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हमीरपुर सामूहिक हत्याकांड में पूर्व सांसद अशोक सिंह चंदेल को SC से झटका, आजीवन कारावास की सजा बरकरार

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Published : Nov 4, 2022, 6:02 PM IST

हमीरपुर सामूहिक हत्याकांड में सजायाफ्ता पूर्व विधायक और सांसद अशोक चंदेल को सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने चंदेल समेत अन्य लोगों की सजा बरकार रखी है.

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हमीरपुर: जिले में 25 वर्ष पूर्व हुए सामूहिक हत्याकांड में सजायाफ्ता पूर्व विधायक और सांसद अशोक चंदेल और उसके साथियों की आजीवन कारावास की सजा सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखी है. हाइकोर्ट से सजा होने के बाद पूर्व विधायक ने फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की सजा बरकरार रखी. इससे पूर्व सांसद के समर्थकों में मायूसी छा गई.


शहर के सुभाष बाजार में 26 जनवरी 1997 की शाम रमेड़ी मोहल्ला निवासी भाजपा नेता राजीव शुक्ला के दो सगे भाइयों राकेश शुक्ला, राजेश शुक्ला, भतीजे अंबुज, दो गनर श्रीकांत पाण्डेय और वेदनायक की सामूहिक हत्या हुई थी. इस हत्या में अशोक चंदेल और उसके एक दर्जन साथियों को मुख्य आरोपी बनाया गया था. घटना के चश्मदीद राजीव शुक्ल ने पूर्व विधायक अशोक सिंह चंदेल व अन्य को नामजद करते हुए थाने में हत्या और हत्या के प्रयास का मुकदमा दर्ज कराया था. पुलिस ने विवेचना के बाद अशोक सिंह चंदेल, रघुवीर सिंह, डब्बू सिंह, उत्तम सिंह, प्रदीप सिंह, नसीम, श्याम सिंह, साहब सिंह, झंडू और भान सिंह के खिलाफ विभिन्न धाराओं में चार्जशीट दाखिल की थी. वर्ष 2002 में निचली अदालत से चंदेल और उसके सभी साथी बरी हो गए थे. चंदेल की रिहाई के फैसले को वादी पक्ष ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.


अप्रैल 2019 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में चंदेल सहित उसके सभी साथियों को सामूहिक हत्याकाण्ड का दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी. चंदेल ने हाईकोर्ट के इस आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की थी, जिस पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति नरसिम्हा, न्यायमूर्ति रविंद्र भट्ट की बेंच ने हाईकोर्ट के आजीवन कारावास के फैसले को बरकरार रखा. वादी पक्ष से वरिष्ठ अधिवक्ता सोनिया माथुर, मीनाक्षी अरोरा और अधिवक्ता उदयप्रकाश, विपुल शुक्ला ने पक्ष रखा.


कानपुर में छात्रसंघ से राजनीति का ककहरा सीखने वाले अशोक चंदेल ने जिले की सियासत में बाहुबल के बूते कम समय में दिग्गजों के बीच जगह बना ली थी. वहीं शहर के जाने-माने शुक्ला परिवार ने चंदेल की राजनीति का हमेशा विरोध किया. भीष्म प्रसाद शुक्ला उर्फ दोस्त लम्बरदार का परिवार दशकों से जिले के एक गुट की सियासत में अच्छा-खासा दखल रखता था. यही बात अशोक चंदेल को नागवार गुजरती थी.


लड़ाई लंबी थी लेकिन न्याय पालिका पर था भरोसा
सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर वादी राजीव शुक्ला ने बताया कि उनके जीवन का बस एक ही लक्ष्य था, अपने भाइयों की हत्या के दोषियों को फांसी के फंदे तक ले जाना. धैर्य के साथ लड़ाई लड़ी. कई ऐसे मौके आए जब चंदेल ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया, उन पर छापे पड़े, मुकदमे लदवा दिए गए और भी कई तरह के दबाव डाले गए पर वो तनिक भी नहीं डरे. हमको न्यायपालिका पर पूरा भरोसा था, लड़ाई लंबी जरूर थी पर संतोष है कि दोषियों को सजा हुई.

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