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'पूर्व माननीयों' पर हर साल 59 करोड़ से ज्यादा खाली होता है बिहार का खजाना, दागियों को भी मिलता है पेंशन

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Published : Oct 8, 2021, 8:17 PM IST

Updated : Oct 8, 2021, 10:09 PM IST

बिहार में कर्मचारियों के पेंशन खत्म कर दिए गए, लेकिन पूर्व एमएलए, एमएलसी और सांसदों के पेंशन में लगातार वृद्धि होती गई. 10 साल में पूर्व विधायकों और उनके परिवार को मिलने वाले पेंशन में 6 गुणा वृद्धि हो चुकी है. सजायाफ्ता नेताओं को भी पेंशन मिल रहा है. पढ़ें पूरी खबर...

pension of former MLAs
पूर्व विधायकों को पेंशन

पटना: बिहार में पेंशन लेने वाले पूर्व विधायकों (Pension to Former MLAs) की संख्या काफी अधिक है. सरकार को इस पर करोड़ों रुपये खर्च करना पड़ता है. कई पूर्व विधायक ऐसे हैं जो दागी रहे हैं. जिस पर चुनाव आयोग (Election Commission) ने चुनाव लड़ने पर रोक लगा रखा है, लेकिन उन्हें भी पेंशन मिल रहा है. कई ऐसे पूर्व विधायक हैं जो दूसरे सदन के भी सदस्य रहे हैं और उन्हें विधानसभा के अलावा दूसरे सदन से भी पेंशन मिल रहा है.

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नेताओं ने अपने लिए एक से अधिक पेंशन की व्यवस्था कर रखी है. बिहार में कर्मचारियों के पेंशन खत्म कर दिए गए, लेकिन पूर्व एमएलए, एमएलसी और सांसदों के पेंशन में लगातार वृद्धि होती गई. बड़ी संख्या में ऐसे सदस्य हैं जो एक से अधिक सदन के सदस्य हैं और उन्हें पेंशन भी एक से अधिक स्थानों से मिल रहा है. आरटीआई एक्टिविस्ट शिव प्रकाश राय का कहना है कि चारों सदनों के अलावा कुछ तो जेपी सेनानी का भी पेंशन उठा रहे हैं. सरकारी नौकरी में थे तो उसका भी पेंशन ले रहे हैं. 10 साल में पूर्व विधायकों और उनके परिवार को मिलने वाले पेंशन में 6 गुणा वृद्धि हो चुकी है.

देखें रिपोर्ट

शिव प्रकाश राय ने कहा, 'विधानसभा से जो जानकारी दी गई है उसमें पूर्व विधायक और उनके परिवार के सदस्य के निधन के बाद भी कई ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें पेंशन अभी भी जारी है. रविशंकर प्रसाद और नितिन नवीन मामले में काफी हंगामा भी हुआ. दोनों की तरफ से सफाई भी दी गई और विधानसभा अध्यक्ष जांच भी करवा रहे हैं. सभी मामलों में जांच होना जरूरी है. पता चलना चाहिए कि आखिर गलती कहां से हो रही है.'

"जगदीश शर्मा और लालू प्रसाद यादव सजायाफ्ता हैं. चुनाव आयोग ने उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगा रखा है. सजायाफ्ता राजबल्लभ यादव, प्रभुनाथ सिंह, आनंद मोहन, विजय कृष्ण और इलियास हुसैन को भी पेंशन मिलता है. इन सबके चुनाव लड़ने पर आयोग ने रोक लगा रखा है."- शिव प्रकाश राय, आरटीआई एक्टिविस्ट

"सजायाफ्ता भी पेंशन का लाभ ले रहे हैं यह तो गंभीर मामला है. इस संबंध में चुनाव आयोग को देखना होगा. हमारी पार्टी जदयू की तो पूरी कोशिश रही है कि राजनीति में साफ छवि के लोग ही आगे आएं."- संजय झा, मंत्री, जल संसाधन विभाग

2018 में नीतीश सरकार ने वर्तमान विधायक और विधान पार्षदों के साथ पूर्व विधायक और विधान पार्षदों के पेंशन में वृद्धि का फैसला किया था. 1 साल तक विधायक और विधान पार्षद रहने वाले नेता को न्यूनतम 35 हजार रुपये पेंशन मिलता है. पहले 25 हजार रुपये मिलता था. जितने साल तक विधायक और विधान पार्षद रहेंगे हर साल पेंशन में 3 हजार रुपये की वृद्धि होगी. इससे पहले 2014 में भी पेंशन और भत्ते में वृद्धि की गई थी.

254 ऐसे विधायक और विधान पार्षद सदस्य हैं, जिन्हें 50-75 हजार रुपये पेंशन मिलता है. 70 से अधिक जनप्रतिनिधि ऐसे हैं जिन्हें 75 हजार से 1 लाख रुपये तक पेंशन मिलता है. 12 जनप्रतिनिधि ऐसे हैं जिन्हें 1-1.5 लाख रुपये पेंशन मिलता है. 9 बार विधायक रहे रमई राम को हर महीने सबसे अधिक 1.46 हजार पेंशन मिलता है. इसके बाद जगदीश शर्मा को हर महीने 1.25 लाख पेंशन मिल रहा है. विधानसभा से लालू यादव को 89 हजार रुपये पेंशन मिल रहा है. लालू यादव लोकसभा के भी सदस्य रहे हैं.

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आरटीआई एक्टिविस्ट प्रकाश राय के अनुसार आरटीआई से जो सूचना बिहार विधानसभा ने दी है उसके अनुसार 991 पूर्व सदस्यों और उनके परिवार के सदस्यों पर सरकार को पेंशन के रूप में 59 करोड़ 33 लाख 28 हजार रुपये खर्च करना पड़ता है. 10 साल में पेंशन 6 गुणा बढ़ गया है. बिहार में विधायकों के वेतन और भत्ते के साथ पूर्व विधायकों के पेंशन और अन्य सुविधाओं को लेकर सरकार फैसला करती है. दूसरे देशों में इसके लिए आयोग बना हुआ है. ब्रिटेन में आयोग फैसला लेता है कि कितना पेंशन दिया जाए. भारत में नेता खुद तय करते हैं.

बता दें कि ब्रिटेन में सांसदों का वेतन और पेंशन तय करने के लिए आयोग का गठन होता है. आयोग में विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को शामिल किया जाता है. आयोग को स्थायी रूप से आदेश दिया गया है कि सांसदों को इतना वेतन और सुविधाएं न दी जाएं जिससे लोग उसे अपना करियर बनाने का प्रयास करें और न ही उन्हें इतना कम वेतन दिया जाए जिससे उनके कर्तव्य निर्वहन में बाधा पहुंचे. आयोग को यह भी निर्देश है कि सांसदों के वेतन-भत्ते निर्धारित करते समय देश की आर्थिक स्थिति को भी ध्यान में रखा जाए. सभी परिस्थितियों पर विचार कर आयोग सिफारिशें करता है. इन सिफारिशों पर हाउस ऑफ कॉमंस (वहां की संसद) में विचार होता है. अंत में प्रधानमंत्री वेतन वृद्धि की सिफारिशों को मंजूर या नामंजूर करते हैं.

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Last Updated :Oct 8, 2021, 10:09 PM IST
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