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Poetry on Migration: पलायन के दर्द को प्रभात ने कविता के जरिए किया बयां, खूब पसंद कर रहे लोग

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Published : Mar 9, 2023, 6:37 PM IST

Updated : Mar 9, 2023, 6:47 PM IST

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बिहार के पटकथा लेखक प्रभात बांधुल्य ने पलायन के दर्द पर एक कविता (poem on migration of laborers from bihar) लिखी है और उस पर एक वीडियो बनाया है. यह कविता आजकल काफी चर्चा में है. अभी होली में ट्रेन भर-भरकर लोग बाहर से बिहार अपने घरों में पर्व मनाने आए थे और अब फिर उसी तरह भारी मन से बाहर जा रहे हैं. क्योंकि यहां रोजगार नहीं है. इसलिए कमाने के लिए बिहार से बाहर जाना पड़ रहा है. पढ़ें पूरी खबर..

बिहार से मजदूरों के पलायन पर कविता

पटना:बिहार में पलायन एक बड़ी समस्या बन गी है. होली, दीपावली, छठ जैसे पर्व त्योहारों को मनाने के लिए बाहर प्रदेशों में काम करने वाले बिहारी ट्रेनों में खचाखच भर कर बिहार लौटते हैं. जैसे ही त्योहार समाप्त होता है, वापस काम पर लौटने के लिए प्रवासी बिहारियों की भीड़ ट्रेन में नजर आने लगती है. सभी दिहाड़ी मजदूरी का काम करने के लिए बिहार से अन्य प्रदेशों में जाते हैं. वह हमेशा यही शिकायत करते हैं कि काश बिहार में भी उन्हें काम मिल जाता, तो उन्हें दूसरे प्रदेश काम के लिए जाना नहीं पड़ता. ऐसे में जाने माने लेखक और स्क्रीनप्ले राइटर प्रभात बांधुल्य (Screenplay Writer Prabhat Bandhulya) ने पलायन की पीड़ा को कविता का रूप दिया है.

ये भी पढ़ेंः 'कुंडली भाग्य' के स्क्रीनप्ले राइटर प्रभात बांधुल्य बोले..'किताब और सीरियल के लेखन में है बड़ा फर्क'

कविता के जरिए दर्शाया पलायन का दर्दः कुंडली भाग्य सीरियल के स्क्रीनप्ले राइटर प्रभात बांधुल्य ने त्योहार समाप्त होने के बाद वापस काम पर लौटते समय जो मजदूरों की पीड़ा होती है. उसको एक कविता का रूप देकर गाया है, जो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है. प्रभात इस कविता में रेलवे स्टेशन पर बैठ कर वापस काम पर लौटने वाले मजदूरों की पीड़ा को गा रहे हैं और इसको वह बिहार के औरंगाबाद में जो भाषा है उसी शैली में गाएं हैं.

कमाने की मजबूरी ले जाती है बिहार से बाहरः गाने में प्रभात कहते हैं कि 'जाए के मनवा ना हऊए माई, लेकिन जायल मजबूरी गे..., सोचले ता रही हम ईंहे रह जईती.., जिला में कहीं कमईती गे, तोहर हाथ के बनल खाना, गऊंवे में माई खईती गे..., जाए के मनवा ना हऊवे माई, लेकिन जायल मजबूरी गे.. ' गाने के बारे में प्रभात बताते हैं कि रोजगार ही है जो पलायन के लिए उकसाता है. हमारे बिहार में मजदूर बहुत हैं और मजबूर मजबूर है पलायन के लिए क्योंकि सरकार प्रदेश में मजदूरों को काम नहीं दे पा रही है.

सरकार से सवाल पूछते रहेंगे प्रभात: प्रभात बताते हैं कि वह एक लेखक हैं और लेखक का काम है सवाल पूछते रहे. वह सरकार से कहेंगे कि होली में लोग भांग का नशा करते हैं, लेकिन सरकार यदि सत्ता के नशे में है तो वह सरकार को बता देना चाहते हैं कि सरकार किसी की भी हो एक लेखक सवाल पूछता रहेगा. बिहार के मजदूरों को आए दिन दूसरे प्रदेशों में अपमान सहना पड़ रहा है. बिहारी मजदूरों की चुन-चुन कर पिटाई कर दी जा रही है और सभी मजदूर दूसरे प्रदेशों में काम करने के लिए विवश इसलिए हैं. क्योंकि प्रदेश में उन्हें काम नहीं मिल रहा है.

"एक लेखक हैं और लेखक का काम है सवाल पूछते रहे. वह सरकार से कहेंगे कि होली में लोग भांग का नशा करते हैं, लेकिन सरकार यदि सत्ता के नशे में है तो वह सरकार को बता देना चाहते हैं कि सरकार किसी की भी हो एक लेखक सवाल पूछता रहेगा. मजदूर दूसरे प्रदेशों में काम करने के लिए विवश इसलिए हैं. क्योंकि प्रदेश में उन्हें काम नहीं मिल रहा है" - प्रभात बांधुल्य, लेखक

Last Updated :Mar 9, 2023, 6:47 PM IST
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