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पूर्वोत्तर में कई सड़क परियोजनाएं ठप, सुरक्षा के दृष्टिकोण से काफी अहम

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Published : Oct 26, 2021, 11:04 AM IST

ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) बीके खन्ना
ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) बीके खन्ना

सीमा पर भारत और चीन के बीच जारी तनाव के बीच, केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर राज्यों को आश्वासन दिया है कि भूमि बंद क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण सड़क और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए काम जल्द ही फिर से शुरू होगा. पढ़ें वरिष्ठ संवाददाता गौतम देबरॉय की रिपोर्ट

नई दिल्ली : केंद्र ने पूर्वोत्तर के सभी राज्यों को आश्वासन दिया है कि क्षेत्र में कई परियोजनाओं के लिए काम जल्द ही शुरू किया जाएगा. इन योजनाओं को सरकार पहले ही स्वीकृति दे चुकी है. परियोजनाओं के संबंध में केंद्र ने कहा है कि विशेष रूप से पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय (DoNER) कई सड़कों और पुल से जुड़ी परियोजनाओं की जिम्मेदारी संभाल रहा है.

हाल ही में केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर भारत के राज्यों की सरकारों के प्रतिनिधियों के साथ एक महत्वपूर्ण समीक्षा बैठक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए की. इस बैठक में पूर्वोत्तर भारत में परियोजनाओं को लेकर चर्चा की गई.

गौरतलब है कि कोविड-19 महामारी के कारण 2020-21 के दौरान कई सड़कों और पुल परियोजनाओं को रोक दिया गया है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पूर्वोत्तर राज्यों में विभिन्न परियोजनाओं में महज 0 से 30 प्रतिशत की प्रगति हुई है. धन का आवंटन होने के बावजूद प्रोजेक्ट धीमी गति से चल रहा है.

इस संबंध में ईटीवी भारत से बात करते हुए ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) बीके खन्ना ने कहा कि पूर्वोत्तर में सभी सड़क और बुनियादी ढांचा परियोजनाएं देश की सुरक्षा दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण हैं. ब्रिगेडियर ने कहा, 'परियोजनाओं को मंजूरी देना एक बात है और इसका कार्यान्वयन दूसरी बात है. पूर्वोत्तर में कई सड़क परियोजनाएं हैं जो वर्षों से बेकार पड़ी हैं. इन परियोजनाओं को पूरा करना बहुत महत्वपूर्ण है, खासकर ऐसे समय में जब भारत चीन से कड़ी चुनौती का सामना कर रहा है.'

सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर खन्ना पूर्वोत्तर के लगभग सभी राज्यों में सेवा दे चुके हैं. आंकड़ों के मुताबिक असम के 15.568 किलोमीटर लिंग मिरेन-मिकोंग-जोनाई सड़क निर्माण में मुश्किल से 2.00 प्रतिशत प्रगति हुई है. इसकी अनुमानित लागत लगभग 42.27 करोड़ रुपये है, जिसे पिछले साल फरवरी में मंजूरी दी गई थी.

इसी प्रकार, असम के 15.458 किलोमीटर लंबी मार्गेरीटा-देवमाली सड़क परियोजना में महज 3.00 प्रतिशत प्रगति हुई. इसे 43.57 करोड़ रुपये की लागत के साथ पिछले साल मार्च में मंजूरी दी गई थी.

सिक्किम, नगालैंड, मिजोरम और मेघालय में भी सात सड़क परियोजनाओं में भी शून्य प्रगति दर्ज की गई है. इस साल जनवरी से मार्च के बीच 1532.30 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत वाली इन सात परियोजनाओं को मंजूरी दी गई थी.

सरकारी आंकड़ों में कहा गया है कि मेघालय में सैहा-लुंगबुन-तलुआंग्राम-हाका सड़क और मावशिनरुत-हाहिम-बोको सड़कों को बेहतर बनाने का काम भी ठप पड़ा है.

इसी तरह, दक्षिण सिक्किम में राबोंग सब-डिवीजन के तहत ज़ारोंग-बिरिंग रोड के साथ रंगीत खोला पर 120 मीटर के स्पैन कम्पोजिट स्टील गर्डर ब्रिज निर्माण के काम में भी शून्य प्रगति हुई है. इन परियोजनाओं को 19.82 करोड़ रुपये की लागत से मंजूरी दी गई थी.

62.20 करोड़ रुपये की लागत से स्वीकृत नगालैंड के चंदांग सैडल से नोकलाक तक प्रस्तावित सड़क को बेहतर बनाने की परियोजना में भी कोई प्रगति नहीं देखी गई है.

ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) खन्ना ने कहा, 'सरकार को क्षेत्र में सड़क और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को पूरा करने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए.' उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर में परियोजनाओं को हमेशा रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इस क्षेत्र की अधिकांश सड़कें अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से जुड़ी हुई हैं जिनका उपयोग जरूरत के समय सुरक्षा कर्मियों और अन्य आवश्यक वस्तुओं की आवाजाही में किया जाता है.

गौरतलब है कि असम की सीमा, बांग्लादेश और भूटान के साथ अंतरराष्ट्रीय रूप से जुड़ी हैं. सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश चीन के साथ रणनीतिक सीमा साझा करते हैं, मेघालय बांग्लादेश के साथ अपनी सीमा साझा करते हैं. मणिपुर और मिजोरम के पूर्वोत्तर राज्य भी क्रमशः म्यांमार और बांग्लादेश के साथ अपनी सीमा साझा करते हैं.

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रविवार को ही देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को 'पवित्र और अक्षुण्ण' बताते हुए चीन की संसद ने सीमावर्ती इलाकों के संरक्षण और उपयोग संबंधी एक नया कानून अपनाया है जिसका असर भारत के साथ बीजिंग के सीमा विवाद पर पड़ सकता है. यह कानून अगले वर्ष एक जनवरी से प्रभाव में आएगा. इसके मुताबिक 'पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता पावन और अक्षुण्ण है.'

चीन की एनपीसी (National People's Congress) की स्थायी समिति के सदस्यों ने शनिवार को इस कानून को मंजूरी दी. शिन्हुआ की रिपोर्ट के मुताबिक कानून में यह भी कहा गया है कि सीमा सुरक्षा को मजबूत करने, आर्थिक एवं सामाजिक विकास में मदद देने, सीमावती क्षेत्रों को खोलने, ऐसे क्षेत्रों में जनसेवा और बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने, उसे बढ़ावा देने और वहां के लोगों के जीवन एवं कार्य में मदद देने के लिए देश कदम उठा सकता है. वह सीमाओं पर रक्षा, सामाजिक एवं आर्थिक विकास में समन्वय को बढ़ावा देने के लिए उपाय कर सकता है.

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गौरतलब है कि बीजिंग ने अपने 12 पड़ोसियों के साथ तो सीमा संबंधी विवाद सुलझा लिए हैं लेकिन भारत और भूटान के साथ उसने अब तक सीमा संबंधी समझौते को अंतिम रूप नहीं दिया है. भारत और चीन के बीच सीमा विवाद वास्तविक नियंत्रण रेखा पर 3,488 किलोमीटर के क्षेत्र में है जबकि भूटान के साथ चीन का विवाद 400 किलोमीटर की सीमा पर है.

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