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बच्ची के विकास के लिए पिता के साथ दादा दादी को भी मिलने का हक : बिलासपुर हाईकोर्ट

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Published : May 26, 2022, 5:03 PM IST

बिलासपुर हाईकोर्ट ने एक पारिवारिक मामले में बड़ा फैसला सुनाया है.कोर्ट ने कहा है कि ''माता-पिता के अलग रहने का असर बच्ची की मानसिक स्थिति पर ना पड़े इसलिए पिता के साथ उसके दादा-दादी को भी उससे मिलने का अधिकार (Father and grandfather got the right to meet the girl) है.''

बच्ची के विकास के लिए पिता के साथ दादा दादी को भी मिलने का हक

बिलासपुर : बिलासपुर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बच्चे की अभिरक्षा के एक मामले में बड़ा फैसला सुनाया (Big decision of Bilaspur High Court ) है. बच्ची के सर्वांगीण विकास और पिता का प्यार मिल सके इसलिए पिता के साथ ही दादा दादी को भी मिलने का अधिकार दे दिया है. पिता के साथ ही दादा दादी भी सप्ताह में एक दिन और त्यौहार की छुट्टी पर बच्ची को साथ रख सकेंगे. कोर्ट ने आदेश में मां और पिता के लिए शर्त भी रखी है

कारोबारी क्यों गया कोर्ट : हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने भिलाई के कारोबारी को उनकी बेटी से मिलने की सशर्त अनुमति दे दी है. कोर्ट ने बच्ची को उसकी मां के साथ रखने का आदेश तो दिया ही साथ ही पिता को भी अपनी बेटी से मिलने की अनुमति दी है. पूरा मामला दुर्ग-भिलाई के एक कारोबारी निमिश अग्रवाल और उनकी पत्नी रूही अग्रवाल का है. दरअसल निमिश और रुही की शादी 2007 में हुई थी. जनवरी 2012 में उनकी एक बेटी पैदा हुई.

बेटी पैदा होने के बाद आई दरार : बेटी के पैदा होने के कुछ समय बाद पति-पत्नी के संबंधों में खटास आ गई. दोनों में आए दिन विवाद होने पर पत्नी ने पति और ससुरालवालों के खिलाफ केस दर्ज करा दिया था. मामले के कारण निमिश और उसके परिवारवालों को जेल जाना पड़ा. इस दौरान पत्नी अपने पति से अलग हो गई और बच्ची को भी अपने साथ ले गई. पिता निमिश एस.अग्रवाल ने अपनी बेटी की समुचित देखभाल करने के लिए फैमिली कोर्ट में परिवाद दायर किया (Durg Family Court case ) था.

कोर्ट में क्या रखी दलील : निमिश अग्रवाल ने बच्ची की कस्टडी के लिए फैमिली कोर्ट में परिवाद पेश किया. फैमिली कोर्ट से बच्ची की कस्टडी पिता को देने से इनकार करते हुए परिवाद खारिज कर दिया. इस पर पिता ने हाईकोर्ट में अपील की. कोर्ट में फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी कि बच्चों की देख भाल और अभिरक्षा के संबंध में सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए कई अलग अलग फैसलों का हवाला भी दिया गया था, साथ ही बताया गया कि बच्चे के सही विकास और देखभाल करने के लिए उसे पिता की अभिरक्षा भी दी जाए.

कोर्ट ने दिया अधिकार : याचिकाकर्ता निमिश की ओर से बताया गया कि फैमिली कोर्ट ने बच्ची को पिता से मिलने का अधिकार दिया है. यह भी बताया गया कि कोर्ट के आदेश पर जब पिता अपनी बच्ची से मिलने जाते हैं तो अलग-अलग आरोप लगा केस दर्ज करा दिया जाता है. पिता की ओर से कोर्ट में कहा गया कि इसके चलते वे जेल चले गए. बच्ची और उसके पिता को एक दूसरे के प्यार से वंचित होना पड़ रहा है. अपील पर याचिकाकर्ता के साथ ही उनकी पत्नी की तरफ से बहस की गई. उनकी पत्नी ने बच्ची की कस्टडी पिता को देने का विरोध किया.

हाईकोर्ट ने क्या सुनाया फैसला : सभी पक्षों को सुनने के बाद हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच में जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस एनके चंद्रवंशी ने बच्चे से मिलने के संबंध में महत्वपूर्ण आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा है कि बच्चे की कस्टडी संबंधी मामलों में बच्चे का कल्याण सर्वोपरि होगा. ऐसे में ही बच्चों की कस्टडी के संबंध में उनके सर्वांगीण विकास के लिए माता पिता के साथ साथ दादा-दादी को भी मुलाकात करने का अधिकार देना आवश्यक होगा. इस आदेश के साथ ही कोर्ट ने पिता को अपनी बेटी से मिलने का अधिकार दिया है. इसके लिए कोर्ट ने मां के लिए भी शर्तें तय की है.

कैसे मिलेंगे दादा और दादी : कोर्ट ने कहा कि ''प्रत्येक शनिवार और रविवार को एक घंटे के लिए वीडियो कांफ्रेसिंग के माध्यम से पिता के साथ ही दादा दादी अपनी बच्ची से मिल कर बात कर सकेंगे. इसके लिए मां के साथ ही पिता को भी स्मार्ट फोन रखना होगा. चूंकि, बच्ची के माता और पिता दोनों एक ही जिले में रहते हैं. लिहाजा कोर्ट ने आदेश दिया है कि एक पखवाड़े में प्रत्येक शनिवार को पिता अपनी बच्ची को दिन भर रख सकता है. इसके लिए बच्ची की मां को दुर्ग के फैमिली कोर्ट में सुबह 10:30 बजे से 11 बजे के बीच पेश करना होगा. जहां से पिता अपनी बच्ची को पूरे दिन के लिए अपने साथ ले जा सकता है. फिर उन्हें शाम को 4:30 से 5 बजे के बीच फैमिली कोर्ट में पिता बच्ची को उसकी मां के पास वापस करेगा.''

त्यौहार के अवकाश में भी नियम लागू : इसी तरह अवकाश के दिनों में भी पिता को मिलाने के लिए हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट को सात दिन के लिए बच्ची को रखने के साथ ही दशहरा, दिवाली, होली सहित अन्य त्योहारों में भी पिता को बच्ची से मिलाने और साथ लेकर जाने की व्यवस्था करने का आदेश दिया है. पूरे मामले में हाई कोर्ट का नजरिया काफी काबिले तारीफ रहा. कोर्ट ने बच्ची के भविष्य और माता-पिता दोनों का प्यार मिल सके इसलिए इस तरह का फैसला दिया है, ताकि बच्ची को कभी भी अपने पिता की कमी महसूस ना हो और हमेशा उसके सर पर माता और पिता दोनों का साया होने का एहसास उसे हो, इसलिए यह फैसला दिया गया है, ताकि बच्ची निश्चिंत होकर अपना भविष्य बना सके. समाज में जीने लायक बन जाए. हाईकोर्ट ने इस फैसले को एक मिसाल भी माना है.

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