हैं कि डॉ. फारूक अब्दुल्ला अधिक धार्मिक हो गए हैं, ऐसा आप क्यों सोचते हैं?

जवाब : डॉ. अब्दुल्ला बूढ़े हो गए हैं. जब उन्हें सात महीने के लिए नजरबंद रखा गया, तो इसका उन पर बहुत प्रभाव पड़ा. लेकिन डॉ. अब्दुल्ला के अधिक धार्मिक होने के पीछे कश्मीर के हालात, दिल्ली के हालात और उनकी बढ़ती उम्र कारण हैं.

सवाल : आपने घाटी के घटनाक्रम पर बारीकी से नजर रखी है. क्या आपको लगता है कि डॉ. फारूक बीजेपी के साथ गठबंधन कर सकते हैं?

जवाब : मुफ्ती सैयद और उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती के साथ जो हुआ उसके बाद उनके लिए यह बहुत मुश्किल होगा. वह बीजेपी के साथ जाने के बारे में सोच सकते हैं लेकिन उनका दिल उन्हें इसकी इजाजत कभी नहीं देगा.यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि घाटी में चुनाव कब कराए जाते हैं. चाहे वह लोकसभा से पहले हो या लोकसभा चुनाव के बाद.

सवाल : क्या कश्मीर बीजेपी को वोट देगा?

जवाब : नहीं, कश्मीरी बीजेपी से नाखुश हैं और शायद बीजेपी को वोट न दें. वे जम्मू से सीटें जीत सकते हैं लेकिन घाटी में नहीं.

सवाल : इस बात पर बहुत चर्चा है कि वास्तव में उग्रवाद कब शुरू हुआ और ट्रिगर पॉइंट क्या था. क्या 1987 में कथित चुनाव धांधली एक ट्रिगर पॉइंट था?

जवाब : मुझे नहीं लगता कि 1987 के चुनावों में धांधली हुई थी और अगर हुई भी थी तो MUF (मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट) कुछ ही सीटें जीतने में कामयाब रही थी और अगर हम इस तर्क के साथ चलें कि धांधली हुई थी, तब भी वे केवल कुछ सीटें ही जीत सकते थे.

आतंकवाद की जड़ें कश्मीर के कद्दावर नेता शेख अब्दुल्ला की मौत के बाद से चली आ रही हैं. पाकिस्तान को शेख अब्दुल्ला कभी पसंद नहीं आए और 1982 में उनकी मौत के बाद भारी चिंताएं पैदा हुईं. पूर्व पीएम इंदिरा गांधी ने शेख साहब से कहा कि अब डॉ. फारूक को सीएम का प्रभार दिया जाना चाहिए और वह सहमत हो गए.

सीएम बनते ही वह बेहद गंभीर हो गए और अपने पिता की कैबिनेट में भी फेरबदल कर दिया. तब इंदिरा गांधी फारूक के साथ गठबंधन चाहती थीं लेकिन उन्होंने यह कहते हुए मना कर दिया कि आप केंद्र संभालें हम अपने राज्य की देखभाल करेंगे. इससे वह अवश्य नाराज हुईं और 1984 में डॉ. अब्दुल्ला को बर्खास्त कर दिया गया.

यह पाकिस्तान के लिए हस्तक्षेप का प्रारंभिक बिंदु था क्योंकि शेख अब्दुल्ला की मृत्यु ने एक खालीपन पैदा कर दिया था और बाद में उनके बेटे को बर्खास्त कर दिया गया था. इससे विद्रोह को भारी प्रोत्साहन मिला. वहीं, जेकेएलएफ के संस्थापक अमानुल्लाह खान हाल ही में पाकिस्तान से लौटे थे. तो, इन सब चीजों ने मिलकर आतंकवाद को बढ़ावा दिया.

सवाल : आपने कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक के बयान देखे होंगे. इस तथ्य को देखते हुए आप इन्हें कैसे लेते हैं कि कश्मीर में उनका कार्यकाल उस भरोसे पर आधारित रहा होगा जो उन्हें पीएम मोदी और एनएसए अजीत डोभाल की नजर में प्राप्त था?

जवाब : मुझे इस बारे में कुछ नहीं पता. लेकिन हां, कश्मीर में उनका कार्यकाल काफी विचार-विमर्श और उन पर भरोसे के बाद ही तय हुआ होगा. मलिक की कश्मीर में नियुक्ति में एनएसए अजीत डोभाल का हाथ रहा होगा.

सवाल : आखिरी बार आप मिस्टर डोभाल से कब मिले थे?

जवाब : मैं अब भी उन्हें अपना बहुत अच्छा दोस्त मानता हूं. हम सब एक ही बिरादरी के हैं. आखिरी बार उनसे मेरी बात एक साल पहले हुई थी और उसके बाद कोई बातचीत नहीं हुई.

सवाल : और पीएम मोदी, क्या आप कभी उनसे मिले हैं?

जवाब : रॉ हेडऑफिस में एक समारोह था और पीएम मोदी ने कार्यक्रम को संबोधित किया. जिस बात ने मुझे प्रभावित किया वह यह थी कि एजेंसियों को लोगों के साथ अच्छे संबंध विकसित करने की जरूरत है, और यही मैंने कश्मीर में किया. मैं यह भी चाहता था कि कश्मीरी दिल्ली पर भरोसा करें.

सवाल : कश्मीर का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा?

जवाब : डॉ. फारूक अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर के सबसे बड़े नेता हैं और उनकी पार्टी घाटी में सबसे बड़ी है. उनके बेटे उमर अब्दुल्ला अगले सीएम होंगे. इसमें कोई संदेह नहीं है.

सवाल : आपने अपनी सेवा बुद्धिमत्ता के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ भी मिलकर काम किया है. अटल बिहारी वाजपेयी की भाजपा की तुलना में आज की भाजपा में मुख्य अंतर क्या है?

जवाब : अटल जी एक सज्जन व्यक्ति थे और वास्तव में एक बहुत ही चतुर और चालाक राजनीतिज्ञ थे. वह जानते थे कि विश्वास कैसे हासिल किया जाए और लोगों का दिल कैसे जीता जाए. वह अपने विरोधियों से भी बात करने में कभी नहीं झिझकते थे. पीएम मोदी भी बहुत ही चतुर और चालाक राजनेता हैं और यही कारण है कि लोगों ने उन्हें वोट दिया है. लेकिन वाजपेयी का जमाना कुछ और था और वो दौर चला गया.

सवाल : आप हमेशा कश्मीर में मीरवाइज उमर फारूक (जो अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद से घर में नजरबंद हैं) की भूमिका के बारे में बात करते हैं. आप उन्हें राजनीतिक तौर पर कहां देखते हैं?

जवाब : अच्छा, वह बड़े आदमी हैं. उन्हें कोई नजरअंदाज नहीं कर सकता. वह बहुत बड़ी भूमिका निभा सकते हैं. वह पढ़े-लिखे और आधुनिक आदमी हैं लेकिन कमजोर भी हैं. उनके परिवार ने अतीत में विनाशकारी झटके देखे हैं. कोई भी इस बात को नहीं भूल सकता कि उनके पिता की हत्या कर दी गई थी. दिल्ली चाहेगी तो वह बड़ी भूमिका निभा सकते हैं.

सवाल : आप अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में चीन की भूमिका को कहां देखते हैं क्योंकि चीन एक प्रमुख मध्यस्थ के रूप में उभर रहा है?

जवाब : उसका रुतबा बढ़ रहा है और वह शक्तिशाली देश बन गया है. चीन सऊदी और ईरान को एक ही मेज पर लाने में मुख्य मध्यस्थ था जो पश्चिम एशिया की भू-राजनीति को बदल सकता था. चीन ने फिलिस्तीनी राष्ट्रपति को भी आमंत्रित किया है, भले ही उन्होंने अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन इससे अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता में चीन के उभरने की झलक मिलती है.

आप 100 साल पुराने हेनरी किसिंजर की चीन की नवीनतम यात्रा पर गौर करें, जहां उन्होंने राष्ट्रपति जिनपिंग से मुलाकात की, इससे पहले सीआईए प्रमुख, राज्य सचिव एंटनी ब्लिंकन और ट्रेजरी सचिव ने चीन का दौरा किया और राष्ट्रपति जिनपिंग के साथ आमने-सामने मुलाकात की. यह चीन के वैश्विक उत्थान के बारे में बहुत कुछ बताता है. यहां तक ​​कि, अमेरिका का मानना ​​है कि चीन रूस और यूक्रेन के बीच एक समझौते का तोड़ निकाल सकता है क्योंकि राष्ट्रपति जिनपिंग के रूसी राष्ट्रपति पुतिन के साथ बहुत मधुर संबंध हैं.

सवाल : भारत-चीन पर?

जवाब : हमें चीन के साथ लगातार जुड़ने की जरूरत है.

सवाल : ऐसी अफवाहें हैं कि पाकिस्तान के पूर्व पीएम नवाज शरीफ अगले पीएम होंगे. भारत के लिए क्या निहितार्थ हैं?

जवाब : भारत सरकार वास्तव में 'मियां साहब' से खुश होगी. जब अटल जी पीएम थे तो वह लाहौर गए थे और पीएम मोदी भी उनसे मिलने गए थे. नवाज शरीफ के साथ हमारे हमेशा अच्छे संबंध रहे हैं और उनके साथ कोई समस्या नहीं होनी चाहिए.

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