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क्या काशी, मथुरा और कुतुब मीनार परिसर विवाद पर सुनवाई संभव है ?

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Published : Mar 17, 2021, 6:00 AM IST

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कॉन्सेप्ट फोटो

अयोध्या मामले पर फैसले के बाद धार्मिक स्थल के विवाद से जुड़ी कई याचिकाएं दाखिल की गई हैं. कानूनी जानकारों का मानना है कि ऐसी याचिकाओं पर सुनवाई संभव नहीं है. उन्होंने 1991 के उस कानून का हवाला दिया है, जिसके अनुसार किसी पूजा स्थल की 15 अगस्त, 1947 की स्थिति में बदलाव या किसी पूजा स्थल को पुन: प्राप्त करने के लिए मुकदमा दर्ज नहीं कराया जा सकता है. कानूनी विशेषज्ञों का दूसरा धड़ा इसे सही नहीं मानता है. आइए एक नजर डालते हैं ऐसी ही कुछ याचिकाओं और कानूनी प्रावधानों पर.

हैदराबाद : सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोध्या विवाद पर फैसला सुनाए जाने के बाद कई सारी याचिकाएं डाली गईं हैं. ये सभी किसी न किसी धार्मिक स्थल विवाद से जुड़ीं हैं. इनमें श्रीकृष्ण जन्मभूमि, ज्ञानवापी मस्जिद और कुतुब मीनार परिसर विवाद प्रमुख हैं. कानूनी जानकार मानते हैं कि इन याचिकाओं पर सुनवाई संभव नहीं है. इसकी वजह है 1991 का कानून. इसके मुताबिक किसी पूजा स्थल की 15 अगस्त, 1947 की स्थिति में बदलाव या किसी पूजा स्थल को पुन: प्राप्त करने के लिए मुकदमा दर्ज नहीं कराया जा सकता है.

श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद

अयोध्या फैसले के बाद 25 सितंबर 2020 को श्रीकृष्ण विराजमान की ओर से मुथरा के सिविल जज के सामने एक मुकदमा दाखिल किया गया था. इसे रंजना अग्निहोत्री नाम के एक वकील ने दायर किया था. उन्होंने अपनी याचिका में मथुरा में श्रीकृष्ण मंदिर परिसर से सटे शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने के लिए प्रार्थना की थी. छह अन्य श्रद्धालु भी मुकदमे के वादी थे. इस मुकदमे में 13.37 एकड़ की पूरी भूमि पर स्वामित्व का दावा किया गया था. मथुरा को श्रीकृष्ण की जन्मभूमि माना जाता है. याचिकाकर्ता ने दावा कि कि मुगल शासक औरंगजेब ने इस मंदिर के ढांचे को आंशिक रूप से ध्वस्त करवा दिया था. अतिरिक्त जिला जज छाया शर्मा ने इस मुकदमे को खारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता का इस मामले में कोई लोकस नहीं है. याचिकाकर्ता ने इस फैसले को चुनौती दी. यह मामला अभी जिला कोर्ट में लंबित है. इसी मुद्दे पर अधिवक्ता महेश माहेश्वरी की एक याचिका अनुच्छेद 226 के तहत इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष लंबित है.

कुतुब मीनार परिसर विवाद

दिल्ली की साकेत कोर्ट में इससे संबंधित एक याचिका दायर की गई है. दावा किया गया है कि दक्षिण दिल्ली स्थित कुतुब परिसर मुख्य रूप से 27 हिंदू और जैन मंदिरों का स्थान रह चुका है. इसे 12वीं सदी में कुतुबुद्दीन ऐबक ने ध्वस्त करवा दिया था. इसी परिसर में अभी कुतुब मीनार है. याचिका भगवान विष्णु और ऋषभ देव की ओर से दायर की गई है. याचिका में देवताओं की पूजा और दर्शन के अधिकार मांगे गए हैं. याचिकाकर्ता रंजना अग्निहोत्री और हरि शंकर जैन हैं. दोनों ही वकील हैं. वादी ने पूजा के प्रबंधन, संपत्ति के रखरखाव और एक ट्रस्ट बनाने की भी प्रार्थना की है.

वाराणसी ज्ञानवापी मस्जिद विवाद

वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद के स्थल पर एक प्राचीन मंदिर के जीर्णोद्धार हेतु एक याचिका सिविल कोर्ट में दाखिल की गई है. 10 लोगों ने याचिका दाखिल की है. इन्होंने अपने को देवताओं के मित्र के रूप में कार्य करने का दावा किया है. याचिका में कहा गया है कि ये सभी देवता मस्जिद परिसर के भीतर विद्यमान हैं. उन्होंने दावा किया है कि 1669 में मुगल शासक औरंगजेब के आदेश के तहत प्राचीन मंदिर में रखे ज्योतिर्लिंग को दूषित किया गया. मां श्रृगांर गौरी, भगवान गणेश और अन्य देवताओं के मंदिर यहां अब भी हैं. भगवान आदिदेव के प्राचीन मंदिर के आंशिक रूप से विध्वंस के बाद, ज्ञानवापी मस्जिद का एक नया निर्माण खड़ा किया गया. याचिका अधिवक्ता हरि शंकर जैन और पंकज कुमार वर्मा द्वारा दाखिल की गई है.

क्या है कानूनी अड़चन

किसी पूजा स्थल की 15 अगस्त, 1947 की स्थिति में बदलाव या किसी पूजा स्थल को पुन: प्राप्त करने के लिए मुकदमा दर्ज नहीं कराया जा सकता है. पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 में इसे साफ तौर पर उल्लिखित किया गया है. अधिनियम की धारा चार में कहा गया है कि 15 अगस्त, 1947 को विद्यमान पूजा स्थल का धार्मिक स्वरूप यथावत बना रहेगा. धार्मिक (स्वरूप या कैरेक्टर) से संबंधित याचिका पर सुनवाई करने पर यह धारा रोक लगाती है.

तो क्या ऐसी याचिकाओं पर सुनवाई संभव नहीं है

अगर 15 अगस्त 1947 के बाद पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र का रूपांतरण हुआ है, तो सुनावई संभव है. अयोध्या मामले पर फैसला सुनाते समय सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून का उल्लेख किया है. हालांकि, कोर्ट ने कहा कि फैसले को आधार बनाकर इसी तरह के दूसरे मामलों की सुनावई की मांग नहीं की जा सकती है.

1991 के कानून को भी मिली चुनौती

1991 के इस कानून को याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने चुनौती दी है. सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में आरोप लगाया गया है कि 1991 के कानून में कट्टरपंथी-बर्बर हमलावरों और कानून तोड़ने वालों द्वारा किए गए अतिक्रमण के खिलाफ पूजा स्थलों या तीर्थस्थलों के चरित्र को बनाए रखने के लिए 15 अगस्त, 1947 की समयसीमा मनमाना और तर्कहीन है. याचिका भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने दाखिल की है. आधार दिया गया है कि ये प्रावधान किसी व्यक्ति या धार्मिक समूह के पूजा स्थल को पुनः प्राप्त करने के न्यायिक सुधार का अधिकार छीन लेते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस मामले पर अपना पक्ष रखने को कहा है.

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