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Human trafficking: गरीब बच्चों के भविष्य पर डाका, जानिए मानव तस्करी का सबसे बड़ा सर्किट

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Published : Jul 28, 2022, 6:43 PM IST

बिलासपुर में मानव तस्करी केस बढ़ रहे हैं. (Rail is becoming big medium of human trafficking in Bilaspur ). ज्यादातर गरीब तबके के बच्चे मानव तस्करी में पकड़े जा रहे हैं. महानगरों तक सीधे कनेक्टिविटी होने के कारण मानव तस्कर एक खास रूट का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं. इस रूट को ही मानव तस्करी का सबसे बड़ा सर्किट कहा जाता है. रेलवे पुलिस के लिए भी अब बड़ी चुनौती है.

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मानव तस्करी

बिलासपुर: इन दिनों मानव तस्करी के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं. बिलासपुर में दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के द्वारा ट्रेनों के माध्यम से किए जा रहे मानव तस्करी के मामलों में आरपीएफ को लगातार सफलता मिल (Increase in human trafficking cases in Bilaspur) रही है. पिछले तीन सालों में दपुमरे के आरपीएफ ने ह्यूमन ट्रैफिकिंग के मामलो में 538 बच्चों का रेस्क्यू कर तस्करों के चंगुल से छुड़ाकर उन्हें दोबारा समाज में जीने लायक बनाते हैं.

रेल बन रहा मानव तस्करी का बड़ा माध्यम

मानव तस्करी सबसे अधिक: भारत में मादक पदार्थों और हथियारों की तस्करी के बाद सबसे बड़े संगठित अपराध ह्यूमन ट्रैफिकिंग का है. इन अपराधों में रेलवे बड़ा माध्यम बनता जा रहा है. मानव तस्कर ह्यूमन ट्रैफिकिंग के लिए रेलवे का जमकर उपयोग कर रहे हैं. साउथ ईस्ट सेंट्रल रेलवे ह्यूमन ट्रैफिकिंग को लेकर सबसे ज्यादा सेंसिटिव है. बीते 3 सालों में जून तक लगभग 538 से ज्यादा ऐसे बच्चे रेस्क्यू किए गए हैं, जिनमें बहला-फुसलाकर ले जाने और घर से भागे हुए बच्चे शामिल हैं.

मेट्रो सिटी में घरेलू नौकर बनाने को किया जा रहा मानव तस्करी: साउथ ईस्ट सेंट्रल रेलवे हावड़ा मुंबई मेन लाइन में है. लिहाजा ह्यूमन ट्रैफिकिंग के लिए एसईसीआर को सबसे बड़ा सर्किट माना जाता है. महानगरों तक सीधे कनेक्टिविटी होने के कारण मानव तस्कर इस रूट का जमकर इस्तेमाल करते हैं. सबसे ज्यादा झारखंड, ओडीशा और छत्तीसगढ़ के तस्करों के लिए एसईसीआर ह्यूमन ट्रैफिकिंग के लिए बड़ा माध्यम है. यहां केचमेंट एरिया से तस्कर ट्रैफिकिंग कर मासूमों को नॉर्थ में दिल्ली साइड या फिर वेस्ट में गुजरात और मुंबई ले जाते हैं. यहां या तो उन्हें गलत कामों के लिए लगा दिया जाता है या फिर प्लेसमेंट कंपनियों के हवाले कर दिया जाता है. यहां से मेड व अन्य कामों के लिए इनका उपयोग किया जाता है.

3 साल में 538 बच्चों का रेस्क्यू: दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे की आरपीएफ टीम ने 3 सालों में लगभग 538 बच्चों का रेस्क्यू किया है. 3 वर्षों के आंकड़ों पर गौर करें तो चाइल्ड लाइन नीड एंड केयर के तहत जोन से ऐसे 538 बच्चों का रेस्क्यू किया गया है, जिन्हें बहला-फुसलाकर काम के बहाने मेट्रो सिटी ले जाया जा रहा था. इन्हीं आंकड़ों में वह बच्चे भी शामिल हैं, जो घर से किसी कारणवश भाग जाते हैं और ट्रेनों के माध्यम से दूसरे शहर पहुंच जाते हैं. इसी तरह बिलासपुर मंडल में ही अकेले 2 वर्षों में 30 के करीब ह्यूमन ट्रैफिकिंग के केस डिटेक्ट किए गए हैं. जिनमें आईपीसी की धारा के तहत कार्रवाई करते हुए 40 से अधिक बच्चों का रेस्क्यू किया गया है. तमाम कार्रवाई के बाद भी जिस तरह ह्यूमन ट्रैफिकिंग के मामले बढ़ रहे हैं, यह देश के लिए चिंता का विषय है.

रेलवे पुलिस के लिए चुनौती बना ह्यूमन ट्रैफिकिंग: मानव तस्करी सड़क मार्ग के साथ ही रेल मार्ग से किया जा रहा है. यदि बात करें तो आरपीएफ के सामने पहले इस तरह के मामले नहीं आते थे, लेकिन रेलवे पुलिस के लिए अब ह्यूमन ट्रैफिकिंग नई चुनौती बनती जा रही है. हालांकि रेलवे पुलिस भी ह्यूमन ट्रैफिकिंग को लेकर पहले से ज्यादा अलर्ट है. बढ़ते मामलों को देखते हुए उन्हें डिटेक्ट करने के लिए आरपीएफ में स्पेशल एंटी ट्रैफिकिंग टीम बनाई गई है, जिन्हें स्पेशल ट्रेनिंग के साथ ट्रेनों में निगरानी का जिम्मा सौंपा गया है. इसके साथ ही नेशनल लेवल पर बचपन बचाओ आंदोलन के जरिए भी ह्यूमन ट्रैफिकिंग के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाकर रेलवे पुलिस को ट्रेंड किया जा रहा है. बावजूद इसके ट्रेनों के माध्यम से हो रहे ह्यूमन ट्रैफिकिंग रुक नहीं रहे हैं. हर माह मामले सामने आ रहे हैं, जिससे रेलवे पुलिस फोर्स के लिए ये बड़ी चुनौती बनती जा रही है.

घुमंतू बच्चे होते है ह्यूमन ट्रैफिकिंग का शिकार: दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के बिलासपुर डिवीजन के वरिष्ठ मंडल सुरक्षा आयुक्त ऋषि शुक्ला ने बताया कि लंबे समय से रेलवे स्टेशन और ट्रेनों में घुमंतु बच्चे देखे जा सकते हैं. इन बच्चों को आरपीएफ के द्वारा रेस्क्यू कर उनका शारीरिक और मानसिक परीक्षण किया जाता है. रेस्क्यू के बाद जब उनका काउंसलिंग किया जाता है, तब ये बात सामने आती है कि कई बार माता-पिता के गैर-जिम्मेदारी की वजह से भी बच्चे घर छोड़ देते हैं. इसके अलावा माता-पिता के नशे के आदी होने और उनका पालन-पोषण सही ढंग से नहीं करने पर भी बच्चे घर छोड़ देते हैं. ऐसे बच्चों का रेस्क्यू कर आरपीएफ चाइल्ड लाइन के माध्यम से उनके पालन-पोषण के साथ पढ़ाई-लिखाई और खाने-पीने की व्यवस्था के लिए राज्य सरकार के द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न सेंटरों में भेज दिया जाता है.

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ऑपरेशन "आहत" और "नन्हे फरिश्ते" से किया जा रहा रेस्क्यू: भारत के अन्य जोन के साथ ही दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे की आरपीएफ टीम ने ऑपरेशन आहट और ऑपरेशन नन्हे फरिश्ते के माध्यम से रेस्क्यू का काम कर रही है. इस कार्य के दौरान 2020 से लेकर अब तक रेलवे के बिलासपुर डिवीजन में 21 मामले और बिलासपुर जोन में 30 मामले में करवाई करते हुए बच्चों और महिलाओ को उनके सही स्थानों पर पहुंचाया गया है.

गरीब बच्चे बनते हैं शिकार: दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के मंडल सुरक्षा आयुक्त ऋषि शुक्ला ने ईटीवी भारत को बताया, "बिलासपुर मुंबई हावड़ा मेन लाइन से जुड़ा हुआ है. इसलिए यहां पकड़े गए ज्यादातर ह्यूमन ट्रैफिकिंग के मामलों में एक बात सामने आई है, जिसमें ओडीशा, झारखंड और छत्तीसगढ़ के जशपुर, सरगुजा और रायगढ़ इलाके के गरीब परिवारों को मानव तस्कर अच्छी नौकरी और अच्छे पैसे का लालच देकर उन्हें दिल्ली, मुंबई और हावड़ा जैसे मेट्रो सिटी में ले जाकर बेच दिया करते हैं. कई बार यह मानव तस्कर उन्हें घरेलू काम करने को प्लेसमेंट एजेंसियों को बेचते हैं. तो कई बार ऐसे लोगों को बेच देते हैं, जो देह व्यापार में युवतियों को धकेल देते हैं. मानव तस्कर, दलालों के माध्यम से गरीब परिवारों को शिकार बनाते हैं. गरीब बच्चों के परिवार वालों को पैसे की लालच देने के साथ ही बच्चे के भविष्य अच्छे होने की बात करते हुए उन्हें कुछ पैसे दे देते हैं. इसके बाद शुरू होता है मानव तस्करी का खेल. ऐसे कई मामलों में पकड़े गए लोगों से पूछताछ में ये बाते सामने आई है.

मानव तस्करों के लिए मुंबई हावड़ा रूट सुरक्षित: मानव तस्कर भले ही मुंबई हावड़ा रूट सुरक्षित मान रहे हैं, लेकिन जिस तरह से मानव तस्करी के मामले पकड़े जा रहे हैं. यह बात भी सामने आ रही है कि रेलवे पुलिस अपने काम बड़े ही मुस्तैदी के साथ अंजाम दे रही है. मानव तस्करी के मामलों में कार्रवाई ने यह साबित भी कर दिया है.

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