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बिहार में खाद की किल्लत पर राजनीति जारी, किसान कालाबाजारी में उर्वरक खरीदने को मजबूर

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Published : Nov 22, 2022, 10:21 PM IST

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खाद को लेकर खरीफ मौसम हो या फिर रवि का मौसम केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच आरोप-प्रत्यारोप पिछले कई सालों से होता रहा है. रबी के मौसम के लिए खाद को लेकर इस बार भी केंद्र सरकार के तरफ से भी दावे हो रहे हैं. वहीं बिहार सरकार के तरफ से भी दावे किए जा रहे हैं. जहां केंद्र का कहना है कि पर्याप्त खाद बिहार को दी गई है और बिहार सरकार के स्टॉक में भी पर्याप्त (Stock OF Fertilizer In Bihar) खाद है सरकार सही ढंग से वितरित नहीं कर पा रही है कालाबाजारी रोक नहीं पा रही है. पढ़ें पूरी खबर..

पटनाः बिहार में खाद की किल्लत पर एक बार फिर से केंद्र सरकार और राज्य सरकार आमने-सामने (Politics On Fertilizer Crisis In Bihar) है. खरीफ के मौसम में भी खाद की किल्लत को लेकर हंगामा हुआ था. अब एक बार फिर से खाद को लेकर मारामारी मची हुई है. समय पर खाद नहीं मिलने से किसानों की मुश्किलें बढ़ी हुई है. केंद्र सरकार कह रही है कि पर्याप्त खाद है. वहीं बिहार सरकार के मंत्री कह रहे हैं कि अभी केवल 37% यूरिया खाद की आपूर्ति ही केंद्र सरकार की तरफ से की गई है. अन्य खाद भी काफी कम मात्रा में बिहार को मिला है.

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राज्य और केंद्र के आंकड़ेः वहीं केंद्र सरकार के आंकड़ों को देखें तो अभी भी यूरिया 1.68 लाख मीट्रिक टन स्टॉक में रखा है, जिसे सरकार वितरित नहीं कर पा रही है. दूसरी तरफ बिहार सरकार के कृषि मंत्री सर्वजीत ने विभागीय बैठक के बाद जो आंकड़ा दिया है उसके हिसाब से अभी तक के यूरिया की जरूरत है 255000 मीट्रिक टन लेकिन केंद्र से आपूर्ति 37% ही हुआ है.

"जदयू संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा भी मानते हैं कि खाद वितरण में स्थानीय प्रशासन सही तरीके से काम नहीं करता है उपेंद्र कुशवाहा का यह भी कहना है कि केंद्र सरकार से और खाद बिहार को मिलना चाहिए लेकिन कुछ स्थानीय प्रशासन की तरफ से भी समस्याएं पैदा की जाती है तो दोनों स्तर पर काम होना जरूरी है प्रशासन स्तर पर भी सही ढंग से खाद का वितरण होना चाहिए और केंद्र से और अधिक खाद बिहार को मिलना चाहिए." -उपेंद्र कुशवाहा, जदयू संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष


"एक तरफ बिहार सरकार जो आंकड़ा दे रही है उसे बीजेपी गलत बता रही है बीजेपी के तरफ से केंद्र सरकार की तरफ से जारी आंकड़े दिए जा रहे हैं । बीजेपी प्रवक्ता विनोद शर्मा का तो यहां तक कहना है कि बिहार के कृषि मंत्री झूठ बोल रहे हैं बिहार सरकार से हम लोग जो आंकड़ा मांग रहे हैं वह उपलब्ध ही नहीं करा रही है सिर्फ आरोप लगा रही है जबकि सच्चाई यही है कि बिहार में खाद की कालाबाजारी हो रही है और सरकार उसे रोक नहीं पा रही है। सरकार के पास पर्याप्त खाद है और आने वाले समय में केंद्र सरकार समीक्षा कर और खाद देगी"-विनोद शर्मा, बीजेपी, प्रवक्ता


खाद वितरण में स्थानीय स्तर पर कुछ समस्याएंः एनपीके और एमओपी भी स्टॉक में पर्याप्त मात्रा में है. किसान कह रहे हैं कि ब्लैक में खाद खरीदना पड़ रहा है तो दूसरी तरफ जदयू के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा (JDU Parliamentary Board Chairman Upendra Kushwaha) भी कहना है कि स्थानीय प्रशासन स्तर पर कुछ समस्या जरूर है लेकिन केंद्र सरकार को और खाद देना चाहिए. बीजेपी कह रही है कि बिहार सरकार गलत आंकड़ा दे रही है क्योंकि कालाबाजारी पर रोक नहीं लगा पा रही (Black Marketing Of Fertilizers) है .केंद्र सरकार आगे भी बिहार की जरूरत के हिसाब से खाद की आपूर्ति करेगी लेकिन बिहार में कालाबाजारी और सीमा क्षेत्रों में तस्करी बड़े पैमाने पर हो रही है और इसलिए किसानों को ऊंचे दामों पर यूरिया और अन्य खाद खरीदना पड़ रहा है.

कालाबाजारी रोकने में केंद्र सरकार विफलः खाद को लेकर खरीफ मौसम हो या फिर रवि का मौसम केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच आरोप-प्रत्यारोप पिछले कई सालों से होता रहा है. रबी के मौसम के लिए खाद को लेकर इस बार भी केंद्र सरकार के तरफ से भी दावे हो रहे हैं. वहीं बिहार सरकार के तरफ से भी दावे किए जा रहे हैं. जहां केंद्र का कहना है कि पर्याप्त खाद बिहार को दी गई है और बिहार सरकार के स्टॉक में भी पर्याप्त खाद है सरकार सही ढंग से वितरित नहीं कर पा रही है कालाबाजारी रोक नहीं पा रही है.

खाद पर केंद्र सरकार के आंकड़ेः केंद्र सरकार के आंकड़ों के अनुसारः यूरिया जरूरत 360000 मीट्रिक टन है और केंद्र सरकार की ओर से अभी तक 375000 मीट्रिक टन उपलब्ध कराया गया है, जिसमें दो लाख 7000 मीट्रिक टन वितरित किया गया है और अभी भी एक लाख 68 हजार मीट्रिक टन स्टॉक में रखा हुआ है.
यही हाल डीएपी ( डाई अमोनिया फास्फेट) का है. नवंबर तक रिक्वायरमेंट 1.63 मीट्रिक टन है. केंद्र सरकार की ओर से 2.30 मीट्रिक टन डीएपी दिया गया है. लेकिन बिहार सरकार की ओर से एक लाख 41 हजार मीट्रिक टन का ही वितरण हुआ है और स्टॉक में अभी भी 90 हजार मीट्रिक टन रखा हुआ है.

"बिहार में खाद का अधिक उपयोग हो रहा है. किसान कम खाद में भी अच्छा फसल उत्पादन कर सकते हैं ऐसे यूरिया और अन्य खाद के लिए समय तय है और यदि मिट्टी जांच के बाद सही तरीके से विशेषज्ञ से राय लेकर खाद का उपयोग करें तो उत्पादन पर बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ने वाला है."-अनिल झा, कृषि वैज्ञानिक

पर्याप्त मात्रा में एमओपी और एसएसपी का स्टॉकः एमओपी (पोटेशियम क्लोराइड फर्टिलाइजर) नवंबर तक रिक्वायरमेंट 53 हजार मीट्रिक टन की है लेकिन केंद्र सरकार ने 91000 मीट्रिक टन उपलब्ध कराया है जिसमें से केवल 48000 मीट्रिक टन का ही वितरण हुआ है 43 हजार मीट्रिक टन अभी भी स्टॉक में रखा है. एनपीके 67000 मीट्रिक टन ही आवश्यकता है लेकिन 2 लाख 14000 मीट्रिक टन केंद्र सरकार की ओर से उपलब्ध कराया गया है और अभी तक एक लाख 15 हजार मीट्रिक टन का ही वितरण हुआ है. 99 हजार मीट्रिक टन अभी भी बिहार में स्टॉक में है एसएसपी 76 हजार मीट्रिक टन उपलब्ध कराया गया जिसमें से केवल 21000 मीट्रिक टन का ही वितरण हुआ है 54000 मीट्रिक टन अभी भी स्टॉक में है.

किसान कालाबाजारी में खरीदने को मजबूरः खाद को लेकर बिहार के किसान परेशान हैं. किसानों को उचित कीमत पर खाद समय से नहीं मिल रहा है. केंद्र सरकार का कहना है कि पर्याप्त मात्रा में खाद है, लेकिन बिहार सरकार का कहना है कि हम लोगों को समय पर खाद नहीं मिल पा रहा है. वहीं किसानों का कहना है कि ब्लैक में खाद लेना पड़ रहा है. सही समय पर खाद नहीं मिलने से उत्पादन पर असर पड़ता है. हम लोगों की मुश्किलें बढ़ी हुई है. यूरिया नहीं मिलने पर मिक्स्चर खाद लेना पड़ता है, जिससे लागत और बढ़ जाती है.

2021 में 265 विक्रेताओं का लाइसेंस रद्दः 2021 में कृषि विभाग ने खाद बेचने में गड़बड़ी के कारण 750 खाद विक्रेताओं का लाइसेंस निलंबित किया था और 265 विक्रेताओं के लाइसेंस को रद्द भी किया गया था 3000 से छापेमारी की गई थी इस बार भी कृषि विभाग के अधिकारियों से जो जानकारी मिल रही है. उसके अनुसार लगातार छापेमारी की जा रही है. खासकर जो बॉर्डर इलाके हैं, उस पर विभाग की नजर है. बिहार से सबसे अधिक खाद नेपाल में तस्करी होता है और बिचौलिए की भूमिका महत्वपूर्ण होती है. किसानों को सही समय पर खाद नहीं मिलने के कारण उन्हें कालाबाजारी में खाद खरीदना पड़ता है. हर साल कमोबेश खरीफ और रबी फसल में यही स्थिति बनी रहती है. इस साल भी केंद्र सरकार और बिहार सरकार के आरोप के बीच खामियाजा किसानों को ही उठाना पड़ रहा है. कालाबाजारी में खाद खरीदने से उनकी कृषि लागत लगातार बढ़ रही है.

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