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अगहन गुरुवार में Mata Lakshmi की पूजा का विशेष महत्व, इस व्रत से मिलता है खास लाभ

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Published : Nov 20, 2021, 10:59 PM IST

अगहन (Aghan Thursday) के गुरुवार में माता लक्ष्मी (Mata Lakshmi) की पूजा का विशेष विधान है.अगहन गुरुवार को महालक्ष्मी व्रत (Mahalaxmi Vrat) की कथा सुनने का विशेष विधान है.

Worship of Mata Lakshmi on Aghan Thursday
अगहन गुरुवार में माता लक्ष्मी की पूजा

रायपुर: अगहन माह (Agrah maah) में कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में होने वाले गुरुवार को अगहन का गुरुवार (Aghan Thursday) कहा जाता है. अगहन के गुरुवार में माता लक्ष्मी (Mata Lakshmi) की पूजा का विशेष विधान है. इस बार अगहन में चार गुरुवार पड़ रहे हैं. जिसमें पहला गुरुवार 25 नवंबर, दूसरा गुरुवार 1 दिसंबर, तीसरा गुरुवार 8 दिसंबर और चौथा गुरुवार 15 दिसंबर को है, जो कि विशेष तरीके से मनाया जाता है.

इस व्रत से मिलता है खास लाभ

मां लक्ष्मी के व्रत का है महत्व

अगहन गुरुवार को महालक्ष्मी व्रत (Mahalaxmi Vrat)की कथा सुनने का विशेष विधान है. इन माह में किया गया व्रत-उपवास और साधना बहुत ही फलदाई होता है. वहीं, उपवास पूरी तरह से धन की अधिष्ठात्री देवी माता महालक्ष्मी के लिए किया जाता है. दीपावली के पर्व पर घरों में बहुत सफाई की जाती है. उसी के आगे क्रम में इस पर्व के लिए साफ-सफाई स्वच्छता और निर्मलता का विशेष ध्यान रखा जाता है. माता लक्ष्मी को वैसे भी सफाई बहुत पसंद है. स्वच्छता जहां होती है. वहीं, माता लक्ष्मी का निवास स्थाई रूप से होता है.

इस बार गुरुवार है खास

वहीं, इस बार अगहन गुरुवार का महत्व और भी ज्यादा बढ़ गया है. जब यह त्यौहार पुष्य नक्षत्र की बेला में पड़ रहा है. प्रथम गुरुवार पुष्य नक्षत्र शुक्ल योग शुभ योग गर और ववकरण के मध्य मनाया जाएगा. इस दिन चंद्रमा पूर्ण रूप से कर्क राशि में विराजमान रहेगा. कर्क राशि चंद्रमा की राशि मानी जाती है. इस दिन गुरु पुष्य अमृत योग रवि योग सर्वार्थ सिद्धि योग पड़ रहा है. इस शुभ मुहूर्त में पुंसवन सीमांत सूति स्नान नामकरण अन्नप्राशन जात कर्म आदि शुभ कार्य करना बहुत ही फलदाई होता है.

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लक्ष्मी-नारायण की होती है खास पूजा

गुरुवार का दिन लक्ष्मी नारायण भगवान और महालक्ष्मी जी के लिए ही समर्पित है. इस पर्व में घरों में द्वार पर सफेद रंगोली से या सफेद आटे के द्वारा महालक्ष्मी की पदचाप पद चिन्ह बनाकर श्रृंगार किया जाता है. इन पद चिन्हों को सुंदर रूप में बनाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि इन पद चिन्हों को ही देखकर महालक्ष्मी घरों में आती है और अपना आशीष बरसाती है. वित्त को देने वाली कमल पुरी विद्या लक्ष्मी माता को लाल कपड़े के आसन में आह्वान कर बुलाया जाता है. बैठक के नीचे सुंदर रंगोली बनाई जाती है.

रंगोली बनाने का है विशेष विधान

प्रत्येक अगहन गुरुवार को सूर्योदय के पूर्व उठकर स्नान ध्यान आदि से निवृत्त होकर माता महालक्ष्मी के लिए विभिन्न किस्म की रंगोली बनाने का विधान है. श्वेत रंग माता लक्ष्मी को बहुत प्रिय है. चावल के आटे आदि से रंगोली का निर्माण करना चाहिए. विधि-विधान पूर्वक माता लक्ष्मी को आह्वान कर घर में बुलाया जाता है. इसके उपरांत चार बार सत्य लक्ष्मी देवी को शुद्ध जल से नहलाया जाता है.

इस विधि से होती है पूजा

गंगा के पवित्र जल का भी उपयोग किया जाता है. दूध, दही, पंचामृत, बताशा, लाई, सिंघाड़ा, कमल गट्टा, पोखर आदि के माध्यम से धन की अधिष्ठात्री देवी की पूजा की जाती है. इसके साथ ही श्वेत मिठाईयां, वस्त्र, ऋतु फल आदि महालक्ष्मी जी को भोग लगाया जाता है. पुष्प माला आदि के माध्यम से महालक्ष्मी का श्रृंगार किया जाता है. महालक्ष्मी माता को कमल के फूल बहुत प्रिय हैं. अतः उन्हें कमल का फूल चढ़ाया जाना चाहिए. इसके साथ ही चावल से अष्टदल कमल बना कर उनकी पूजा की जाती है. कमल आधी लक्ष्मी जी का वाहन भी है. यह फूल उन्हें बहुत प्रिय है. आज के शुभ दिन पीले वस्त्र आदि पहनने का विधान है. व्रत और उपवास के साथ इस पर्व को मनाया जाता है. अखंड श्रद्धा अनंत आस्था के साथ इस पर्व के दिन श्री सुक्तम लक्ष्मी सुक्तम पुरुष सुक्तम का पाठ करना उचित रहता है. बहुत से लोग कनकधारा स्रोत आदि का भी पाठ करते हैं. यह सभी मूलता योग लक्ष्मी देवी के ही मंत्र हैं. आज के दिन संयम सहिष्णुता और सुधीर होने का परिचय देना चाहिए. इन चारों गुरुवारो में अनेक तरह के शुभ कार्य किए जा सकते हैं. 15 नवंबर से देव जागरण हो चुके हैं. अतः गुरुवारों को सगाई, वाकदान, तिलक, विवाह आदि के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है.

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