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विकट भयंकर, धूम्रवर्ण और विघ्नराज के स्वरूप में भी होती है भगवान गणेश की पूजा

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Published : Sep 10, 2021, 8:39 PM IST

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भगवान गणेश की पूजा

पुराणों में किसी भी धार्मिक अनुष्ठान या पूजा पाठ में सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा करने का विधान है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि सभी देवताओं में सबसे छोटे माने जाने वाले गणेशजी की पूजा सबसे पहले क्यों की जाती है. शिव महापुराण में इससे संबंधित कथा का विस्तार से वर्णन है.

भोपाल: पुराणों में किसी भी धार्मिक अनुष्ठान या पूजा पाठ में सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा (Worship of Lord Ganesha) करने का विधान है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि सभी देवताओं में सबसे छोटे माने जाने वाले गणेशजी की पूजा सबसे पहले क्यों की जाती है. शिव महापुराण में इससे संबंधित कथा का विस्तार से वर्णन है. मां पार्वती के द्वार पाल बने गणेश जी का सिर जब शिव जी ने क्रोध में आकर काट दिया था, तब उनके शरीर पर हाथी का सिर जोड़ा गया. जब पार्वती जी ने शिवजी से अपने पुत्र की पूजा इसी रूप में किए जाने की मांग की जिसपर शिवजी ने यह वरदान दिया कि सभी देवी देवताओं में सबसे पहले गणेश जी की पूजा होगी, अन्य पुराणों के मुताबिक जल तत्व के अधिपति होने से गणेश प्रथम पूज्य माने जाते हैं. हम आपको भगवान गणेश के विभिन्न नामों और रूपों की कथा बताते हैं.

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भगवान गणेश का विघ्नराज स्वरूप
विघ्नराज के रूप में होती है भगवान गणेश की पूजा
विकट- भयंकर स्वरूप

गणेश जी सभी मंगलकार्यो के देवता हैं इसलिए किसी भी प्रकार के अमंगल से बचने के लिए लोग गणेश जी की मूर्ति अपने घरों, दुकानों और प्रतिष्ठानों में लगाते हैं, वे एक शुभंकर भी हैं. महर्षि पाणिनि के अनुसार दिशाओं के स्वामी यानी अष्टवसुओं के समूह को गण कहा जाता है जिनके स्वामी भगवान गणेश हैं. भगवान गणेश जी का एक स्वरूप विकट भी है. ये इनका छठा स्वरूप है विकट यानी भयंकर. गणेश जी का धड़ मनुष्य का है और मस्तक हाथी का है इसी को सार्थक करते हुए भगवान गणेश अपने भक्तों के सभी विघ्नों को दूर करने के लिए विकट रूप धारण करके खड़े हो जाते हैं. विकट रूप की कथा के मुताबिक भगवान विष्णु ने जलंधर नाम के राक्षस के विनाश के लिए उनकी पत्नी वृंदा का सतीत्व भंग किया, उससे एक दैत्य उत्पन्न हुआ जिसका नाम था कामासुर. कामासुर ने शिव की आराधना करके त्रिलोक विजय का वरदान प्राप्त कर लिया, इसके बाद उसने अन्य दैत्यों की तरह ही देवताओं पर अत्याचार करना शुरू कर दिए, तब सारे देवताओं ने भगवान श्री गणेश का ध्यान किया. भगवान गणपति ने मोर पर विराज कर विकट रूप में अवतार लिया देवताओं को अभयदान देकर कामासुर को पराजित किया.

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भयंकर स्वरूप की पूजा
विघ्नराज के रूप में होती है भगवान गणेश की पूजा
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भगवान गणेश की पूजा
विघ्नराज के रूप में होती है भगवान गणेश की पूजा
भगवान गणेश का विघ्नराज स्वरूप

हम आपको गणेश जी के विघ्न राज स्वरूप के बारे में बता रहे हैं. पंडित विष्णु राजोरिया के मुताबिक श्री गणेश जी का सातवां नाम विघ्ननाशक या विघ्नराज है भगवान श्री गणेश समस्त विघ्नों के विनाशक हैं और इसलिए किसी भी कार्य के प्रारंभ में गणेश जी की पूजा अनिवार्य मानी गई है. कथा के मुताबिक एक बार माता पार्वती अपनी सखियों के साथ बातचीत के दौरान जोर से हंस पड़ी तब उनकी हंसी से एक विशाल पुरुष की उत्पत्ति हुई पार्वती जी ने उसका नाम मम रख दिया और माता पार्वती से मिलने के बाद मम वन में तप करने के लिए चला गया, वहां उसकी मुलाकात शम्बरासुर से हुई जिसने उसे कई आसुरी शक्तियां सिखा दीं और उसे गणेशजी की उपासना करने को कहा. मम ने गणपति को प्रसन्न कर वरदान में उनसे ब्रह्मांड का राज मांग लिया.शम्बरासुर ने उसका विवाह अपनी पुत्री के साथ कर दिया. दानवों के गुरू शुक्राचार्य ने जब मम के बारे में सुना तो उसे दैत्यराज के पद पर विभूषित कर दिया. जिसके बाद अहंकार में आकर ममासुर ने अत्याचार शुरू कर दिए, तब देवताओं ने गणेश जी की उपासना की. इसके बाद गणेशजी विघ्नराज के रूप में अवतरित हुए और उन्होंने ममासुर का मान मर्दन कर देवताओं को उसकी कैद से छुड़वाया. तभी से गणेशजी की विघ्रविनाशक के रूप में भी पूज्यनीय हुए.

धूम्रवर्ण स्वरूप

भगवान गणेश के इस स्वरूप की पूजा करने से सभी कष्ट आग की तरह भस्म होते हैं. धूम्रवर्ण गणेश जी का आठवां स्वरूप है. भगवान श्री गणेश जी मंगल के अधिष्ठाता हैं, उनकी पत्नियां रिद्धि और सिद्धि सुख, समृद्धि की देवी और उनके दोनों बेटे शुभ और लाभ भी समृद्धि लाने वाले माने जाते हैं. भगवान श्री गणेश का आठवां स्वरूप धूम्रवर्ण या धूमकेतु है. इसका अर्थ धुंधले रंग की ध्वजा वाला होता है. इस रूप में पूजे जाने पर भगवान गणेश मनुष्य के आध्यात्मिक और भौतिक मार्ग में आने वाले सभी कष्टों को अग्नि की तरह भस्मीभूत कर देते हैं. भगवान गणेश के धूम्रवर्ण की कथा के मुताबिक एक बार सूर्य देव को छींक आ गई और उनकी छींक से एक दैत्य की उत्पत्ति हुई , उसका नाम था अहम, अहम ने शुक्राचार्य को अपना गुरू बना कर उनसे दैत्य शक्तियां प्राप्त की और अहंतासुर बन गया, उसने खुद का एक राज्य बसा लिया. भगवान गणेश की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया और कई वरदान प्राप्त कर लिए और देवताओं पर अत्याचार करने लगा. तब भगवान श्रीगणेश ने धूम्रवर्ण के रूप में अवतार लिया उनका रंग धुएं जैसा था. ध्रूम वर्ण के रूप में गणेश जी ने अहंतासुर को हरा दिया और उसे अपनी भक्ति प्रदान की.

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