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स्कूल का खस्ता है हाल, झोपड़े में ज्ञान का पाठ पढ़ रहे नौनिहाल

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Published : Jul 28, 2019, 3:27 PM IST

मानकोट गांव की प्राथमिक शाला आज झोपड़ी में संचालित हो रही है. इसमें न तो खिड़की है और न ही दरवाजों का कोई अता पता है.

स्कूल का खस्ता है हाल

कांकेर: जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी बर बसे अन्तागढ़ ब्लॉक के मानकोट गांव का एक स्कूल आज भी आदिकाल का याद दिलाता है. यहां की प्राथमिक शाला आज भी झोपड़ी में संचालित हो रही है और तो और इसमें न तो खिड़की है और न ही दरवाजों का कोई अता पता है.

स्पेशल स्टोरी

सरकार शिक्षा को लेकर कई तरह के दावे करती है, लेकिन यहां हकीकत कुछ और ही है. साल 2005 में इस स्कूल भवन को स्वीकृति मिली थी, लेकिन इसे पूरा होने में 4 साल का वक्त लग गया. 2009 में स्कूल भवन बनकर तैयार हुआ, लेकिन लेकिन निर्माण के वक्त भ्रष्टाचार की दीमक ने ही इसकी दीवारों पर डेरा जमा लिया था और धीरे-धीरे वो इन्हें खोखली करती जा रही थी, इसका अंजाम यह हुआ कि भवन महज दस साल में ही जर्जर हो गया.

खंडहर में तब्दील स्कूल

स्कूल भवन के खंडहर में तब्दील हो जाने पर मजबूरी में गांव के सरपंच ने इसके पास ही एक झोपड़ी का निर्माण कराया और घास-फूस से बनी इस इमारत में नौनिहाल करीब चार साल से ज्ञान की घुट्टी पी रहे हैं. एक ओर तो देश में डिजिटल क्रांति की बयार बहाई जा रही है, वहीं दूसरी ओर सूबे का एक विद्यालय ऐसा है, जहां देश का भविष्य शिक्षा के संघर्ष कर रहा है.

जान जोखिम में डालकर पढ़ते है बच्चे
इस संबंध में स्कूल के शिक्षक सुगदु पोटाई ने बताया कि पिछले 3-4 सालों से यही स्थिति है. झोपड़ी में स्कूल संचालित कर रहे हैं, इसको लेकर कई बार जिला प्रशासन को पंचायत के माध्यम से अवगत करवाया गया, लेकिन अब तक फरियाद नहीं सुनी गई. भवन इस कदर जर्जर है कि उसमें बच्चों को बैठना जान जोखिम में डालने जैसा है, जिसके चलते झोपड़ी में ही बैठकर पढ़ाई करवाई जा रही है.

बारिश हुई तो बढ़ जाती है मुसीबतें
शिक्षक ने बताया कि बारिश की वजह से यहां दिक्कतें ज्यादा बढ़ जाती है. बच्चों को आंगनबाड़ी केंद्र में शिफ्ट करना पड़ता है, लेकिन वहां भी सिर्फ एक ही कमरा है, जिससे सभी बच्चों को बैठा पाना संभव नहीं हो पाता. स्कूल में कुल 35 बच्चे हैं और आंगनबाड़ी में भी बच्चे हैं. सबको एक कमरे में जैसे-तैसे बिठाते है अन्यथा छुट्टी करनी पड़ती है.

अंदरूनी इलाका होने की वजह से अधिकारी भी यहां आने से कतराते हैं और शायद यही वजह है कि माचकोट में रहने वाले नौनिहाल शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं को भी तरस रहे हैं.

Intro:कांकेर - जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर दूर अन्तागढ़ ब्लॉक का मानकोट गांव जहा का स्कूल आज भी आदिकाल की याद दिलाता है , मानकोट के प्राथमिक शाला की कक्षा आज भी झोपड़ी में संचालित हो रही है। शिक्षा को लेकर शासन प्रशासन तमाम दावे करती है लेकिन इन दावों की पोल अंदरूनी इलाको में आकर खुल जाती है। घने जंगलों के बीच बसे इस गांव को शासन प्रशासन ने इस कदर भुला दिया कि झोपड़ी में बच्चो को शिक्षा ग्रहण करनी पड़ रही है , बारिश का मौसम चल रहा है ऐसे में सोचिये कैसे आखिर इनकी पढाई हो रही होगी।




Body:सन 2005 में इस गांव में स्कूल भवन के लिए स्वीकृति मिली थी लेकिन इसे पूर्ण होने में 4 साल लग गए और 2009 में स्कूल भवन बनकर तैयार हुआ , लेकिन मात्र 3 साल में ही यह भवन भ्र्ष्टाचार की भेंट चढ़ गया और यहां पानी घुसने लगा , जिसके बाद इस भवन को जर्जर घोषित कर दिया गया, इसके बाद बच्चो के शिक्षा के लिए स्थान ही नही बचा था , तब सरपंच के द्वारा स्कूल परिसर में एक झोपड़ी का निर्माण करवाया गया जहां आज तक बच्चे पढाई कर रहे है । लगभग 3 से 4 सालो से बच्चे इस झोपड़ी में ही शिक्षा ग्रहण कर रहे है । एक तरफ डिजिटल इंडिया की बात कही जाती है दूसरी तरफ इन अंदरूनी क्षेत्रो में मासूमो की शिक्षा के लिए एक भवन तक नसीब नही होता है। जो हालात अंदरूनी इलाको में शिक्षा के है उससे आखिर कैसे माना जाए कि इन मासूमो का भविष्य उज्जवल हो पाएगा , जो तस्वीर सामने आई है उससे यही कहा जा सकता है कि इन बच्चो का भविष्य अंधकार में है और इसके लिए पूरी तरह से लापरवाह प्रशासन जिम्मेदार है ।


कई बार प्रशासन को करवाया अवगत पर नही सुनी गई फरियाद
स्कूल के शिक्षक सुगदु पोटाई ने बताया कि पिछले 3 ,4 सालो से यही स्तिथि है झोपड़ी में स्कूल संचालित कर रहे है , इसको लेकर कई बार जिला प्रशासन को पंचायत के माध्यम से अवगत करवाया गया लेकिन अब तक फरियाद नही सुनी गई , भवन इस कदर जर्जर है कि उसमें बच्चो को बैठना जान जोखिम में डालने जैसा है , जिसके चलते झोपड़ी में ही बैठकर पढाई करवाई जा रही है ।

बारिश हुई तो बढ़ जाती है मुसीबते
शिक्षक ने बताया कि जब बारिश होती है तो ज्यादा दिक्कते हो जाती है , बच्चो को आंगनबाड़ी केंद्र में शिफ्ट करना पड़ता है लेकिन वहां भी सिर्फ एक ही कमरा है जिससे सभी बच्चो को बैठा पाना संभव नही हो पाता । स्कूल में कुल 35 बच्चे है , और आंगनबाड़ी में भी बच्चे है सबको एक कमरे में जैसे तैसे बिठाते है अन्यथा छुट्टी करनी पड़ती है ।


Conclusion:बीहड़ क्षेत्रो में कभी नही पहुचते अधिकारी
मानकोट जैसे अंदरूनी इलाको में कभी भी कोई अधिकारी नही पहुचते , जिसके चलते इन इलाकों के हालात से वो वाकिफ भी नही होते है । शहरी क्षेत्रों में सुविधा मुहैया करवाकर वाहवाही लूटने वाले अधिकरियो को इन इलाकों में आकर जरूर देखना चाहिए कि किस तरह आज भी ये बच्चे उनकी लापरवाही के चलते आदिकाल की तरह शिक्षा ग्रहण कर रहे है।

बाइट- मनीष आँचला छात्र

1 21 शिक्षक सुगदु पोटाई
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