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छत्तीसगढ़ का नया सीएम कौन ? अरुण साव सीएम बनने की रेस में आगे, संघ और शाह की पहली पसंद !

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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Dec 5, 2023, 1:24 PM IST

Updated : Dec 5, 2023, 1:36 PM IST

Chhattisgarh BJP CM Race
छत्तीसगढ़ का नया सीएम

Chhattisgarh BJP CM Race कांग्रेस के किले पर कमल ने परचम लहरा दिया है. जीत की रणनीति बनाने वाले योद्धा अब सीएम बनने की रेस में खड़े हैं. कई नाम हैं जो छत्तीसगढ़ से लेकर दिल्ली दरबार तक चर्चा में हैं. Chhattisgarh BJP CM Race

बिलासपुर: 2023 की जंग में बीजेपी को प्रचंड जीत मिली. छत्तीसगढ़ की 90 में से 54 सीटों पर बीजेपी ने कमल खिलाया. जबकि साल 2018 में 68 सीटें जीतने वाली कांग्रेस महज 35 सीटों पर ही अपनी छाप छोड़ सकी. बीजेपी को मिली इस बड़ी जीत में कई नेताओं के नाम शामिल हैं. उसमें एक नाम अरुण साव भी हैं. अरुण साव का नाम छत्तीसगढ़ सीएम की रेस में शामिल हैं. सामान्य कार्यकर्ता से लेकर सांसद तक का सफर करने वाले अरुण साव के बारे में कहा जाता है कि जब उनसे सीएम बनने को लेकर सवाल पूछा जाता है तो वह हंसकर टाल जाते हैं.

छत्तीसगढ़ के चाणक्य: देश की राजनीति में जैसे अमित शाह को बीजेपी का चाणक्य माना जाता है, ठीक उसी तरह से छत्तीसगढ़ की राजनीति का चाणक्य अरुण साव को मानते हैं. 2018 में मिली हार से बीजेपी ने सबक लिया. 2023 की जंग जीतने के लिए बीजेपी ने पांच सालों का लंबा इतंजार और मेहतन की. पर्दे के पीछे रहकर काम करने वाले अरुण साव ने प्रदेश अध्यक्ष बनते ही पार्टी को एकजुट किया, गुटबाजी पर लगाम लगाया. सीट बंटवारे से लेकर प्रदेश स्तर के नेताओं को प्रचार में झोंकने की रणनीति बनाई. स्थानीय नेताओं को रिचार्ज किया, पुराने कार्यकर्ताओं को जमीन पर लेकर आए. अरुण साव के बारे में कहा जाता है कि वो कई कार्यकर्ता को बाकायदा उनके नाम से जानते हैं. बहुत कम ऐसे प्रदेश अध्यक्ष होते हैं जो कार्यकर्ताओं को बाकायदा उनके नाम से जानते हैं. कार्यकर्ता को भी जब उनके प्रदेश अध्यक्ष नाम से पुकारें तो उनका हौसला सांतवें आसमान पर पहुंच जाता है. 2023 की लड़ाई में बीजेपी कार्यकर्ताओं का जोश आपको नजर आया उसके पीछे भी इसी छत्तीसगढ़ के चाणक्य का हाथ माना जाता है.

संघ की पहली पंसद: अरुण साव संघ की भी पहली पसंद हैं. संघ की पृष्ठभूमि से आए अरुण साव साल 1990 से साल 1995 तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की छात्र राजनीति से जुड़े रहे. संघ के कई पदों पर रहकर बेहतर काम किया. भारतीय जनता पार्टी में आने पर बूथ कार्यकर्ता से लेकर पार्टी के कार्यक्रमों तक की व्यवस्था करने वाले नेताओं में शुमार रहे. कार्यकर्ता से लेकर सांसद बनने तक का उनका लंबा सफर ये बताने के लिए काफी है कि वो कितने सक्षम हैं. जब वो सांसद बने तो रिकार्ड 1 लाख 41 हजार वोटों से विजयी हुए. सदन के पटल से छत्तीसगढ़ की आवाज भी हमेशा बनते रहे. लोकसभा में जब वो छत्तीसगढ़ के मुद्दों को उठाते थे विपक्ष के सदस्य भी उनको ध्यान से सुनते थे.

अमित शाह की पसंद: केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भी अरुण साव की कार्य क्षमता को देखते हुए पार्टी का अध्यक्ष बनाया फिर चुनाव में बड़ी जिम्मेदारी सौंपी. 2023 विधानसभा चुनाव की प्रदेश में पूरी जिम्मेदारी अरुण साव के ही कंधे पर थी. वो खुद लोरमी से चुनाव लड़ भी रहे थे और पार्टी के लिए प्रचार के साथ काम भी कर रहे थे. एक साथ तीन तीन मोर्चो पर काम करते हुए बड़ी जीत हासिल करना किसी और के बस की बात नहीं थी. एक सामान्य कार्यकर्ता से लेकर सांसद बनने तक का सफर पूरा करने वाले साव आज भी खुद का कार्यकर्ता ही मानते हैं.

ओबीसी खांचे में फिट बैठते हैं: संघ और अमित शाह की पसंद के साथ साथ अरुण साव ओबीसी के खांचे में भी फिट बैठते हैं. छत्तीसगढ़ की राजनीति को करीब से जानने वाले ये मानते हैं कि अगर पार्टी अरुण साव को मौका देती है तो अरुण साव के साथ ओबीसी वोटों पर भी बीजेपी का कब्जा हो जाएगा. 2024 की जंग में अरुण साव और ओबीसी वोटर दोनों बीजेपी के लिए तरुप का इक्का साबित हो सकते हैं. पार्टी आलाकमान जब भी सीएम पद के रेस में आने वाले लोगों की चर्चा करेगा अरुण साव की ये खूबियां सबसे ऊपर होंगी.

बिलासपुर में बीता साव का बचपन: अरुण साव का पूरा बचपन बिलासपुर में बीता. पिता स्वर्गीय श्री अभय राम साव किसान थे. अरुण साव की स्कूली शिक्षा बिलासपुर में हुई फिर मुंगेली से बी कॉम की पढ़ाई पूरी की. साव ने आगे की पढ़ाई कौशलेंद्र राव विधि महाविद्यालय से की. कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद वो वकालत के पेश में आए. बहुत कम लोग जानते हैं कि अरुण साव के कुशल अधिवक्ता भी हैं.

कार्यकर्ताओं की भी पहली पसंद: बिलासपुर से लेकर रायपुर तक और बस्तर से लेकर दुर्ग तक के कार्यकर्ता अरुण साव को छत्तीसगढ़ के सीएम के पद पर देखना चाहते हैं. ये बीजेपी का अनुशासन ही है कि पार्टी जब भी जिसको भी कमान संभालने का आदेश देती है वो पार्टी के आदेश को माथे से लगा लेता है. पार्टी के आदेश की अवहेलना नहीं करता. इसीलिए बीजेपी के बारे में विरोधी भी कहते हैं बीजेपी मतलब पार्टी विद ए डिफरेंस.

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Last Updated :Dec 5, 2023, 1:36 PM IST
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