नई दिल्ली :भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ (Chief Justice of India D Y Chandrachud) ने शुक्रवार को इस बात पर जोर दिया कि यह कहना गलत होगा कि शीर्ष अदालत कॉलेजियम के पास सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों के रूप में नियुक्ति के लिए विचार किए गए उम्मीदवारों का मूल्यांकन करने के लिए कोई तथ्यात्मक डेटा नहीं है.
प्रधान न्यायाधीश ने राम जेठमलानी स्मृति व्याख्यान देते हुए कहा कि कॉलेजियम ने एक व्यापक मंच तैयार किया है जहां उसने शीर्ष अदालत के न्यायाधीश के रूप में विचार के लिए देश के शीर्ष 50 न्यायाधीशों का मूल्यांकन किया है. मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि इसका उद्देश्य शीर्ष अदालत और उच्च न्यायालयों के लिए न्यायाधीशों के चयन के लिए वस्तुनिष्ठ मानदंड निर्धारित करना है.
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उनका लक्ष्य अदालतों को संस्थागत बनाना और संचालन के तदर्थ मॉडल से दूर जाना है. मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में मेरा पहला लक्ष्य न्यायालयों को संस्थागत बनाना और संचालन के तदर्थ मॉडल से दूर जाना था. अदालतों को संस्थागत बनाने का एक महत्वपूर्ण प्रभाव यह है कि इससे पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ती है. हालांकि ये संस्थागतकरण के बहुत महत्वपूर्ण प्रभाव हैं, हमें कहानी के मानवीय पक्ष को भी नहीं भूलना चाहिए.'
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि उनका ध्यान अदालतों तक पहुंचने में आने वाली बाधाओं को कम करने, अदालत के समक्ष आवेदन करने और बहस करने की प्रक्रिया को आसान बनाने पर भी है.
उन्होंने कहा कि 'मेरा ध्यान वकीलों के लिंग अनुपात (gender ratio) में सुधार लाने पर है. मेरा ध्यान यह सुनिश्चित करने पर है कि वकीलों और वादियों को अदालतों में आराम करने की सुविधा मिले. केवल ऐसे समग्र दृष्टिकोण से ही न्याय वितरण की गुणवत्ता को हर दृष्टि से बढ़ाया जा सकता है.'
उन्होंने कहा कि अदालत प्रणाली को संस्थागत बनाने के लिए प्राथमिक आवश्यकताओं में से एक उन मुद्दों की पहचान करना है जो हमारी दक्षता में बाधा डालते हैं और ऐसे मुद्दों के समाधान के लिए उपाय करना है. सीजेआई ने कहा कि 'सेंटर फॉर रिसर्च एंड प्लानिंग में कार्यरत न्यायाधीशों, वकीलों और शोधकर्ताओं की एक सक्षम टीम इस काम में अदालतों की सहायता कर रही है. उनका काम अमूल्य है, खासकर भारत में अदालतों की कार्यप्रणाली पर शोध और डेटा की कमी को देखते हुए.'