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MP: विलुप्त होते मोटे अनाज की 30 किस्मों से लहरी बाई ने बनाया बीज बैंक, जानिए सीतारमण के 'श्री अन्न' का MP कनेक्शन

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Published : Feb 3, 2023, 9:16 PM IST

Baiga woman has developed a seed bank of coarse grains
मोटे अनाज की 30 किस्मों से लहरी बाई ने बनाया बीज बैंक

एमपी के आदिवासी जिले डिंडोरी की पहली बैगा महिला लहरी बाई बीज बैंक की मालकिन बन गई हैं, दरअसल बिना किसी सरकारी मदद के लहरी बाई ने विलुप्त होते मोटे अनाज की 30 किस्मों का बीज बैंक बनाया है. आइए आपको बताते हैं वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के 'श्री अन्न' का MP कनेक्शन...

मोटे अनाज की 30 किस्मों से लहरी बाई ने बनाया बीज बैंक

डिंडोरी। केंद्रीय बजट को प्रस्तुत करते हुए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने मोटे अनाज (श्री अन्न) की विलुप्त होती किस्म का उत्पादन बढ़ाने और इस पर जोर देने की बात कही थी, इस बीच डिंडोरी से लहरी बाई का नाम चर्चा में आया जो पिछले 15 वर्षों से मोटे अनाज की 30 किस्मों का बीज बैंक बना रही हैं. दरअसल, लहरी बाई मोटे अनाज को ग्लोबल पहचान दिलाने के लिए न सिर्फ मोटे अनाज को सहेज रही हैं, बल्कि वे अपने गांव और पड़ोसी गांवों को भी फसल के पहले ये बीज उपलब्ध कराती हैं.

विरासत में मिला है बीज सहेजने का काम: डिंडोरी के बजाग जनपद क्षेत्र के अंतर्गत ग्राम सिलपिढी की रहने वाली 27 वर्षीय बैगा महिला लहरी बाई ने बताया कि बेवर खेती और बीज को सहेजने का काम उन्हें उनके पूर्वजों से विरासत में मिला है. इस खेती से उत्पन्न होने वाला पौष्टिक अनाज न सिर्फ शरीर को स्वस्थ रखता है, बल्कि जीवन आयु को भी बढ़ाता है. इसी के चलते उन्होंने अपने खेत और जंगल की सार्वजनिक जमीन पर खेती कर इन महत्वपूर्ण बीजों को सहेजने का काम शुरू किया है.

ऐसे सुरक्षित रखती हैं बेवर बीज: लहरी बाई ने अपने घर के एक कमरे में सामुदायिक बेवर बीज बैंक खोला है, जिसमें वे अलग-अलग प्रकार के 30 से ज्यादा बीज रख रही हैं, इन बीजों में कांग, सलहार, कोदो, मढिया, सांभा, कुटकी और दलहनी फसलें आदि शामिल हैं, जिसके लिए लहरी बाई ने मिट्टी की बड़ी-बड़ी कोठी भी बनाई है, जिसमें बीजों को लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है. लहरी बाई कहती हैं कि उन्होंने अब तक 350 से ज्यादा किसानों को बीज बैंक से बीज वितरित किया है. इसके अलावा वे जिन्हें बीज देती हैं उनसे उत्पादन के बाद बीज की मात्रा से थोड़ा ज्यादा वापस लेती हैं.

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लहरी बाई की सरकार से मांग: लहरी बाई का कहना है कि "बीते 15 सालों से मैं बीज को सहेजने के लिए संघर्ष कर रही हूं, मेरी प्रदेश सरकार और जिला प्रशासन से मांग है कि बेवर खेती के लिए मुझे जमीन का पट्टा दिया जाए, जिससे मैं बेहतर ढंग से ट्रैक्टर से खेती कर सकूं. इससे जंगल भी सुरक्षित रहेगा." फिलहाल जब डिंडोरी कृषि विभाग प्रभारी अभिलाषा चौरसिया लहरी बाई से मिलने पहुंची, जहां उन्होंने कहा कि "लहरी बाई ने बेवर खेती के अलग-अलग बीजों को अलग-अलग मिट्टी की कोठी में रखा है, इनमें लघु धान्य फसलों और अन्य फसलों के बीज संग्रहित हैं." वहीं डिंडोरी कलेक्टर विकास मिश्रा का कहना है कि "भारत सरकार ने इस बार यूएसओ के सेलिब्रेशन से मिलेट इंटरनेशनल ईयर डिक्लियर किया है, इसमें हमारे एमपी का डिंडोरी जिला शामिल है. हम इसे और आगे ले जाने के लिए प्रयासरत हैं, हमारे डिंडोरी में अनेक मिलेट्स उत्पादित होते हैं, इसका श्रेय बैगा और गौंड जनजाति के लोगों को जाता है, क्योंकि वही सबसे ज्यादा ये इन फसलों का उत्पादन करते हैं. लहरी बाई के बीज बैंक में भी ऐसे बीज उपलब्ध हैं, जो अब बाजार में आसानी से नहीं मिलते हैं. फिलहाल कोदो कुटकी में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) नहीं होने से इसका लाभ हमें नहीं मिला है, पर हम जल्द ही आगे पहुंचेंगे. इसलिए हमने लहरी बाई को अपना चेहरा बनाया हैं, हमारा उद्देश्य है जो सच में फील्ड में काम कर रहा है उसको क्रेडिट जाए. सभी को लहरी बाई से सीखना चाहिए."

सीतारमण के 'श्री अन्न' का MP कनेक्शन: वित्तमंत्री सीतारमण ने बजट भाषण के दौरान कहा था कि, "श्री अन्न (मोटा अनाज या मिलेट्स) को अब बड़े स्तर पर भोजन का अंग बनाने की तैयारी पर काम किया जाएगा, जिसके लिए तेलंगाना के हैदराबाद के भारतीय बाजरा अनुसंधान संस्थान को सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बनाने की तैयारी है.' बता दें कि MP मिलेट्स उत्पादन में देश में दूसरे नंबर पर है. वहीं, मध्यप्रदेश के डिंडोरी जिले में सबसे ज्यादा मिलेट्स उत्पादन होता है. दरअसल, 24 साल पहले एमपी और छत्तीसगढ़ से अलग होने से पहले मध्य प्रदेश में एक नारा बहुत गूंजा था 'मिलेट्स हटाओ, सोयाबीन लगाओ', हालांकि इसके पहले ही मिलेट्स की खेती मध्यप्रदेश में कम होने लगी थी जो कि एमपी-सीजी विभाजन के बाद एकदम घट गई. फिलहाल अब एक बार फिर एमपी की शिवराज सरकार मोटे अनाज के उत्पादन को बढ़ाने के लिए लोगों को जागरूक कर रही है. सभी जिला कलेक्टरों को आदेश दिए गए हैं कि "किसानों के लिए कार्यक्रम आयोजित कराए जाएं और उन्हें मिलेट्स लगाने के लिए प्रेरित किया जाए. स्कूलों और गांव-गांव में जाकर किसानों को सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी दी जाए और उन्हें मिलेट्स के उत्पादन के लाभ बताए जाएं."

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