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...तो क्या 2024 लोकसभा चुनाव से पहले दावत-ए-इफ्तार के जरिए लिखी जा रही है गठबंधन की पटकथा!

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Published : May 2, 2022, 1:41 PM IST

बिहार में मकर संक्रांति भोज और दावत-ए- इफ्तार सियासत की दिशा और दशा तय करती है. लोकसभा चुनाव से पहले बिहार में सियासी इफ्तार का आयोजन हुआ. दावत-ए- इफ्तार के दौरान सियासत के अलग-अलग रंग देखने को मिले. नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) बीजेपी पर दबाव बनाने में कामयाब रहे तो चिराग-मुकेश ने भी हलचलें तेज कर दी हैं. पढ़िए पूरी खबर..

Signs of change in Bihar politics on pretext of Iftar
Signs of change in Bihar politics on pretext of Iftar

पटना: दावत-ए-इफ्तार के बाद बिहार की राजनीति में रफ्तार (New politics start in Bihar on Dawat e Iftar) देखने को मिल रही है. कांग्रेस की तरफ से आयोजित इफ्तार (Congress Iftar At Sadakat Ashram Patna) में एलजेपीआर के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान और वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी एक ही गाड़ी में सवार होकर कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे थे. दोनों के बीच की जुगलबंदी को देखते हुए सियासत में उथल-पुथल का दौर जारी है. माना जा रहा है कि तमाम दल 2024 की तैयारी में जुटे हैं और इफ्तार के बहाने टटोला जा रहा है कि कौन सी पार्टी का जायका आने वाले वक्त में बेहतर साबित हो सकता है.

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इफ्तार के बहाने राजनीति: दावत-ए-इफ्तार के दौरान बिहार में अलग अलग सियासत के रंग देखने को मिले. मुकेश सहनी और चिराग पासवान को दावत-ए-इफ्तार में भाजपा और जदयू की ओर से न्योता नहीं मिला तो जीतन राम मांझी और राजद के इफ्तार (RJD Iftar Party) में दोनों नेता पहुंचे. राजद के इफ्तार में मुकेश सहनी ने खुद तो शिरकत नहीं की लेकिन उनके पार्टी के लोगों ने हिस्सा लिया. नीतीश कुमार ने भी अपने एक्शन से सबको चौंका दिया. खासकर भाजपा सकते में आ गई.

RJD से नजदीकी, BJP से दूरी!: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजद से दूरी को पाटते हुए दावत-ए- इफ्तार के मौके पर पैदल चलकर राबड़ी आवास पहुंचे. तेजस्वी और नीतीश कुमार के बीच रिश्तों में खूब गर्मजोशी दिखी. तेजस्वी यादव जब जदयू के इफ्तार में पहुंचे तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद तेजस्वी यादव को गाड़ी तक छोड़ने पहुंचे. नीतीश कुमार ने अपनी राजनीति से सबको चौंका दिया. खासकर भाजपा खेमे में बेचैनी छा गई. हालांकि पार्टी के नेता दावत-ए-इफ्तार के सियासी मायने से इनकार करते रहे हैं.

वीआईपी ने दिया ये तर्क: लोकसभा चुनाव से पहले इफ्तार के बहाने नए राजनीतिक समीकरण की सुगबुगाहट बढ़ गयी है. इसपर वीआईपी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता देव ज्योति ने कहा है कि इफ्तार के सियासी मायने नहीं है. चिराग पासवान से मुकेश सहनी के अच्छे रिश्ते हैं. राजनीति में कोई किसी का दोस्त या दुश्मन नहीं होता है. वैसे भी राजनीति संभावनाओं का खेल है. दावत-ए- इफ्तार में जीतन राम मांझी के यहां मुकेश सहनी गए.

"जदयू से हमारी कोई दूरी नहीं है. जदयू से अगर हमारे पास निमंत्रण आता तो हमलोग जरूर जाते. जहां से आमंत्रण आया हमलोग गए लेकिन जदयू की ओर से हमें कोई निमंत्रण नहीं मिला."-देव ज्योति,राष्ट्रीय प्रवक्ता,वीआईपी

एलजेपीआर का तर्क: वहीं एलजेपीआर का तर्क है कि पटना से जहां जहां से निमंत्रण मिला वहां वहां हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष मौजूद दिखे. जीतन राम मांझी (Jitan Ram Manjhi Iftar Party) के यहां, कांग्रेस और राजद के यहां चिराग गए. अमन और भाईचारे का संदेश देने के लिए इफ्तार का आयोजन किया जाता है. चिराग पासवान या कोई भी नेता हो उनके राजनीतिक और पारिवारिक संबंध अलग- अलग होते हैं. सीएम नीतीश की नीतियों का चिराग विरोध करते हैं लेकिन जब उनसे मिलते हैं तो पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं. ठीक उसी तरह से मुकेश सहनी से भी संबंध है. पारिवारिक संबंध होने के नाते एक गाड़ी में सफर करना कोई नई बात नहीं है.

"मुकेश सहनी और चिराग पासवान प्रासंगिक नहीं रह गए. दावत-ए-इफ्तार में दोनों नेताओं को इसलिए आमंत्रित नहीं किया गया कि अब यह राजनीति में प्रासंगिक नहीं रह गए. आमंत्रण नहीं मिला होगा. लोग अपने अपने सियासत के हिसाब से देखते हैं. अगर लगता होगा कि उनसे हमें लाभ मिलने वाला है,तभी आमंत्रित करते हैं. मुझे लगता है कि मुकेश सहनी और चिराग पासवान से किसी को कोई लाभ मिलने वाला नहीं है इसलिए उन्हें निमंत्रण नहीं दिया जा रहा है."-प्रेम रंजन पटेल,भाजपा प्रवक्ता

"इफ्तार के कोई सियासी मायने नहीं है. सामाजिक समरसता के लिए ऐसे कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. इफ्तार में सभी को आमंत्रित किया गया था. सभी आए, सीएम नीतीश, चिराग पासवान सभी आए. लेकिन उसके बाद जिस तरह से सियासी रफ्तार बढ़ी है, उसे उस चश्मे से देखना ठीक नहीं है."- मृत्युंजय तिवारी,राजद प्रवक्ता

"दावत-ए-इफ्तार के जरिए राजनीतिक दलों ने सियासी दांव चला और 2024 लोकसभा चुनाव से पहले दलों की नजदीकियां भी देखने को मिली है. राजनीतिक दलों ने एक दूसरे से गिले-शिकवे दूर किए हैं. वहीं नए गठबंधन की संभावनाएं भी देखी जा रही है. दावते इफ्तार से जहां दलों के बीच दूरियां कम हुई वहीं नए गठबंधन के संकेत भी मिले. चिराग और मुकेश सहनी साथ साथ चलने को तैयार दिखे. दोनों नेताओं की महागठबंधन से नजदीकियां दिखी तो नीतीश कुमार बहुत हद तक भाजपा पर दबाव बनाने में कामयाब रहे."- कौशलेंद्र प्रियदर्शी, वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक

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