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कोरबा : छत्तीसगढ़ के पहले मीसाबंदी, बापू के साथ भी किया है काम

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Published : Jan 26, 2020, 2:01 PM IST

Updated : Jan 26, 2020, 2:46 PM IST

छत्तीसगढ़ में कोरबा के एल एन कड़वे ऐसे पहले व्यक्ति थे, जिन्हें मीसा के तहत जेल भेज दिया गया था. कड़वे आपातकाल की पूरी अवधि यानी कि 19 माह तक जेल में रहे थे. वर्तमान में वह 87 साल के हैं.

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एल एन कड़वे, मीसाबंदी

कोरबा: 25 जून 1975 को तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने देश में आपातकाल की घोषणा की थी. इस दौरान विपक्षी नेताओं के साथ ही समाजसेवियों को रातों-रात जेल में डाल दिया गया था. मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट (मीसा) कानून के तहत हजारों की तादाद में लोगों को जेल भेज दिया गया है. इस आवधि में जेल जाने वाले लोगों को मीसाबंदी कहा जाता है.

छत्तीसगढ़ में कोरबा के एल एन कड़वे ऐसे पहले व्यक्ति थे, जिन्हें मीसा के तहत जेल में कैद किया गया था. कड़वे आपातकाल की पूरी अवधि यानी कि 19 माह तक जेल में रहे थे. वर्तमान में वह 87 साल के हैं, जिनकी नजर भी अब कमजोर हो चुकी है.

छत्तीसगढ़ के पहले मीसाबंदी

कांग्रेस सरकार ने बंद की पेंशन

सरकार ने मीसा बंदियों की पेंशन को भी बंद कर दिया है. गणतंत्र दिवस के 1 दिन पहले ही आपातकाल के साथ ही आजादी के आंदोलन में महात्मा गांधी के साथ किए गए कार्यों के अनुभव को उन्होंने ETV भारत के साथ साझा किया. कड़वे बताते हैं कि, मीसाबंदियों के पेंशन को वर्तमान कांग्रेस सरकार ने बंद कर दिया है. वे कहते हैं कि, 'यह ऐसे लोगों को दिया जाता था जिन्होंने आपातकाल को झेला है, जिन्होंने घर से उपर देश को रखा है. उन्होंने बताया कि ऐसा कोई कारण नहीं हैं, जिससे कि मीसाबंदियों को पेंशन से महरूम रखा जाए . इस राशि को पेंशन कहना भी ठीक नहीं है. इसे मानधन और सम्मान निधि कहा जाना चाहिए. वे बताते हैं कि, 'यह कोई भीख नहीं है, यह मीसाबंदियों का अधिकार है. इससे कि उन्हें वंचित नहीं किया जाना चाहिए'.

सेवाग्राम आश्रम में गांधी जी के साथ किया काम
महात्मा गांधी के साथ अपने अनुभव साझा करते हुए कड़वे बताते हैं कि, 'आजादी के आंदोलन में वे भी छोटा सा योगदान दिए थे'. गांधी जब साउथ अफ्रीका से वापस आए तब उन्होंने वर्धा में सेवाग्राम आश्रम की स्थापना की थी. जहां दुनियाभर से लोग आते है'. उन्होंने कहा कि, 'यहीं से क्रांति की शुरुआत हुई, उस समय वे बहुत कम उम्र के थे'.

'सुभाष चंद्र बोस के भी कायल'
वैसे तो कड़वे गांधी जी के विचारों पर चलते हैं, लेकिन वह सुभाष चंद्र बोस के भी कायल हैं. उन्हीं के प्रयास से कोरबा के निहारिका क्षेत्र में सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा की स्थापना की गई थी. अब इस चौक पर सुभाष चौक के नाम से ही जाना जाता है. वह रोज सुबह घर से निकल कर चौराहे पर लगी सुभाष चंद्र बोस के प्रतिमा की परिक्रमा करते हैं. उन्हें प्रणाम करते हैं और फिर अपने बेटे की कपड़ों की दुकान में समय बिताते हैं'.

क्या है मीसाबंदी
25 जून 1975 की आधी रात देशभर में एक अध्यादेश के बाद आपातकाल लगा दिया गया था. इस दौरान संविधान के अनुसार दिए गए नागरिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया था. बंदी प्रत्यक्षीकरण कानून खत्म हो गया था. इसके बाद गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को अदालत में 24 घंटे के भीतर प्रस्तुत करने का नियम शिथिल कर दिया गया था. कांग्रेस शासित राज्यों के मीसा कानून में एक लाख सत्ता विरोधी लोगों को जेल भेज दिया गया था. उन दिनों छत्तीसगढ़ अविभाजित मध्यप्रदेश का हिस्सा था और यहां कांग्रेस की ही सरकार थी.

पेंशन के तौर पर मिलते थे 25 हजार रुपये

इस दौरान जो भी बंदी जेल में रहे वह मीसाबंदी कहलाते हैं. जहां भी भाजपा की सरकार रहती है, मीसाबंदियों को एक तरह से स्वतंत्रता सेनानी या लोकतंत्र सेनानी का नाम देकर पेंशन दिया जाता है. लेकिन पूरे भारत के कांग्रेस प्रशासित प्रदेशों में मीसाबंदी की पेंशन को बंद कर दिया गया. वर्तमान में छत्तीसगढ़ में भी मीसाबंदियों को दिए जाने वाले 25 हजार प्रति माह का पेंशन बंद कर दिया गया है. हाल ही में हाईकोर्ट ने भी फैसला दे दिया है कि, मीसाबंदियों को ससम्मान पेंशन दिया जाए.

Intro:कोरबा। 25 जून 1975 को तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने देश में आपातकाल की घोषणा की थी। इस दौरान विपक्षी नेताओं के साथ ही समाजसेवियों को रातों रात जेल में डाल दिया गया था।

मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट(मीसा) कानून के तहत हजारों की तादात में लोग जेल में रहे थे।
इस आवधि में जेल जाने वाले लोगों को मीसाबंदी कहा जाता है। छत्तीसगढ़ में कोरबा के एलएन कड़वे ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्हें मीसा के तहत जेल में दाखिल किया गया था।
कड़वे आपातकाल की पूरी अवधि यानी कि 19 माह तक जेल में रहे थे। वर्तमान में वह 87 वर्ष के हैं, जिनकी नजर भी अब कमजोर हो चली है सरकार ने मीसा बंदियों की पेंशन को भी बंद कर दिया है।
गणतंत्र दिवस के 1 दिन पहले उन्होंने आपातकाल के साथ ही आजादी के आंदोलन में महात्मा गांधी के साथ किए गए कार्यों के अनुभव को उन्होंने ईटीवी भारत के साथ साझा किया।


Body:कड़वे कहते हैं कि मीसाबंदियों के पेंशन वर्तमान कांग्रेसी सरकार ने दुर्भावना वश बंद की है।
वरना ऐसा कोई कारण नहीं है जिससे कि मीसा बंदियों को पेंशन से वंचित किया जाए। वे कहते हैं कि यह ऐसे लोगों को दिया जाता था जिन्होंने आपातकाल को झेला है, घर द्वारा से उपर देश को रखा है।
इस राशि को पेंशन कहना भी ठीक नहीं है। इसे मानधन या सम्मान निधि कहा जाना चाहिए। हाल ही में हाईकोर्ट ने भी फैसला दे दिया है कि मीसाबंदियों को ससम्मान पेंशन दिया जाए।

कड़वे आगे कहते हैं कि यह कोई भीख नहीं है, यह मीसाबंदियों का अधिकार है।जिससे कि उन्हें वंचित नहीं किया जाना चाहिए।

सेवाग्राम आश्रम में गांधी जी के साथ किया काम
गांधी जी के साथ अपने अनुभव साझा करते हुए कड़वे कहते हैं कि आजादी के आंदोलन में मैंने भी छोटा सा योगदान दिया था। गांधी जी जब साउथ अफ्रीका से वापस आए तब उन्होंने वर्धा में सेवाग्राम आश्रम की स्थापना की। जहां दुनियाभर से लोग आते थे। यहीं से क्रांति की शुरुआत हुई उस समय मैं बहुत कम उम्र का था। मैं उनके कार्यक्रमों में जाता था, प्रार्थना सभाओं में भी मेरी नियमित सहभागिता रहती थी।


Conclusion:सुभाष चंद्र बोस के भी कायल
वैसे तो कड़वे गांधी जी के विचारों पर चलते हैं, लेकिन वह सुभाष चंद्र बोस के भी कायल हैं। उन्हीं के प्रयास से कोरबा के निहारिका क्षेत्र में सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा की स्थापना की गई थी। अब इस चौक को सुभाष चौक के नाम से ही जाना जाता है। कड़वे का घर यहां से कुछ दूरी पर है।
वह रोज सुबह घर से निकल कर चौराहे पर लगी सुभाष चंद्र बोस के प्रतिमा की परिक्रमा करते हैं। उन्हें प्रणाम करते हैं और फिर अपने बेटे की एक लेडीस फैशन की दुकान में समय व्यतीत करते हैं।

क्या है मीसाबंदी
25 जून 1975 की आधी रात देशभर में एक अध्यादेश के बाद आपातकाल लगा दिया गया था। इस दौरान संविधान के अनुसार दिए गए नागरिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया था। बंदी प्रत्यक्षीकरण कानून समाप्त हो गया था। इसके बाद गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को अदालत में 24 घंटे के भीतर प्रस्तुत करने का नियम शिथिल कर दिया गया था। कांग्रेस शासित राज्यों के मीसा कानून में एक लाख सत्ता विरोधी लोगों को जेल में डाल दिया गया था। राज्य में भी उन दिनों कांग्रेस की ही सरकार थी।
इस दौरान जो भी बंदी जेल में रहे वह मीसाबंदी कहलाते हैं। जहां भी भाजपा की सरकार रहती है, मीसाबंदियों को एक तरह से स्वतंत्रता सेनानी या लोकतंत्र सेनानी का नाम देकर पेंशन दिया जाता है। लेकिन जब कांग्रेस की सरकार सत्ता में आती है। तब वह मीसाबंदी की पेंशन बंद कर देते हैं। वर्तमान में छत्तीसगढ़ में भी मीसाबंदियों को दिए जाने वाले 25000 प्रति माह का पेंशन बंद कर दिया गया है। जबकि भाजपा शासनकाल में पेंशन लागू थी।
Last Updated :Jan 26, 2020, 2:46 PM IST
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