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कोरबा की हिम्मतवाली बेटियां, जिन्होंने निभाया बेटे का फर्ज

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Published : May 28, 2022, 6:51 PM IST

कोरबा में तीन बेटियों ने समाज को नई राह दिखाई है. बेटियों ने अपने पिता का अंतिम संस्कार कर सालों पुरानी चली आ रही परंपरा को तोड़ा (Courageous daughters of Korba) है.

Daughters performed last rites of father in Korba
कोरबा की हिम्मतवाली बेटियां

कोरबा : कोरबा की तीन बहनों ने वो किया है जिसे समाज शायद अच्छा ना मानें. लेकिन एक पिता की इच्छा को पूरी करने के लिए इन बेटियों ने रूढ़ीवादी परंपरा को तोड़कर अपने पिता का अंतिम संस्कार किया. मुक्तिधाम पहुंचकर इन बेटियों ने अपने पिता की चिता को मुखाग्नि (Daughters performed last rites of father in Korba) दी. जिसने भी यह नजारा देखा उसकी आंखें नम हो गई.

कोरबा की हिम्मतवाली बेटियां, जिन्होंने निभाया बेटे का फर्ज
कब हुई पिता की मौत : सीतामढ़ी निवासी गुजराती पाटीदार समाज के जितेंद्र रामजी भाई पटेल लंबे समय से अस्वस्थ थे. शुक्रवार को रायपुर के निजी अस्पताल में उनका निधन हो (father died in raipur) गया. जब अर्थी घर पहुंची, तब सभी के दिमाग में एक ही प्रश्न था, मृतक जितेंद्र का कोई बेटा नहीं है ऐसे में क्रियाकर्म कौन करेगा? परिवार ने मिलकर निर्णय लिया कि जितेंद्र की अंतिम इच्छा के अनुरूप ही उनका दाह संस्कार पूर्ण होगा.क्यों बेटियों ने दी मुखाग्नि : जितेंद्र सीतामढ़ी में निवासरत थे.जहां उनका छोटा सा व्यवसाय है, जितेंद्र काफी समय से अस्वस्थ थे. जितेंद्र की तीन बेटियां हैं. बड़ी बेटी अंजली की शादी रायपुर में हो चुकी है. जबकि दूसरी बेटी गुंजन सेकंड ईयर की छात्रा है. छोटी बेटी हरसिद्धि सातवीं कक्षा में अध्ययनरत है.अंजलि ने कहा कि "पिता अक्सर कहते थे, कि मेरा कोई बेटा नहीं है. तो क्या हुआ, मेरी बेटियां बेटों से कम थोड़े ही है. मुझे कुछ हुआ तो मेरी बेटियां ही बेटों का फर्ज अदा करेंगी''बेटियों ने समाज को दिखाई राह : महालक्ष्मी टिंबर के संचालक किशोर रिश्ते में जितेंद्र के बड़े भाई हैं. किशोर कहते हैं कि "जब जितेंद्र का निधन हो गया तो हम सभी सोच में पड़ गए, कि अब क्या करेंगे. क्रियाकर्म कैसे होगा. जितेंद्र का कोई बेटा नहीं है. सिर्फ तीन बेटियां हैं. आपस में सलाह मशविरा कर हमने तय किया कि जितेंद्र की इच्छा के अनुरूप ही बेटियां ही उनकी चिता को मुखाग्नि (Korba daughters performed the duty of son) देंगी.''

पिता ने कभी नहीं किया भेदभाव : किशोर ने बताया कि "इसे लेकर हमने वरिष्ठ जनों से चर्चा की. मुखाग्नि बेटी से दिलवाने की बात पर जितेंद्र की पत्नी रश्मि बहन के साथ तीनों बेटियों ने अपनी रजामंदी दी. हालांकि समाज के कुछ लोग इसे लेकर तरह-तरह की बातें भी करेंगे. लेकिन हम सभी ने मिलकर निर्णय लिया कि मुखाग्नि बेटियों से ही दिलवा आएंगे. जीते जी जितेंद्र ने कभी भी अपनी बेटियों को बेटों से कम नहीं समझा. उसने बेटियों को बेटों की तरह ही पालकर बड़ा किया है.''

कहां हुआ अंतिम संस्कार : मृतक जितेंद्र का अंतिम संस्कार शहर के मोतीसागर पारा मुक्तिधाम (Korba Motisagar Para Muktidham) में किया गया. सीतामढ़ी से जब शव यात्रा निकली. तब सभी राहगीरों के लिए यह कुछ नया सा था. ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है जब बेटियां पिता के अर्थी को कंधा दें. शव यात्रा मुक्तिधाम तक पहुंची और इसके बाद विधि-विधान से बेटियों ने पिता के क्रिया कर्म को पूरा किया.

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