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गांधीजी की 152वीं जयंती: मोक्षधाम में रखे हैं बापू के भस्मावशेष, नई पीढ़ी को मिलती है प्रेरणा

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Published : Oct 2, 2021, 9:08 AM IST

मोक्षधाम में रखे हैं बापू के भस्मावशेष
मोक्षधाम में रखे हैं बापू के भस्मावशेष

महात्मा गांधी के भस्मावशेष को मोक्षधाम गया लाया गया था. भस्मावशेष को सुरक्षित रखने के लिए सभी धर्मों के अनुकूल एक स्तूप का निर्माण करवाया गया था. पढ़ें पूरी खबर...

गया: देश की आजादी में अग्रणी भूमिका निभाने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की आज 152वीं जयंती है. महात्मा गांधी की मौत के बाद उनके भस्मावशेष को मोक्षधाम गया लाया गया था. भस्मावशेष को सुरक्षित रखने के लिए सभी धर्मों के अनुकूल एक स्तूप (Gandhi Stupa) का निर्माण करवाया गया था. स्तूप का शिलान्यास 20 जून 1948 को तत्कालीन राज्यपाल एनएस अणे ने किया था. स्तूप को देश को समर्पित प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 28 दिसंबर 1951 को किया था.

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आजादी की लड़ाई के दौरान महात्मा गांधी चार बार गया आए थे. उनकी मौत के बाद गांधीवादी विचारक उनके भस्मावशेष गया ले आये. 1948 में तत्कालीन बिहार सरकार ने उनके भस्मावशेष पर स्तूप बनवाया. गया शहर स्थित गांधी मैदान में गांधी स्तूप के अंदर आज भी महात्मा गांधी का भस्मावशेष सुरक्षित है. पूरे देश में गांधी की बड़ी-बड़ी मूर्तियां हैं. कई जगह अस्थि कलश भी रखे हैं, लेकिन गांधी स्तूप सिर्फ मोक्षधाम गया में ही है.

जानकारी देते संवाददाता

गांधीवादी विचारक और समाजसेवी विजय कुमार मिठू ने कहा, 'गया पूरे विश्व में मोक्षधाम के रूप में प्रसिद्ध है. महात्मा गांधी की हत्या के बाद उनके अस्थि कलश को गया लाया गया था. भस्मावशेष को सुरक्षित रखने के लिए एक स्तूप का निर्माण किया गया. आज हम लोग इस स्तूप को गांधी स्तूप के नाम से जानते हैं. स्तूप को सभी धर्मों को ध्यान रखकर बनाया गया है.'

"गांधी स्तूप का शिलान्यास तत्कालीन राज्यपाल ने किया था. इसके निर्माण में तत्कालीन जिलाधिकारी जगदीश चन्द्र माथुर ने विशेष दिलचस्पी ली थी. उनके प्रयास से सर्वधर्म समभाव के हिसाब से गांधी स्तूप का निर्माण हो सका. आज यहां नई पीढ़ी के लोगों को गांधी के विचारों को अपनाने की प्रेरणा मिलती है."- विजय कुमार मिठू, गांधीवादी विचारक और समाजसेवी

"महात्मा गांधी आजादी की लड़ाई को एक सूत्र में पिरोने के लिए चार बार गया आये थे. उनकी हर यात्रा के बाद गया में स्वतंत्रता संग्राम तेज हुआ. गांधी स्तूप में सुरक्षित उनके भस्मावशेष आज भी याद दिलाते हैं कि अहिंसा के पुजारी के समाने अंग्रेज कैसे चित हो गए थे."- अमरजीत कुमार, स्थानीय

बता दें कि गांधी स्तूप का निर्माण ख्याति प्राप्त शिल्पकार उपेंद्र महारथी की देखरेख हुआ था. यह स्तूप हिंदू और बौद्ध वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है. आजादी की लड़ाई के दौरान महात्मा गांधी 1921,1925, 1927 और 1934 में गया आए थे. इस दौरान उन्होंने गांधी मैदान में एक सभा को भी संबोधित किया था. तब गांधी मैदान का नाम गिरजा मैदान हुआ करता था.

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