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जशपुर के आदिवासी क्यों कर रहे डीलिस्टिंग की मांग, जानिए क्या है डीलिस्टिंग ?

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Published : May 27, 2022, 7:22 PM IST

Updated : May 27, 2022, 11:17 PM IST

छत्तीसगढ़ के जशपुर में डीलिस्टिंग की मांग को लेकर अब हंगामा मचा हुआ है. यहां आदिवासी समाज ने रैली निकालकर डीलिस्टिंग को लागू करने की मांग की है. इस मांग के जरिए आदिवासी समाज, सरकार से ऐसे लोगों को आदिवासी सूची से बाहर करने की मांग कर रहे हैं जो धर्म परिवर्तन के बाद भी आदिवासी वर्ग के तहत आरक्षण का लाभ ले रहे हैं.

tribal society of Jashpur demanding delisting
जशपुर के आदिवासी क्यों कर रहे डीलिस्टिंग की मांग

जशपुर: जशपुर में डीलिस्टिंग की मांग को लेकर आदिवासी समाज ने धावा बोल दिया है. जशपुर की सड़कों पर बड़ी संख्या में आदिवासी समाज के लोग उतरे और डीलिस्टिंग की मांग करने लगे. शुक्रवार को जशपुर शहर में हजारों की संख्या में आदिवासी समुदाय के लोगों ने ऐसे लोगों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. जो धर्मांतरण करने के बाद भी आदिवासी वर्ग के तहत आरक्षण का लाभ ले रहे हैं. आदिवासी समाज ने ऐसे लोगों को आरक्षण की सूची से बाहर करने की मांग की है.

आदिवासी समाज ने निकाली रैली: डिलिस्टिंग की मांग को लेकर शुक्रवार को आदिवासी समाज सड़कों पर उतरा. कटहल बागीचा से आदिवासी समाज ने रैली निकाली. जो भागलपुर चौक से होकर रणजीता स्टेडियम, अंबेडकर चौक, जिला हॉस्पिटल जशपुर होते हुए बस स्टैंड के बाद कटहल बगीचा वापस आई. और यहां आम सभा की गई. इस रैली में बड़ी संख्या में शामिल आदिवासी लोग हाथों में तख्तियां लिए हुए थे. उन्होंने धर्मांतरण कर चुके लोगों को आरक्षण सूची से बाहर करने की मांग की.

आदिवासी क्यों कर रहे डीलिस्टिंग की मांग

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रायमुनि भगत ने संभाला मोर्चा: आमसभा का शुभारंभ बाबा कार्तिक उरांव के चित्र पर माल्यार्पण कर किया गया है. इस आम सभा की अगुवाई जिला पंचायत जशपुर की अध्यक्ष रायमुनि भगत कर रहीं थीं. उन्होंने कहा कि "बाबा कार्तिक उरांव ने आदिवासियों की परंपरा का मुद्दा उठाया था. उन्होंने कहा कि बाबा कार्तिक उरांव की मांग थी की जो लोग आदिवासी समाज, परंपरा और रीतियों को त्याग चुके हैं उन्हें आरक्षण की सुविधा से बाहर किया जाए. रायमुनि भगत ने कहा कि बाबा कार्तिक उरांव की इस मांग को जल्द से जल्द लागू किया जाए और डीलिस्टिंग की जाए".


धर्म बदल चुके आदिवासियों को आरक्षण सूची से बाहर किया जाए: वहीं पूर्व मंत्री गणेश राम भगत ने कहा कि "मतांतरण कर चुके आदिवासियों को आरक्षण की सूची से बाहर निकालने की मांग सबसे पहले जनजातीय समाज के सबसे बड़े जननायक कार्तिक उरांव ने उठाई थी. उन्होनें इसके लिए 1967—68 में लोकसभा के पटल पर नीजि विधेयक भी प्रस्तुत किया था. लेकिन,इस पर चर्चा नहीं हो सकी. इसके बाद अल्पायु में उनका निधन हो जाने के कारण कार्तिक उरांव जी का सपना पूरा नहीं हो पाया. उसके बाद यह पूरा मुद्दा ठंडे बस्ते में चला गया. लेकिन अब जनजातीय समाज ने अपने इस जननायक के अधूरे काम को पूरा करने का निश्चिय किया है".

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डीलिस्टिंग की मांग को दबाया नहीं जा सकता: गणेश राम भगत का कहना है कि "बस्तर से लेकर जशपुर तक,डिलिस्टिंग की मांग को लेकर जो आवाज उठ रही है.उसे ना तो दबाया जा सकता है और न ही इसकी उपेक्षा की जा सकती है. डिलिस्टिंग को लागू करने का समय आ गया है. जनजातीय समाज में अपने अधिकारों को लेकर आ रही जागरूकता से बाबा कार्तिक उरांव का सपना जल्द ही साकार होगा".

क्या है डीलिस्टिंग: आसान भाषा में डीलिस्टिंग का मतलब है कि जो लोग धर्म परिवर्तन करने के बाद लगातार आरक्षण का लाभ ले रहे हैं उन्हें आदिवासियों की सूची से बाहर किया जाए. मतलब अनुसूचित जनजाति वर्ग के ऐसे लोग जिनका धर्म परिवर्तन हो चुका है. जो अब भी डंके की चोट पर अनुसूचित जनजाति वर्ग के आरक्षण का लाभ लेते हैं. ऐसे लोगों को डीलिस्टिंग करके आरक्षण से वंचित किया जाए. आरक्षण का फायदा सिर्फ ऐसे आदिवासी लोगों को दिया जाए जिन्होंने धर्म परिवर्तन नहीं किया है और जो अब भी आदिवासी हैं. इसी मांग को लेकर पूरे देश भर में डीलिस्टिंग आंदोलन चलाया जा रहा है.

Last Updated :May 27, 2022, 11:17 PM IST
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