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शिक्षा और संचार का बेहतर माध्यम बना कम्युनिटी रेडियो

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Published : Mar 27, 2021, 10:26 PM IST

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कम्युनिटी रेडियो

जहां देश में आकाशवाणी दशकों से अपनी सेवाएं दे रहा है. वहीं निजी एफएम भी लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं. इसी क्रम में सामुदायिक रेडियो (community radio) भी सशक्त माध्यम बना है. देशभर में 300 से ज्यादा सामुदायिक रोडियो चल रहे हैं. वहीं छत्तीसगढ़ की बात करें तो यहां 7 कम्युनिटी रेडियो चल रहे हैं. अकले राजधानी रायपुर में तीन कम्युनिटी रेडियो का संचालन हो रहा है.

रायपुर: संसार के सबसे सशक्त और कारगर संचार माध्यमों में रेडियो आज भी प्रासंगिक है. सबसे सहज उपलब्ध, प्रचलित, सुलभ और सस्ता साधन रेडियो है. रेडियो शब्द सुनते ही आंखों के सामने अतीत के कई यादें उभर कर सामने आ जाती हैं. जिसमें बिनाका गीतमाला से लेकर समाचार और कमेंट्री लोग नहीं भूले हैं.

आवाज से बदलती जिंदगी

अब आकाशवाणी जैसे पारंपरिक माध्यम के साथ-साथ एफएम रेडियो का भी जादू श्रोताओं के सिर चढ़कर बोलने लगा है. पिछले कुछ अर्से में ही रेडियो की शक्ल, सूरत और सीरत में काफी बदलाव हो चुका है. जहां देश में आकाशवाणी दशकों से अपनी सेवाएं दे रहा है. वहीं निजी एफएम भी लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं. इसी क्रम में सामुदायिक रेडियो (community radio) भी सशक्त माध्यम बना है. कम्युनिटी रेडियो- व्यक्ति विशेष, समूह और समुदायों के लिए होता है. देशभर में 300 से ज्यादा सामुदायिक रेडियो चल रहे हैं. वहीं छत्तीसगढ़ की बात करें तो यहां 7 कम्युनिटी रेडियो हैं. अकले राजधानी रायपुर में तीन कम्युनिटी रेडियो का संचालन हो रहा है.

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कम्युनिटी रेडियो

छत्तीसगढ़ में सात कम्युनिटी रेडियो

छत्तीसगढ़ में भी सात सामुदायिक रेडियो चल रहे हैं. राजधानी रायपुर में ही 3 सामुदायिक रेडियो हैं, जिनमें इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, एनआईटी और कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय में कम्युनिटी रेडियो चल रहे हैं. हालांकि कृषि विश्वविद्यालय और एनआईटी में रेडियो कुछ कारणवश बंद है. कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय का कम्युनिटी रेडियो (90.8 FM रेडियो संवाद) नियमित रूप से कार्यक्रमों का प्रसारण किया जा रहा है.

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छात्रों के अलावा आसपास के ग्रामीण समुदाय के लिए प्रसारण

90.8 FM रेडियो संवाद का प्रसारण किया जा रहा है. रेडियो संवाद में विशेष तौर पर आसपास के ग्रामीण समुदाय के स्वास्थ्य और रोजगार के विषय में जागरूकता संबंधी कार्यक्रमों का प्रसारण किया जा रहा है. कुशाभाऊ पत्रकारिता विश्वविद्यालय के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विभाग के विभागाध्यक्ष और रेडियो संवाद के प्रमुख डॉक्टर नरेंद्र त्रिपाठी ने बताया कि कम्युनिटी रेडियो संचार माध्यमों में बेहद कारगर है, इसमें ना केवल लोगों से संवाद बनाने का. बल्कि जन जागरूकता के लिए विपरीत परिस्थितियों में भी संचार का सबसे बेहद सशक्त माध्यम है.

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विभिन्न मुद्दों पर प्रसारित किए जाते हैं कार्यक्रम

रेडियो संवाद में बीते 2 साल में मतदाता जागरूकता, कोरोना जागरुकता, बालिका शिक्षा और वर्तमान में मातृ शिशु सुरक्षा अभियान पर जागरूकता कार्यक्रम का प्रसारण किया जा रहा है. साथ ही समसामयिक मुद्दों को लेकर समय-समय पर लोगों की राय भी ली जा रही है. जिससे कि उनका जुड़ाव सीधे तौर पर होता है. डॉक्टर नरेंद्र त्रिपाठी ने बताया कि सबसे बड़ी बात है कि रेडियो प्रसारण के सभी कार्यक्रम कुशाभाऊ ठाकरे विश्वविद्यालय के छात्रों की ओर से तैयार किए जाते हैं. इसके माध्यम से ना केवल रेडियो का प्रसारण होता है, बल्कि युवा छात्रों को भी अपने करियर और प्रैक्टिकल तौर पर नॉलेज भी मिल जाता है.

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युवाओं के लिए कम्युनिटी रेडियो बेहतर मौका

रेडियो संवाद में आरजे के तौर पर सेवा दे रहे अभिषेक कटियार ने बताया कि कम्युनिटी रेडियो युवाओं के लिए और भी ज्यादा कारगर है. जिस तरह से कोविड काल में बड़े पैमाने पर नौकरियां गई हैं. ऐसे दौर में कम्युनिटी रेडियो के माध्यम से युवाओं को रोजगार और स्वरोजगार के लिए कई तरह की जानकारियां दी जा रही हैं. उन्होंने बताया कि पत्रकारिता में जो युवा करियर बनाना चाहते हैं, उनके लिए भी रेडियो जॉकी के लिए बेहतर भविष्य है. इसकी शुरुआत के लिए कम्युनिटी रेडियो से बेहतर ऑप्शन नहीं हो सकता. कम्युनिटी रेडियो से जुड़कर युवा अच्छे प्लेटफार्म के रूप में अपनी तैयारी कर सकते हैं.

महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर कार्यक्रमों का प्रसारण

रेडियो सहायक ज्योति साहू ने बताया कि महिलाओं के लिए कम्युनिटी रेडियो जागरूकता का काम कर रहा है. ग्रामीण परिवेश में जहां महिलाओं में कुपोषण और अन्य तरह की शारीरिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है. ऐसे में कम्युनिटी रेडियो के माध्यम से उन्हें समय-समय पर ना केवल समसामयिक घटनाओं की जानकारी बल्कि स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए बेहतर जानकारी भी उपलब्ध होती है. साथ ही वे सीधे तौर पर कम्युनिटी रेडियो के माध्यम से सीधा संवाद कर सकते हैं.

कम्युनिटी रेडियो संचार का बेहतर माध्यम

वरिष्ठ रेडियो उद्घोषक और अग्रसेन महाविद्यालय में पत्रकारिता विभाग के विभागाध्यक्ष विभाष झा कहते हैं कि कम्युनिटी रेडियो समाज में संचार का सबसे बेहतर माध्यम है. यही वजह है कि टीवी, इंटरनेट जैसे दौर में भी रेडियो की विश्वसनीयता कम नहीं हुई है. छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में जहां बड़ी आबादी वन क्षेत्र और कृषि क्षेत्र से ताल्लुक रखती है. यहां दूरदराज क्षेत्रों में भी जहां पर संचार के दूसरे माध्यमों की पहुंच नहीं है. वहां पर कम्युनिटी रेडियो संचार का बेहतर माध्यम बना हुआ है. यही वजह है कि छत्तीसगढ़ में काफी पहले से कम्युनिटी रेडियो पर काम चल रहा है. राजधानी में ही पुरानी बस्ती स्थित अग्रसेन महाविद्यालय में भी कम्युनिटी रेडियो को लेकर स्टूडियो तैयार हो चुका है. इसके लिए आवेदन भी कर दिया गया है. उन्होंने बताया कि सरगुजा में सबसे पहले कम्युनिटी रेडियो की शुरुआत हुई थी. इसके बाद अब प्रदेश में सरगुजा के अलावा बिलासपुर और रायपुर में भी कई कम्युनिटी रेडियो के लिए काम किया जा रहा है.

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बस्तर में कम्युनिटी रेडियो की नहीं मिल पा रही अनुमति

बस्तर में कम्युनिटी रेडियो शुरू न हो पाने को लेकर विभाग झा ने बताया कि बस्तर वैसे तो बड़ी आबादी आदिवासी बाहुल्य और वन क्षेत्रों रहती है, लेकिन वहां पर माओवादी गतिविधियों के चलते कम्युनिटी रेडियो को अनुमति नहीं मिल पा रही है. जिस तरह से लगातार माओवादी घटनाएं सामने आती रहती हैं. ऐसे में कम्युनिटी रेडियो का दुरुपयोग ना हो इस कारण ही बस्तर में कम्युनिटी रेडियो को अनुमति नहीं मिल रही है. बावजूद इसके रायपुर, बिलासपुर और सरगुजा में कम्युनिटी रेडियो ने लोगों के बीच अच्छी पैठ बनाई है. कोविड के दरमियान भी जब लोग अपने घरों में कैद थे, तब कम्युनिटी रेडियो ने संवाद का बेहद कारगर काम किया है.

आपदा की स्थिति में कम्युनिटी रेडियो सर्वाधिक उपयोगी

ग्रामीण और आदिवासी अंचलों में ऐसे प्रयासों की जरूरत सहज समझी जा सकती है. ऐसी जगह पर संचार के साधनों की बहुलता नहीं है. वहीं कई बार व्यवसायिक संचार माध्यम इन क्षेत्रों की उपेक्षा भी करते हैं. कम्युनिटी रेडियो 10 से 15 किलोमीटर के क्षेत्र में सूचना और मनोरंजन का सशक्त साधन है. यही नहीं आपदा की स्थिति में यह रेडियो सर्वाधिक उपयोगी भी साबित हुआ है. जिस तरह से कोविड में लॉकडाउन और जरूरी संदेश पहुंचाने के लिए लोग घरों में कैद थे. इस दौरान कम्युनिटी रेडियो ने देश भर में बड़े ही सशक्त माध्यम के रूप में काम किया है.

इतिहास में सामुदायिक रेडियो

कम्युनिटी रेडियो स्टेशन स्वयंसेवी (नॉन-प्रॉफिट) संगठनों की ओर से स्थापित होते हैं. इनके कार्यक्रमों में स्थानीय लोगों की कम से कम 50 फीसदी की भागीदारी होनी चाहिए. कम्युनिटी रेडियो को स्थापित करने पर औसतन 15 लाख रु. खर्च आता है. 2002 में सरकार ने शैक्षणिक संस्थानों के कम्युनिटी रेडियो स्थापित करने के लिए नीति निर्धारित की थी. इस नीति को 2006 में एनजीओ या अन्य संस्थानों के लिए भी लागू कर दिया गया. इसके तहत संचालक अधिकतम 30 मीटर ऊंचा एंटीना और अधितकम 100 वाट प्रभावी रेडिएटेड क्षमता का ट्रांसमीटर लगा सकते हैं. इससे करीब 5-15 किमी की रेंज कवर होती है. देश का पहला कम्युनिटी रेडियो चेन्नै की अन्ना यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2004 में स्थापित हुआ था. तो पहला एनजीओ बेस्ड कम्युनिटी रेडियो संघम था, जिसे 2008 में तेलंगाना के मेडक जिले में डेक्कन डेवलपमेंट सोसाइटी ने स्थापित किया. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के मुताबिक वर्तमान में देशभर में 300 से ज्यादा कम्युनिटी रेडियो स्टेशन हैं. तेजी से और भी कम्युनिटी रेडियो की स्थापना की जा रही है.

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