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नाविकों-पकोड़े बेचने वालों के बच्चे बोलते हैं फर्राटेदार इंग्लिश, 5 साल की उम्र में Newton Law जुबानी याद, टैलेंट इतना हाथों-हाथ लेगा IIT-IIM

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 14, 2023, 8:01 PM IST

Updated : Nov 14, 2023, 10:57 PM IST

MP News Update
पराग दीवान

Story Of Jabalpur Teacher Parag Diwan:शहर के अनोखे शिक्षक पराग दीवान, जिन्होंने यह साबित कर दिया है कि शिक्षा के लिए साधन की जरूरत नहीं है. यदि पूरी लगन और सही तरीके से सिखाया जाए, तो कोई भी सीख सकता है. पराग दीवान ने ग्वारीघाट के बेहद गरीब लोगों के बच्चों को 7 साल पहले सीखना शुरू किया था. आज पराग दीवान के क्लास के छोटे-छोटे बच्चे विज्ञान और गणित जैसे कठिन विषयों के जटिल सिद्धांतों को दूसरों को सिखा रहे हैं. पराग दीवान ने हमारी पूरी शिक्षा व्यवस्था पर एक सवाल खड़ा किया है पेस है पराग दीवान पर हमारे संवाददाता विश्वजीत सिंह की स्पेशल रिपोर्ट. Children's Day, Bal Diwas

ग्वारीघाट नर्मदा पर पराग दीवान बच्चों को पढ़ाते हैं

जबलपुर। शहर का ग्वारीघाट नर्मदा आरती के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन यहां इससे भी बड़ी एक दूसरी घटना रोज घटती है. इसे पराग दीवान की क्लास के नाम से जाना जाता है. यहां नाव चलाने वाले नविकों, घाट पर दुकान लगाने वाली महिलाएं और भिख मांगकर अपना जीवन यापन करने वाले लोगों के बच्चों के लिए पराग दीवान ने एक क्लास शुरू की थी. यह लगभग 7 साल पुरानी घटना है, जब पराग दीवान नर्मदा दर्शन के लिए आते थे और उन्हें यहां बिगड़े बच्चे नजर आते थे. इनमें अधिकतर बच्चे कम उम्र में नशे का शिकार हो चुके थे. पराग दीवान ने इन्हें पढ़ना और सुधारने का फैसला लिया. शिक्षा के इस दीवाने ने शादी नहीं की है और वह जो भी कमाते हैं, वह इन्हीं बच्चों पर खर्च कर देते हैं.

गरीबों के बच्चों का संवार रहे भविष्य: दरअसल, ग्वारीघाट में पुरानी बसाहट है और यहां पर नाविकों के परिवार के भरण पोषण के लिए पति-पत्नी दोनों को कम करना पड़ता है. इसलिए, सामान्य तौर पर पति नाव चलाते हैं. मछली पकड़ते हैं और पटिया घाट पर पूजन सामग्री की दुकान चलती हैं. ऐसे सैकड़ो परिवार घाटों पर रहते हैं. ग्वारीघाट पर भी ऐसे ही सैकड़ों परिवार हैं, लेकिन जब पति और पत्नी दोनों ही काम करते हैं.

ऐसी स्थिति में बच्चों की परवरिश पर पूरा ध्यान नहीं हो पता और बच्चे नशे का शिकार हो जाते हैं. पढ़ाई से दूर हो जाते, इन लोगों की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. इसलिए ज्यादातर बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं और सरकारी स्कूलों की शिक्षा का स्तर सभी को पता है.

क्लास की शुरुआती कठिनाई: पराग दीवान ने इन बच्चों के लिए एक क्लास शुरू की. क्लास ग्वारीघाट की सीढ़िया पर ही लगना शुरू किया. शुरुआत में बच्चे यहां नहीं आते थे, तो पराग दीवान बताते हैं कि उन्होंने बच्चों को रोज ₹20 दिन केवल क्लास में बैठने का दिया, ताकि बच्चे यहां बैठकर शिक्षा लें और पैसे के लालच में भी यहां बैठे रहे. पराग दीवान की कोशिश रंग लाई और शुरुआती कुछ बच्चों के बाद स्थानीय लोगों ने अपने बच्चों के यहां भेजना शुरू किया. आज इस क्लास में 350 से ज्यादा बच्चे पढ़ते हैं.

शिक्षा के बुनियादी सिद्धांतों का ज्ञान: पराग दीवान की क्लास में सब अलग-अलग उम्र और अलग-अलग क्लासों के बच्चे आए, लेकिन उन्होंने सभी को एक सी शिक्षा दी. इसमें यह विज्ञान के मूल तत्व बच्चों को समझा रहे थे. न्यूटन के नियम बच्चों को पढ़ाया. जीव विज्ञान की मौलिक जानकारियां सभी बच्चों को उदाहरण के साथ समझाई गईं. सामान्य ज्ञान की प्रमुख बातों को पहली से लेकर 12वीं तक के बच्चे को एक साथ याद करवा रहे है. गणित के मौलिक सिद्धांत बीजगणित के मौलिक सिद्धांत, इन बच्चों को ऐसे रटे हुए हैं, मानो यह गिनती बोल रहे हों.

वंशिका अहिरवार वंडर चाइल्ड: पराग दीवान का दावा था कि इनमें ज्यादातर बच्चे गरीब परिवारों के हैं. इसलिए हम 5 साल की वंशिका के घर पहुंचे. वंशिका केजी वन में पढ़ रही हैं . वंशिका के पिता घरों में पेंटिंग और पुट्टी का काम करते हैं और उनकी मां बंगलों पर खाना बनाने के लिए जाती हैं. ग्वारीघाट की एक पतली सी गली में इनका एक कच्चा घर है. परिवार जैसे- तैसे गुजारा करते हैं, लेकिन वंशिका इतनी होनहार कि मात्र 5 साल की उम्र में उसने हमें विज्ञान का एक जटिल सिद्धांत न्यूटन का गति का नियम समझाया.

इसी तरीके से उसने बच्चों की क्लास में ह्यूमन हार्ट के बारे में एक पूरा लेक्चर दिया. वंशिका की उम्र के हिसाब से यह ज्ञान बहुत ज्यादा है, लेकिन पराग दीवान का तर्क है कि 13 साल तक की उम्र के बच्चों का ज्ञान आइंस्टीन से भी तेज चलता है. वंशिका अहिरवार को देखकर पराग दीवान दावे को मानना हमारी मजबूरी बन गई.

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हरशु वंडर चाइल्ड: इसके बाद हमारी मुलाकात हरशु से हुई. हरशु की मां तिलवारा घाट पर साबूदाने के बड़े की दुकान चलती हैं और पिता नाव चलाते हैं. जब हम हरशु की दुकान पर पहुंचे, तो वह आलू छील रही थी और दुकान पर मां की मदद कर रही थी. हरशु इंग्लिश, संस्कृत, विज्ञान, गणित जैसे हर विषय में पारंगत है. हरशु की मां ने बताया कि जब वह मात्र 3 साल की थी. तब से वह पराग दीवान की क्लास में जा रही है. उसके स्कूल में उसे जो शिक्षा नहीं मिल रही. वह पराग दीवान की क्लास में मिलती है. इसलिए वह इन कठिन विषयों को भी खेल-खेल में सीख गई.

निजी स्कूलों के बच्चे भी आते हैं: हमने यहां इन दो बच्चों के अलावा आरोही से बात की. आरोही के माता-पिता आर्थिक रूप से समृद्ध हैं. आरोही शहर के एक बड़े महंगे स्कूल में पढ़ती हैं, लेकिन पराग दीवान के सीखने के तरीके को देखकर भी 6 महीने से यहां आ रही है. आरोही का कहना है कि उनके स्कूल में इस ढंग से नहीं सिखाया जाता, जैसे पराग भैया सीखते हैं. यही हमारी मुलाकात शिवम से हुई.

शिवम 11वीं में है और बच्चे थे 6 सालों से पराग दीवान की इस घाट क्लास का हिस्सा है. आप शिवम का कहना है कि वह 11वीं क्लास में आ गए हैं और मर्चेंट नेवी में जाना चाहते हैं पराग भैया उन्हें इसकी तैयारी करवा रहे हैं.

अनोखा स्कूल बनाने की कोशिश: पराग दीवान का कहना है कि वे इन बच्चों को यूपीएससी तक ले जाना चाहते हैं. वे इनको कलेक्टर बनना चाहते हैं. एसपी बनाना चाहते हैं. डॉक्टर इंजीनियर बनना चाहते हैं और इसके साथ ही कुछ बच्चों को भी शिक्षक भी बना रहे. उनका सपना है कि वह एक ऐसा स्कूल बनाएं, जिसमें बड़ी क्लास के बच्चे छोटी क्लास के बच्चों को पढ़ाए. शिक्षक के रूप में जो बच्चे काम करेंगे, उन्हें पराग दीवाने तैयार कर लिया है. उनका कहना है कि अगले साल तक वह एक स्कूल शुरू कर देंगे. इसमें बच्चे ही बच्चों को पढ़ाएंगे.

वैदिक तरीके से कराते हैं पढ़ाई: पराग दीवान की शिक्षा में वैदिक तरीका अपना रहे हैं और वैदिक तरीके में जादू है. यह हमने अपनी आंखों से देखा है. पराग दीवान बच्चों को संस्कार भी दे रहे हैं. वे जब क्लास शुरू करते हैं, तो पहले बच्चों के हाथ से नर्मदा जल पीते हैं. छोटी बच्चियों से आशीर्वाद लेते हैं. उसके बाद क्लास शुरू करते हैं. उनकी हर शिक्षा जय हिंद जय भारत से शुरू होती है. पराग दीवान का कहना है कि यदि हमारी शिक्षा पद्धति को मैकलोयड़ की जगह वैदिक तरीके को अपनाया जाए तो हम देश बदल सकते हैं.

Last Updated :Nov 14, 2023, 10:57 PM IST
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