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बिहार की राजनीति में चमके IAS के सितारे... ढलान पर रही IPS की किस्मत .. जानें इनसाइड स्टोरी

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Published : Jul 13, 2022, 7:58 PM IST

Role of bureaucrats in Bihar politics
Role of bureaucrats in Bihar politics

बिहार जैसे राज्यों में नौकरशाहों के लिए सियासत (Bihar Politics) की जमीन उर्वर है. कई ब्यूरोक्रेट्स ने राजनीतिज्ञों के साथ गठजोड़ का फायदा उठाया और सत्ता के शिखर पर पहुंचे. खास बात यह रही कि आईएएस तो राजनीति में सफल रहे लेकिन आईपीएस पिछड़ गए. बिहार की राजनीति में आईपीएस के ढलान की वजह क्या है पढ़ें...

पटना: बिहार की राजनीति को समझना आसान नहीं है लेकिन अगर किसी ने एक बार इसको समझ लिया तो लंबे समय तक अपनी पकड़ बनाए रख सकता है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण सीएम नीतीश कुमार(CM Nitish Kumar) हैं. बिहार की सियासत की कई बातें इसे केंद्र में हमेशा बनाए रखती है. फिर चाहे गठबंधन धर्म का पालन हो या फिर कुछ और. इन सबके बीच बिहार की राजनीति में नौकरशाहों ( Bureaucrats In Bihar Politics) ने भी अपनी किस्मत खूब चमकायी है. यह और बात है कि बिहार की धरती में आईएएस लंबे रेस के घोड़े साबित हुए तो वहीं आईपीएस का कैरियर ढलता चला गया. विस्तार से पढ़िए बिहार की सियासत और नौकरशाहों की राजनीति.

पढ़ें- टिकट पर सस्पेंस के बीच पटना लौटे RCP सिंह, मीडिया के सवालों का नहीं दिया जवाब

बिहार की सियासत में ब्यूरोक्रेट्स

बिहार की सियासत में ब्यूरोक्रेट्स: लोकतांत्रिक प्रणाली में नौकरशाहों और राजनेताओं के बीच गठजोड़ है. राजनेता और नौकरशाह दोनों एक दूसरे के ऊपर निर्भर भी रहते हैं. दोनों के गठजोड़ की परिणति यह देखने को मिलती है कि नौकरशाह राजनीति में जगह बना लेते हैं और रिटायरमेंट के बाद राजनीति में भी लंबी पारी खेल लेते हैं. यशवंत सिन्हा, आरसीपी सिंह सरीखे नेता उसी के उदाहरण हैं. राजनीतिक महत्वाकांक्षा आईपीएस और आईएएस दोनों में बराबर होती है लेकिन आईएएस राजनीति के मिजाज को समझने में आईपीएस के मुकाबले ज्यादा माहिर होते हैं नतीजतन आईएएस ऑफिसर सत्ता के शिखर पर पहुंच जाते हैं लेकिन आईपीएस को उम्मीद के मुताबिक कामयाबी नहीं मिल पाती है.

वो आईएएस जो बिहार की राजनीति में रहे सफल..

1. यशवंत सिन्हा: बिहार की राजनीति में बड़ा नाम यशवंत सिन्हा (Presidential Candidate Yashwant Sinha) का है. यशवंत सिन्हा ने आईएएस की नौकरी से वीआरएस ली और फिर भाजपा का दामन थामा. यशवंत सिन्हा अटल बिहारी वाजपेई के सरकार में वित्त मंत्री रहे. भाजपा में यशवंत सिन्हा की गिनती बड़े नेताओं में होती थी. फिलहाल यशवंत सिन्हा विपक्ष की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हैं.

2. आरसीपी सिंह: आरसीपी सिंह (Former Union Minister RCP Singh) आईएएस अधिकारी थे और वीआरएस लेकर राजनीति में आए थे. नीतीश कुमार के साथ आरसीपी सिंह लंबे समय तक रहे और केंद्र की सरकार में मंत्री भी बने. आरसीपी सिंह दूसरी पारी के इंतजार में हैं.

3. आरके सिंह: आरके सिंह (Union Energy Minister RK Singh) आईएएस की नौकरी से रिटायर होने के बाद राजनीति में आए थे. भाजपा ने आरके सिंह को लोकसभा चुनाव में टिकट दिया था. आरके सिंह दो बार सांसद बने और केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री हैं.

अपनी पारी का इन आईएएस को है इंतजार: बिहार के 2 आईएएस अधिकारी राजनीति में आने के लिए दस्तक दे रहे हैं. मुख्यमंत्री के परामर्शी अंजनी कुमार सिंह की भी राजनीतिक महत्वाकांक्षा है. अंजनी कुमार सिंह मुख्य सचिव रह चुके हैं. फिलहाल अंजनी सिंह को मौके का इंतजार है. वहीं मनीष वर्मा भी नौकरी से वीआरएस ले चुके हैं और फिलहाल मुख्यमंत्री के सलाहकार हैं. मिल रही जानकारी के मुताबिक मनीष वर्मा को नालंदा से कौशलेंद्र की जगह लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी है.

वो आईपीएस जो बिहार की राजनीति में पिछड़े..

1. डीपी ओझा: बिहार के कई आईपीएस ऑफिसर भी राजनीति के मैदान में आए. नौकरी में रहते हुए उन्होंने खूब सुर्खियां बटोरी लेकिन राजनीति के मैदान में क्लीन बोल्ड हो गए. इस फेहरिस्त में पहला नाम तेजतर्रार पूर्व आईपीएस डीपी ओझा (Bihar Police Former DGP DP Ojha) का है. शहाबुद्दीन को औकात बताने के बाद डीपी ओझा ने राजनीति में भाग्य आजमाया लेकिन लोकसभा चुनाव में वह बुरी तरह हार गए.

2. आशीष रंजन सिंहा: पूर्व डीजीपी आशीष रंजन सिन्हा (Former DGP Ashish Ranjan Sinha) की भी राजनीतिक महत्वाकांक्षा थी. आशीष रंजन सिंहा ने भाजपा ज्वाइन किया लेकिन इंतजार के बाद भी उन्हें कुछ हासिल नहीं हुआ और वह राजनीति से धीरे-धीरे किनारे लग गए.

3. गुप्तेश्वर पांडेय: पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय (Ex DGP Gupteshwar Pandey) को राजनीति में दो बार जोर का झटका लगा. गुप्तेश्वर पांडे को झटका ऐसा लगा कि वह राजनीति छोड़ संत बन गए और फिलहाल वह हिमालय पर्वत पर ध्यान कर रहे हैं. आपको बता दें कि गुप्तेश्वर पांडे को पहली बार तब झटका लगा जब उन्होंने भाजपा के टिकट पर बक्सर से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए नौकरी से इस्तीफा दिया था लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला और मुश्किल से वह नौकरी में वापसी कर पाए. रिटायरमेंट से दो-तीन महीने पहले गुप्तेश्वर पांडे की राजनीतिक महत्वाकांक्षा जगी और इस्तीफा कर जदयू ज्वाइन कर लिया. इस बार भी गुप्तेश्वर पांडे को टिकट नहीं मिली.

4. सुनील कुमार बने अपवाद: पूर्व डीजीपी सुनील कुमार (Minister Sunil Kumar) अपवाद में रहे और नीतीश कुमार ने उन्हें विधानसभा का टिकट दिया. सुनील कुमार भोरे से चुनाव भी जीते और फिलहाल वह बिहार सरकार में मद्य निषेध एवं उत्पाद मंत्री हैं. सुनील कुमार को राजनीतिक विरासत का फायदा भी मिला.

'नहीं लड़ूंगा चुनाव पर राजनीति में सक्रिय': वहीं पूर्व आईपीएस अमिताभ कुमार दास इन दिनों सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर सक्रिय हैं. राजनीति में वह बदलाव लाना चाहते हैं लेकिन चुनाव लड़ना नहीं चाहते हैं. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान अमिताभ कुमार दास ने कहा कि मेरी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं है.

"मैं संघर्ष करता रहूंगा. आईपीएस चुनाव में कामयाब नहीं हो सके इसके पीछे बहुत सारे कारण हो सकते हैं. इसके पीछे का कारण आईपीएस होना नहीं है."- अमिताभ कुमार दास,पूर्व आईपीएस

"आईएएस राजनेताओं के साथ अधिक समय तक रहते हैं. दोनों की एक दूसरे पर निर्भरता भी रहती है. आईएएस राजनेताओं के साथ रहते-रहते राजनीति के गुर भी सीख जाते हैं जबकि आईपीएस को वैसा मौका नहीं मिल पाता है."- कौशलेंद्र दिव्यदर्शी, वरिष्ठ पत्रकार


"आईएएस ऑफिसर विकास कार्यों से जुड़े होते हैं. आम लोगों से उनका मिलना जुलना होता है अगर उनका व्यवहार और काम करने का तरीका अच्छा होता है तो राजनेताओं के साथ-साथ आम लोग भी उन्हें पसंद करते हैं और इसी वजह से राजनीति में सफल भी होते हैं. दूसरी तरफ जहां तक आईपीएस का सवाल है तो आईपीएस की छवि कड़क होती है. आम लोगों से इनका हिलना मिलना बहुत ज्यादा नहीं होता है. इस वजह से इनके प्रति लोगों का विश्वास नहीं बढ़ पाता है."- डॉ संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक


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