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सूचीबद्ध करने की नई प्रणाली पर न्यायाधीशों की नाराजगी संबंधी मीडिया रिपोर्ट 'सही नहीं': सीजेआई

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Published : Sep 16, 2022, 7:55 AM IST

सीजेआई यूयू ललित ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ के मामलों को सूचीबद्ध करने की नई प्रणाली की आलोचना करने से जुड़ी मीडिया में आई खबरें 'सही नहीं' हैं .

Media reports on judges displeasure over new listing system not correct says CJI
Etv Bhसूचीबद्ध करने की नई प्रणाली पर न्यायाधीशों की नाराजगी संबंधी मीडिया रिपोर्ट 'सही नहीं': सीजेआईarat

नई दिल्ली: भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) उदय उमेश ललित ने बृहस्पतिवार को कहा कि उच्चतम न्यायालय की एक पीठ के मामलों को सूचीबद्ध करने की नई प्रणाली की आलोचना करने से जुड़ी मीडिया में आई खबरें 'सही नहीं' हैं और शीर्ष अदालत के सभी न्यायाधीश इस पर एक राय रखते हैं.

भारत के 49वें प्रधान न्यायाधीश के तौर पर 27 अगस्त को पदभार ग्रहण करने वाले न्यायमूर्ति ललित ने कहा कि शीर्ष अदालत ने मामलों को सूचीबद्ध करने की एक नई प्रणाली अपनाई है और शुरुआत में कुछ समस्याएं होना तय है. न्यायमूर्ति ललित ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) द्वारा सीजेआई बनने पर उन्हें सम्मानित करने के लिए आयोजित एक कार्यक्रम में कहा, 'लिस्टिंग और अन्य चीजों सहित हर चीज के बारे में बहुत सी बातें कही गई हैं.

मैं स्पष्ट कर दूं कि यह सच है कि हमने यह नई शैली, सूचीबद्ध करने का एक नया तरीका अपनाया है. स्वाभाविक रूप से कुछ समस्याएं हैं. जो कुछ भी रिपोर्ट किया गया है वह सही स्थिति नहीं है. हम सभी न्यायाधीश पूरी तरह से इसे लेकर एक राय रखते हैं.' न्यायमूर्ति ललित स्पष्ट रूप से मीडिया में आई उन खबरों का हवाला देते हुए दावा कर रहे थे कि शीर्ष अदालत की एक पीठ ने वर्षों से लंबित मामलों के त्वरित निपटान के लिए नए सीजेआई द्वारा शुरू की गई मामलों को सूचीबद्ध करने की एक नई प्रणाली पर अपने न्यायिक आदेश में नाराजगी व्यक्त की है.

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने एक आपराधिक मामले में जारी आदेश में कहा है, 'मामलों को सूचीबद्ध करने की नयी प्रणाली मौजूदा मामले की तरह के मुकदमों की सुनवाई के लिए पर्याप्त समय नहीं दे पा रही है, क्योंकि ‘भोजनावकाश के बाद के सत्र’ में कई मामले सुनवाई के लिए सूचीबद्ध हैं.'

न्यायमूर्ति कौल वरीयता क्रम में उच्चतम न्यायालय के तीसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश हैं. प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 29 अगस्त को जबसे मामलों को सूचीबद्ध करने की नई प्रणाली शुरू हुई तबसे 14 सितंबर तक शीर्ष अदालत ने 1,135 नई याचिकाओं के मुकाबले 5,200 मामलों का फैसला किया. न्यायमूर्ति ललित ने कहा कि यह उच्चतम न्यायालय के अन्य साथी न्यायाधीशों और वकीलों द्वारा किए गए प्रयासों के कारण संभव हुआ है.

न्यायमूर्ति ललित ने कहा, 'वास्तव में, वेणुगोपाल (अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल) ने हमें बताया कि 29 अगस्त को हमने शुरुआत की थी और कल तक हम 5,000 हजार मामलों या ज्यादा सटीक तौर पर कहूं तो 5,200 मामलों को निस्तारित कर सके जबकि इस दौरान नए मामले 1,135 दायर हुए. ऐसे में नए मामले 1,135 हैं और निस्तारित मामले 5,200. यह मेरे सभी साथी न्यायाधीशों और बार के सदस्यों के प्रयासों से संभव हो सका.'

उन्होंने कहा, 'यह सच है कि इस बदलाव के कारण, कुछ अवसर और कुछ उदाहरण ऐसे रहे हैं जहां मामलों को कम से कम संभावित नोटिस के साथ अंतिम समय में सूचीबद्ध किया गया था. इसने न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं के लिए एक जबरदस्त काम का बोझ पैदा कर दिया और मैं वास्तव में अपने सभी साथी न्यायाधीशों को मुस्कुराते हुए चेहरे के साथ सब कुछ निर्वहन करने के लिए ऋणी हूं और यही कारण है कि हम 1,135 नए मामलों के मुकाबले 5,200 मामलों का निस्तारण करने में सक्षम हुए.

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इसका मतलब है कि हम 4,000 बकाया मामलों को कम करने में सक्षम रहे जो एक अच्छी शुरुआत है.' उन्होंने कहा कि कई मामले काफी समय से लंबित थे और निरर्थक हो गए थे और उनका निपटारा किया जाना था, इसलिए उन्हें सूचीबद्ध किया गया और परिणाम सभी के सामने हैं. प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि यह हमेशा से उनका सपना रहा है कि एक दिन वह शीर्ष अदालत के न्यायाधीश बन सकें और उनकी पत्नी को हमेशा इस बात की जानकारी थी कि उनके दिमाग में क्या चल रहा है, इसलिए जब उन्हें न्यायमूर्ति बनने के लिए वास्तव में पेशकश की गई तो पत्नी से परामर्श करने की कोई आवश्यकता नहीं लगी.

उन्होंने कहा, 'यही कारण है कि मैंने एक संबोधन में कहा कि जब यह (पेशकश) आयी और जब न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा (तत्कालीन सीजेआई) ने मुझे (न्यायाधीश पद) की पेशकश की तो मैंने अपनी पत्नी से भी सलाह नहीं ली, यह उस पृष्ठभूमि में था. यह ऐसा नहीं था कि… कोई भी पति अपनी पत्नी की सलाह के बिना ऐसा काम कभी नहीं कर सकता.'

(पीटीआई-भाषा)

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