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बस्तर दशहरा मनाने के 5 दिन बाद दंतेवाड़ा लौटेगी मां दंतेश्वरी

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Published : Oct 19, 2021, 10:59 AM IST

जगदलपुर में बस्तर दशहरा (Bastar Dussehra) मनाने के बाद दंतेश्वरी माई की डोली (Danteshwari Doli )दंतेवाड़ा पहुंचेगी. नवरात्र की अष्टमी के दिन मां की डोली जगदलपुर पहुंची थी. जहां बस्तर दशहरा संपन्न होने के 5 दिन बाद महाराज परिवार के द्वारा डोली को कांधा देकर रवाना किया गया.

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मां दंतेश्वरी माई की डोली

दंतेवाड़ा: बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी माई की डोली (Danteshwari Doli ) बस्तर दशहरा के 5 दिन बाद वापस दंतेवाड़ा लौटेगी. अष्टमी के दिन मां की डोली बस्तर दशहरा में शामिल होने जगदलपुर गई थी. जहां से बस्तर दशहरा मनाने के बाद मां की डोली को धूमधाम से विदा किया गया.

बस्तर दशहरा के 5 दिन बाद जगदलपुर दंतेश्वरी मंदिर की तरफ से मां दंतेश्वरी की डोली को रवाना किया जाता है. विधि विधान से पूजा-अर्चना कर परंपरा के अनुसार महाराजा परिवार की तरफ से मां दंतेश्वरी की डोली को कांधे पर रखकर दीया डेरा पर लाया जाता है. इसके बाद मां दंतेश्वरी की डोली को जगदलपुर से दंतेवाड़ा के लिए रवाना किया जाता है. इस बीच मां दंतेश्वरी की डोली को परंपरा अनुसार पांच जगह श्रद्धालुओं के लिए रोका जाता है. शाम को 5:00 बजे मां दंतेश्वरी की डोली दंतेवाड़ा आवराभाटा डेरे में पहुंचती है. जहां उनका धूमधाम से स्वागत किया जाता है. पूजा अर्चना कर मां दंतेश्वरी की डोली रात्रि में आवराभाटा में विश्राम करती है. दूसरे दिन पूजा अर्चना कर धूमधाम से गाजे बाजे के साथ मां दंतेश्वरी की डोली छात्र को दंतेवाड़ा दंतेश्वरी मंदिर में प्रवेश कराया जाता है.

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मंगलवार को बस्तर (Bastar Dussehra) में 75 दिनों तक मनाये जाने वाले दशहरा पर्व की एक और महत्वपूर्ण रस्म कुंटुब जात्रा की रस्म अदा की गई. इस रस्म में बस्तर राजपरिवार और ग्रामीणों की अगुवाई में बस्तर संभाग के ग्रामीण अंचलों से पर्व में शामिल होने पंहुचे सभी ग्राम के देवी देवताओं को ससम्मान विदाई दी गई. शहर के गंगामुण्डा वार्ड स्थित पूजा स्थल पर श्रध्दालुओं ने अपनी अपनी मन्नतें पूरी होने पर बकरा, कबूतर, मुर्गा आदि की बलि चढ़ाई. साथ ही दशहरा समिति की ओर से सभी देवताओं के पुजारियों को ससम्मान विदा किया गया.

कुटुंब जात्रा रस्म के दौरान देवी-देवताओं को बस्तर राजकुमार ने दी विदाई

देवी-देवताओं को दी गई विदाई

बस्तर दशहरा पर्व में शामिल होने पंहुचे सभी ग्राम देवी देवताओं के छत्र और डोली को बस्तर राजपरिवार और दशहरा समिति द्वारा समम्मान विदाई दी गई. पंरपरानुसार दशहरा पर्व मे शामिल होने संभाग के सभी ग्राम देवी देवताओं को न्यौता दिया जाता है. जिसके बाद पर्व की समाप्ति पर कुंटुब जात्रा की रस्म अदायगी की जाती है. साथ ही मन्नतें पूरी होने पर लोगों द्वारा बकरा, मुर्गा और कबूतर की बलि भी दी जाती है. देवी देवताओं के छत्र और डोली लेकर पंहुचे पुजारियों को बस्तर राजकुमार और दशहरा समिति द्वारा रूसूम भी दी जाती है. जिसमे कपड़ा, पैसे और मिठाईयां होती है. बस्तर में रियासतकाल से चली आ रही यह पंरपरा आज भी बखूबी निभाई जाती है.

बस्तर राजकुमार ने की पूजा

विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व में समूचे संभाग भर के सैकड़ों देवी-देवताओं के साथ-साथ ग्रामीण भी पर्व में शामिल होते हैं और इन सभी देवी देवताओं को बस्तर दशहरा में न्योता आमंत्रण देने की रस्म के साथ ही इनकी विदाई भी ससम्मान की जाती है. बस्तर राजकुमार कमलचंद भंजदेव (Bastar Prince Kamalchand Bhanjdev) ने बकायदा ग्रामीण क्षेत्र से सभी देवी देवताओं के छत्र व डोली को विधि विधान से पूजा अर्चना किया और ससम्मान सभी देवी देवताओं और ग्रामीणों की विदाई की.

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