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गलवान झड़प : हताहत चीनी सैनिकों के सवाल पर चीनी दूत की आनाकानी

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Published : Aug 3, 2020, 8:08 PM IST

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राजदूत सुन वेइडोंग

15 जून को गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई थी. इस झड़प में भारत के 20 सैनिक शहीद हुए थे. वहीं इस दौरान चीन के सैनिक भी हताहत हुए थे. इस संबंध में भारत में चीनी राजदूत सुन वेइडोंग से सवाल करने पर वह बचते नजर आए. उन्होंने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर हुई हिंसा के लिए एक बार फिर से भारतीय सैनिकों को ही दोषी ठहराया है. पढ़ें ईटीवी भारत की विशेष रिपोर्ट...

हैदराबाद : अमेरिकी शीर्ष अधिकारी का कहना है कि नेपाल और श्रीलंका की आंतरिक राजनीति में चीन के प्रभाव में इजाफा हुआ है. भारत में चीनी राजदूत सुन वेइडोंग से 15 जून की रात गलवान घाटी में हुए संघर्ष में चीनी सैनिकों के हताहत होने की संख्या के बारे में तीखे सवाल पूछे गए. इस संघर्ष में 20 भारतीय सैनिक मारे गए थे.

हालांकि, सून ने मारे गए चीनी सैनिकों की संख्या के बारे में खामोश रहना चुना. बीजिंग ने भी अभी तक इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं की है.

सून ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर हुई हिंसा के लिए एक बार फिर से भारतीय सैनिकों को ही दोषी ठहराया है. लेकिन गलवान घाटी की घटना में सही और गलत पक्ष बहुत स्पष्ट है. इस घटना के लिए चीन सीधे जिम्मेदार नहीं है. सुन वेइदोंग दिल्ली में इंस्टीट्यूट फॉर चाइनीज स्टडीज (आईसीएस) द्वारा आयोजित एक वेबिनार को संबोधित कर रहे थे.

चीनी राजदूत ने साथ ही यह दावा भी किया कि चीन शांतिपूर्ण समाधान के लिए प्रतिबद्ध है और भारत के लिए रणनीतिक खतरा नहीं है.

उन्होंने कहा कि दोनों पक्षों के संयुक्त प्रयासों से सीमा पर सैनिकों ने अधिकांश स्थानों पर विघटन किया है. जमीन पर स्थिति कम तनावपूर्ण हुई है और एक दूसरे के प्रति नाराजगी में भी कमी आ रही है.

राजदूत ने उन आरोपों को भी खारिज कर दिया कि गलवान घाटी पर किए जा रहे मौजूदा चीनी दावे नए और अनुचित हैं. पैंगोंग झील के उत्तरी किनारे पर, चीन की पारंपरिक प्रथागत सीमा रेखा वास्तविक नियंत्रण रेखा के अनुसार है.

उन्होंने कहा कि चीन ने अपने क्षेत्रीय दावे का विस्तार नहीं किया है. 2002 के बाद से नक्शों के आदान-प्रदान और वास्तविक नियंत्रण रेखा के स्पष्टीकरण के बारे में चीन द्वारा संकोच दिखाए जाने पर पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए वेइडोंग ने कहा कि यदि एक पक्ष एकतरफा वास्तविक नियंत्रण रेखा को बातचीत के दौरान अपनी समझ के अनुसार परिसीमित करता है, तो नए विवाद पैदा होने की संभावना हो सकती है और उसके साथ ही एलएसी के स्पष्टीकरण के मूल उद्देश्य से आप हट जाएंगे.

भारत-चीन सीमा तनाव आज चर्चा का विषय रहा, जब ऑस्ट्रेलियाई उच्चायुक्त बैरी ओ फ्रेल ने विदेश मंत्री एस जयशंकर को एक बैठक के लिए आमंत्रित किया. वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ संयम बरतने का आग्रह करते हुए ऑस्ट्रेलियाई उच्चायुक्त ने तनाव कम करने की प्रक्रिया में अपने देश के समर्थन का आश्वासन दिया.

ऑस्ट्रेलियाई उच्चायुक्त में मीडिया को जारी बयान में कहा, 'जैसा कि मैंने आज भारत के विदेश मंत्री को बताया, ऑस्ट्रेलिया ने यथास्थिति में एकतरफा बदलाव के प्रयासों का विरोध किया है, जो केवल तनाव और अस्थिरता के जोखिम को बढ़ाने का काम करता है. यह महत्वपूर्ण है कि द्विपक्षीय रूप से सहमत सिद्धांतों और मानदंडों ने कई दशकों में सीमावर्ती क्षेत्रों में तनाव की वृद्धि या संघर्ष को रोकने में मदद की है. इनपर आगे भी अमल जारी रखना आवश्यक है.'

बयान में कहा गया है कि ऑस्ट्रेलिया दक्षिण चीन सागर में उन कार्यों से बहुत चिंतित है जो क्षेत्र में अस्थिरता लाने का काम कर रहे हैं और तनाव को भड़का सकते हैं.

हालांकि, आज इंस्टीट्यूट फॉर चाइनीज स्टडीज की बातचीत में सुन वेइडोंग ने कहा कि चीन पर विस्तारवाद का तमगा नहीं लगाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि भारत दबाव बनाने के लिए बीजिंग के 'आंतरिक मामलों' पर रुख बदल रहा है. ताइवान, हांगकांग, झिंजियांग और क्सिजंग मामले पूरी तरह से चीन के आंतरिक मामले हैं और चीन की संप्रभुता और सुरक्षा पर निर्भर करते हैं. जबकि चीन अन्य देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता है, वह किसी भी बाहरी हस्तक्षेप की अनुमति अपने आतंरिक मामलों में नहीं देगा और कभी भी अपने मूल हितों का मध्यस्थता बर्दाश्त नहीं करेगा.

हाल ही में, अमेरिका के ट्रंप प्रशासन में शीर्ष अधिकारी लिसा कर्टिस ने कहा है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर मौजूदा तनाव ने दीर्घकालिक प्रभाव डालते हुए भारत और चीन के बीच रिश्तों को बदल दिया है.

कर्टिस ने कहा, 'दक्षिण एशियाई देशों का चीन के प्रति दृष्टिकोण और वे किन परिस्थितियों में विकसित हुए हैं, को ध्यान में रखते हुए मैं सिर्फ भारत और चीन के बीच पिछले कुछ महीनों में बढ़े सीमा पर विवाद पर ध्यान केंद्रित करना चाहूंगी. शुक्र है कि हम कुछ बहुत ही तनावपूर्ण हफ्तों के बाद उनकी सेनाओं के विघटन को देखने लगे हैं. यह एक अच्छी बात है. हमें उम्मीद है कि यह जारी रहेगा. लेकिन मुझे लगता है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन ने भारत पर जो दबाव डाला है, उसका इस बात पर दीर्घकालिक असर होगा कि भारत अब चीन के साथ अपने रिश्ते को कैसे देखता है. यह दोनों के बीच की गतिशीलता को बदल देगा.'

यूएस नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल की निदेशक कर्टिस ने कहा, 'भारत प्रत्यक्ष रूप से जता चुका है कि उसके पास चीन के खिलाफ खड़े होने की इच्छाशक्ति और क्षमताएं हैं. इसमें कोई शक नहीं कि भारत ने चीनी एप पर प्रतिबंध लगाकर और चीनी निवेश के आर्थिक अनुबंधों को बाधित करके आर्थिक तौर पर चीन को क्षति पहुंचाई है और मुझे लगता है कि भारत-प्रशांत क्षेत्र के बाकी देश इसे बहुत ध्यान से देख रहे हैं. साथ ही मुझे ये भी लगता है कि उन्हें भारत के संकल्प से प्रोत्साहन मिलेगा.'

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दक्षिण एशियाई क्षेत्र में भारत-चीन विवादों के प्रभाव पर किए गए सवाल के जवाब में कर्टिस ने कहा कि वर्षों पहले से ही यह स्पष्ट हो गया था कि दोनों के बीच लंबे समय से चल रहे सीमा से जुड़े विवाद आसानी से हल नहीं होंगे और प्रत्येक देश का आगे बढ़ना दूसरे के लिए असुविधाजनक होगा. निश्चित रूप से हमने भारत के पड़ोसियों के साथ चीन के प्रभाव को बढ़ता देखा है. उदाहरण के तौर पर नेपाल और श्रीलंका में. चीन इन देशों में न केवल आर्थिक वर्चस्व स्थापित कर रहा है, बल्कि उनकी आंतरिक राजनीति में भी हस्तक्षेप कर रहा है.

कर्टिस ने कहा कि बांग्लादेश ने थोड़ा अधिक साहस दिखाया है और अपने विदेशी संबंधों को स्वयं संतुलित करना चाहता है और फिर निश्चित रूप से चीन और पाकिस्तान के बीच एक बहुत करीबी सुरक्षा साझेदारी विकसित हो रही है जो कि ऋण और सीपीईसी (चीन पाक आर्थिक गलियारा) के माध्यम से बढ़ती पाकिस्तानी निर्भरता पर आधारित है.

(वरिष्ठ पत्रकार-स्मिता शर्मा)

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