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एशिया के सबसे प्राचीन नाट्यशाला में महोत्सव की शुरुआत

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Published : Jun 14, 2022, 7:23 PM IST

सरगुजा में रामगढ़ महोत्सव की शुरुआत (Ramgarh Festival begins in Surguja) हुई.जिसमे जांजगीर के पिहारिद गांव में फंसे राहुल साहू को बचाने के लिए विशेष पूजा की गई.

Ramgarh Festival begins in Surguja
एशिया के सबसे प्राचीन नाट्यशाला में महोत्सव की शुरुआत

सरगुजा : जांजगीर जिले के पिहारिद गांव में बोर में फसे 10 वर्षीय राहुल की सलामती के लिए पूरा प्रदेश दुआ कर रहा (Ramgarh Festival begins in Surguja) है. ऐसा ही नजारा सरगुजा जिले के उदयपुर विकासखंड में आयोजित रामगढ़ महोत्सव के दौरान देखने को मिला. जहां जनप्रतिनिधि और जिला प्रशासन द्वारा रामगढ़ महोत्सव की शुरुआत से पहले राहुल की सलामती के लिए प्रार्थना की गई. साथ ही रामगढ़ स्थित मंदिर में बैगा ने राहुल की सकुशल वापसी के लिए पूजा एवं प्रार्थना कराई गई.


कहां हुई महोत्सव की शुरुआत : दरअसल सरगुजा के उदयपुर विकासखंड स्थित रामगढ़ में महोत्सव की शुरुआत की गई है. रामगढ़ महोत्सव की शुरुआत होने से पहले जो नजारा देखने को मिला. उससे वहां मौजूद हर कोई भावुक नजर आया. महोत्सव की शुरुआत के पूर्व जनप्रतिनिधियों जिला प्रशासन के तमाम अधिकारियों और वहां मौजूद जनता ने मिलकर राहुल की सलामती के लिए दुआएं की. साथ ही रामगढ़ स्थित राम मंदिर में बैगा ने राहुल की सकुशल वापसी के लिए पूजा एवं प्रार्थना की.

महोत्सव में किनको मिलेगा मौका: आषाढस्य प्रथम दिवस के अवसर पर जिला प्रशासन एवं जिला पुरातत्व संघ सरगुजा ने 14 एवं 15 जून को आयोजित दो दिवसीय रामगढ़ महोत्सव में 15 जून को सांस्कृतिक कार्यक्रम में स्थानीय एवं आमंत्रित कलाकार रंगारंग कार्यक्रम की छटा (Opportunity to traditional artists in Ramgarh in Surguja) बिखेरेंगे. प्रातः 11 बजे से अपरान्ह 1ः30 बजे तक विद्यालयीन एवं स्थानीय कलाकार तथा अपरान्ह 2ः30 बजे से 5ः30 बजे तक आमंत्रित कलाकारों की प्रस्तुति होगी.आमंत्रित कलाकारों में बबिता विश्वास, स्तुति जायसवाल, संजय सुरीला, ज्योतिश्री वैष्णव सहित भरत नाट्यम, कला विकास केंद्र एवं पारंपरिक गीत संगीत शामिल हैं.


क्या है रामगढ़ का इतिहास : छत्तीसगढ़ में ऐतिहासिक, पुरातात्विक एवं सांस्कृतिक महत्व के अनेक स्थल हैं. सृष्टि निर्माता ने छत्तीसगढ़ को अनुपम प्राकृतिक सौंदर्य से नवाजा है. दक्षिण कौशल का यह क्षेत्र रामायण कालीन संस्कृति का परिचायक रहा है. ऐतिहासिक, पुरातात्विक एवं सांस्कृतिक महत्व की ऐसी ही एक स्थली रामगढ़, सरगुजा जिले में स्थित है. सरगुजा संभागीय मुख्यालय अम्बिकापुर से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर उदयपुर विकासखण्ड मुख्यालय के समीप रामगढ़ की पहाड़ी स्थित है. दूर से इस पहाड़ी का दृश्य बैठे हुए हाथी के सदृश्य प्रतीत होता है. समुद्र तल से इसकी ऊॅचाई लगभग 3 हजार 202 फीट है.

प्राचीनतम नाट्यशाला में शुमार : प्राकृतिक सुषमा से सम्पन्न रामगढ़ पर्वत के निचले शिखर पर अवस्थित ‘‘सीताबेंगरा’’ और ‘‘जोगीमारा’’ गुफाएं प्राचीनतम शैल नाट्यशाला (Jogimara Caves in Ramgarh Surguja)के रूप में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है. ये गुफाएं तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व मौर्यकाल के समय की मानी जाती हैं. जोगीमारा गुफा में मौर्य कालीन ब्राह्मी लिपि में अभिलेख तथा सीताबेंगरा गुफा में गुप्तकालीन ब्राह्मी लिपि में अभिलेख है. जोगीमारा गुफा में भारतीय भित्ति चित्रों के सबसे प्राचीन नमूने अंकित हैं. भरतमुनि ने प्रतिपादित नाट्यशाला की जो लम्बाई, चौड़ाई एवं ऊंचाई निर्धारित की गई है. उस पर रामगढ़ की नाट्यशाला लगभग खरी उतरती है.

Ramgarh Festival begins in Surguja
एशिया के सबसे प्राचीन नाट्यशाला में महोत्सव की शुरुआत

क्या बताया शोधकर्ताओं ने : शोधकर्ताओं ने बताया है कि ''एशिया में ऐसी कोई दूसरी नाट्यशाला नहीं है. इतिहासकार डॉ. राखाल दास बैनर्जी के अनुसार इस नाट्यशाला का निर्माण गंधर्व लोगों ने कराया होगा. मधुसूदन सहाय रूपदक्ष को रंग करने और सुतनुका को नायिका मानकर इसे नाट्यशाला प्रतिपादित करते हैं. नाट्यशाला के ठीक पीछे दो और कमरों का उल्लेख मिलता है. डॉ. ई. मिडियन प्रिंसपल इविंग क्रिश्चियन कॉलेज इलाहाबाद मानव संसाधन विभाग के क्षेत्रीय सर्वेक्षण दल के साथ 23 नवम्बर 1957 में सरगुजा आए थे. उन्होंने अपने लेख ’’वण्डर ऑफ सरगुजा’’ में रामगढ़ की नाट्यशाला का उल्लेख किया है.''


प्राचीन शिलालेख आज भी मौजूद : रामगढ़ पहाड़ी के ऊर्ध्व भाग में दो शिलालेख मौजूद हैं. प्रस्तर पर नुकीले छेनी से काटकर लिखे गए इस लेख की लिपि पाली और कुछ-कुछ खरोष्टी से मिलती जुलती है. लिपि विशेषज्ञों ने इसे एक मत से पाली लिपि माना है. इस पर निर्मित कमलाकृति रहस्यमय प्रतीत होती है. यह आकृति कम बीजक ज्यादा महसूस होता है.



रामगढ़ पर श्रीराम का आगमन : भगवान राम के रामगढ़ आने का प्रमाण आध्यात्म रामायण के अनुसार यह है कि महर्षि जमदग्नि ने राम को भगवान शंकर द्वारा दिया गया वाण ’’प्रास्थलिक’’ दिया (Lord Ram footprints on the hills of Ramgarh) था. जिसका उपयोग उन्होंने रावण के विनाश के लिए किया था. रामगढ़ के निकट स्थित महेशपुर वनस्थली महर्षि की तपोभूमि थी. इससे यह स्पष्ट होता है कि वनवास के दौरान भगवान राम महर्षि जमदग्नि के आश्रम आए थे तथा ऋषि की आज्ञा से कुछ दिनों तक रामगढ़ में वास किया था.


कालीदास के ’’मेघदूतम’’ की रचनास्थली : रामगढ़ को महाकवि कालीदास की अमरकृति मेघदूतम् की रचनास्थली मानी जाती है. संस्कृति अकादमी भोपाल द्वारा इस ओर विशेष ध्यान देने पर रामगढ़ पुरातात्विक दृष्टि से विशेष अध्ययन का केन्द्र बन गया. रामगढ़ के शिलाओं का इतिहास जानने की शुरूआत उज्जैन निवासी डॉ. हरिभाऊ वाकणकर ने की. इन्होंने रामगढ़ के समीपवर्ती क्षेत्र का गहन अध्ययन किया.

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