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विशेष लेख : बलात्कार की संस्कृति को सार्थक रूप से संबोधित करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति क्यों नहीं ?

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Published : Dec 16, 2019, 2:15 PM IST

Updated : Dec 16, 2019, 2:45 PM IST

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निर्भया की पुण्यतिथि

2009 से 2019 की अवधि में (लोकसभा जिसे भारतीय लोकतंत्र का मंदिर कहा जाता है) महिलाओं के खिलाफ अपराधों के घोषित मामलों में आरोपित सांसदों की संख्या में 850 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. ये हालात और भी भयानक लगने लगते हैं जब लोकतंत्र के रखवाले खुद यौनिक शिकारी बन जाते हैं.

उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले में शनिवार (14 दिसंबर) को एक 18 साल की लड़की के साथ कथित तौर पर बलात्कार किया गया और अब जिस समय मैं ये लिख रहा हूं, उस समय वह असहाय पीड़िता कानपुर के एक अस्पताल में अपनी जिंदगी के लिए लड़ रही है. यह लगभग 100 बलात्कार अपराधों में से एक है, जो भारत में हर ही दिन होते हैं.16 दिसंबर, 2012 को नई दिल्ली के मुनिरका में हुए भयानक सामूहिक बलात्कार के अपराध की सातवीं वर्षगांठ के संदर्भ में एक दायरा प्रदान करते हैं.

इस अत्याचार को निर्भया केस के रूप में याद किया जाता है और पीड़िता की मां को अब भी इसके न्यायिक समापन का इंतजार है. क्या चारों दोषियों की मौत की सज़ा को जारी रखा जाएगा ? उम्मीद है कि इस मामले की सुनवाई बुधवार (18 दिसंबर) को होगी, जिसमें से एक दोषी की अंतिम समीक्षा याचिका पर सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को सुनवाई करेगा. किसी योजना की तुलना में यह संयोग की बात ज्यादा है कि 16 दिसंबर वह तारीख है जब दिल्ली की एक शहर की अदालत ने कुख्यात उन्नाव बलात्कार मामले पर फैसला सुनाया जाना है, जिसमें भाजपा के पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर और उनके सहयोगियों पर एक नाबालिग के साथ जून 2017 में सामूहिक बलात्कार करने का आरोप लगाया गया है.

मुख्य आरोपी की राजनीतिक बैक ग्राउंड को देखते हुए, उन्नाव मामला विशिष्ट रूप से भयावह है जिसमें पीड़िता और उसके परिवार को स्थानीय पुलिस द्वारा अन्य अपराधों में आरोपित किया गया और न्यायलय जाने के रास्ते में पीड़िता, उसके वकील और करीबी रिश्तेदारों को एक कार 'दुर्घटना' में गंभीर रूप से घायल हो गये. भारत के विभिन्न हिस्सों में पिछले महीने में अन्य कई सिहरन पैदा करने वाले बलात्कार के मामलों हैं जो गहराई तक समाई बलात्कार की संस्कृति की गवाही देते हैं जिसे न तो राज्य और न ही समाज एक प्रभावी और सतत तरीके से संगरोध करने और घटाने में सक्षम हैं.

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राष्ट्रीय अपराध अनुसंधान ब्यूरो ने कुछ गंभीर आंकड़े संकलित किए हैं. 2017 में, बलात्कार के मामलों की कुल संख्या 33,885 थी, जिसका अर्थ है कि औसतन 93 महिलाएं प्रतिदिन बलात्कार का शिकार होती थीं और उनमें से एक तिहाई नाबालिग थीं. इसके अलावा, लगभग 88,000 महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न, या एक दिन में औसतन 240 मामले दर्ज हुए. पिछले महीने कुछ और दिल दहलाने वाले मामले सामने आये जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर आक्रोश की लहर दौड़ा दी, उनमें हैदराबाद, तेलंगाना की एक युवा पशु चिकित्सक का मामला शामिल है, जिसके साथ सामूहिक बलात्कार करके उसकी हत्या कर दी गई थी. उन्नाव के पास फिर से, एक बलात्कार पीड़िता को आग लगा दी गई क्योंकि वह अदालत में गवाही देने के लिए जा रही थी. पटना कॉलेज में 20 साल की छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया. ये शर्मनाक सूची अभी भी बढ़ रही है.

न्याय में देरी को अक्सर न्याय से वंचित होना माना जाता है और एक खतरनाक उपलब्धि के रूप में, हैदराबाद महिला-चिकित्सक बलात्कार के आरोपियों को देर रात पुलिस मुठभेड़ के माध्यम से मार गिराकर 'त्वरित न्याय' दिलाया जाता है. हालांकि इस हरकत को शासन में वरिष्ठ पदों पर आसीन लोगों सहित कई निर्वाचन क्षेत्रों द्वारा सराहा गया था, लेकिन यह एक खतरनाक ढलान की ओर इशारा करता है कि भारतीय राज्य और समाज कानून की जांच और न्याय की नियत प्रक्रिया की अनदेखी कर रहे हैं. पुलिस पर जिस बात के लिए फूल बरसाए जा रहे हैं, वह भीड़तंत्र द्वारा किसी को घेरकर मार देने के बराबर है और इस तरह की हरकत को कानूनी जामा पहनाने का काम वो संस्था यानि पुलिस खुद कर रही है जिसका काम इस तरह की गतिविधियों को रोकना है.

यदि यह भारतीय न्यायिक प्रणाली के टूटने की ओर इशारा करता है, जो 3.3 करोड़ से अधिक मामलों के बोझ के नीचे दबी हुई है, जो अभी भी लंबित हैं (कुछ 50 से), संरचनात्मक खामियों और अधिक दृढ़ता से अंतःस्थापित दिखाई पड़ती है. एक नियमात्मक लोकतंत्र कानून के शासन पर आधारित है और बारीकी से जांचकरने पर पता चलेगा कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र व्यापक रूप से विकृत और द्वैध है.

विधायक लोकतांत्रिक लोकाचार में लोगों के चुने हुए प्रतिनिधियों और संवैधानिक छतरी के तहत कानून बनाने वाले लोगों के रूप में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं. अक्सर यह माना जाता है कि दुनिया भर में बलात्कार इतना व्यापक है, इसका कारण यह है कि कोई राजनैतिक इच्छाशक्ति नहीं है, या यह कहें कि प्रमुख पुरुष अभिजात वर्ग, विश्व स्तर पर बलात्कार को मानवीय परिस्थिति के हिस्से के रूप में स्वीकार कर चुका है.

दुनिया भर में और भारत में 'मी टू' के मामले सामने आये, जिसमें अमीर और शक्तिशाली शामिल हैं, वे इसका साफ़ उदाहरण हैं. आंकड़े होश उड़ा रहे हैं और उन्नाव-सेंगर सम्बन्ध (फैसला 16 दिसंबर को होने की उम्मीद है) इस घिनौने तंत्र की नोक बराबर है. एडीआर (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म) ने भारतीय विधायकों का विस्तृत सर्वेक्षण किया है - दोनों केंद्र और राज्य स्तर (सांसद और विधायकए) पर और परिणाम चौंकाने वाले हैं, लेकिन इसमें कोई आश्चर्यचकित होने की बात नहीं है. 2009 से 2019 की अवधि में (लोकसभा जिसे भारतीय लोकतंत्र का मंदिर कहा जाता है) महिलाओं के खिलाफ अपराधों के घोषित मामलों में आरोपित सांसदों की संख्या में 850 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. ये हालात और भी भयानक लगने लगते हैं जब लोकतंत्र के रखवाले खुद यौनिक शिकारी बन जाते हैं. एडीआर की रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रमुख राजनीतिक दलों में 'भाजपा के सबसे अधिक सांसद / विधायक हैं यानी 21, इसके बाद भारतीय कांग्रेस पार्टी में 16 और वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के 7 सांसद / विधायक हैं जिन्होंने महिलाओं के साथ अपराधों से संबंधित मामलों की घोषणा की है.' कोई आश्चर्य नहीं कि भारत में बलात्कार की संस्कृति को सार्थक रूप से संबोधित करने की कोई राजनीतिक इच्छाशक्ति क्यों नहीं है? यह उन्नाव-सेंगर मामले और दिल्ली-निर्भया मामले में आने वाले फैसलों की समीक्षा एक सबक होगी और ये भी देखना ज़रूरी होगा कि कानून सबके लिए बराबर है या नहीं, वो भी तब जब हम 2020 में कदम रखने जा रहे हैं.

(लेखक- सी उदय भास्कर)

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Last Updated :Dec 16, 2019, 2:45 PM IST
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