ETV Bharat / state

'कुंडली भाग्य' के स्क्रीनप्ले राइटर प्रभात बांधुल्य बोले..'किताब और सीरियल के लेखन में है बड़ा फर्क'

author img

By

Published : Dec 13, 2022, 7:13 PM IST

Updated : Dec 13, 2022, 8:36 PM IST

टीवी सीरियल 'कुंडली भाग्य' के स्क्रीनप्ले राइटर प्रभात बांधुल्य बिहार के औरंगाबाद के रहने वाले हैं. इन्होंने किताब, सीरियल और वेबसीरीज के लेखन में अंतर को समझाया. इसके अलावा इन्होंने अपनी आने वाली शाॅर्ट फिल्म के बारे में भी बात (Conversation with script writer Prabhat Bandhulya) की. यहां पेश है ईटीवी भारत के साथ प्रभात बांधुल्य की एक्सक्लूसिव इंटरव्यू..

पटकथा लेखक प्रभात बंधुल्य से बातचीत
पटकथा लेखक प्रभात बंधुल्य से बातचीत

पटकथा लेखक प्रभात बंधुल्य से बातचीत

पटना: बिहार के औरंगाबाद के रहने वाले 28 वर्षीय प्रभात बांधुल्य फिल्मी दुनिया में अब एक अपना मुकाम बना चुके हैं. प्रभात बांधुल्य जी टीवी पर प्रसारित होने वाले सीरियल कुंडली भाग्य के स्क्रीनप्ले राइटर हैं. प्रभात बांधुल्य ने ईटीवी भारत से खास बातचीत (Interview of screen play writer Prabhat Badhulya) में बताया कि पुस्तक लिखना, टीवी सीरियल के लिए लिखना और वेब सीरीज के लिए लिखने में कितना फर्क है.

ये भी पढ़ेंः 'मैं नया लेखक हूं पटना से सपोर्ट चाहिए'...एक्टिंग में हुए फेल, तो पत्नी ने कहा लेखक बन जाओ

बनारस वाला इश्क किताब से की लेखन की शुरुआतः प्रभात ने लॉ की पढ़ाई बीएचयू से की है और फिर बनारस में पढ़ाई के दौरान उन्होंने बनारस वाला इश्क पुस्तक लिखा और फिर टीवी सीरियल के लिए लिखने लगे. प्रभात बालाजी टेलिफिल्म से जुड़े हुए हैं और हाल ही में एक शॉर्ट फिल्म उनकी आई है जो बिहार के पंचायती सिस्टम पर तंज कसती है जिसका नाम है फिक्स रेट और इस पर अब वह वेब सीरीज लाने की तैयारी में है.

किताब, सीरियल और वेब सीरीज लेखन में काफी फर्कः प्रभात ने बताया कि वह पुस्तक लिखकर टीवी सीरियल के लिए स्क्रीन प्ले राइटिंग में गए और फिर उन्होंने वेब सीरीज के लिए लिखना शुरू किया. उन्होंने सबसे पहले बनारस वाला इश्क लिखा जो वामपंथ और दक्षिणपंथ राजनीति के बीच की कहानी है. प्रभात ने बताया कि पुस्तक लिखने में लेखक की अपनी स्वतंत्रता रहती है और अपनी भावनाओं को अपनी समझ को वह जिस प्रकार चाहता है उस प्रकार लिखता है.

सीरियल लिखने के दौरान राइटर वाली स्वतंत्रता नहीं होतीः प्रभात ने कहा कि टीवी सीरियल के लिए स्क्रीनप्ले राइटिंग के समय राइटर स्वतंत्र नहीं होता. वहां सिर्फ उसका अपना दिमाग नहीं होता, इसके लिए एक राइटर्स रूम रहता है जहां कई लोग बैठे होते हैं कई लोगों के आइडियाज रहते हैं, एक कहानी तैयार की जाती है, एक दिशा निर्देश रहता है कि इस डायरेक्शन में कहानी को आगे बढ़ाना है और फिर उस अनुसार पटकथा लिखी जाती है. सीरियल के लिए लिखते समय उन लोगों को बताया जाता है कि जिस प्रकार पुराने जमाने में गांव में दादी नानी एक दूसरे के घर का किस्सा कहती थी.

दादी-नानी वाला काम करते हैं सीरियल लिखने वालेः उन्होंने कहा कि आज के समय में गांव का माहौल भी बदल गया है और इस घर की बात दूसरे घर में नहीं जाती है. ऐसे में उनके जैसे टीवी सीरियल के लेखकों को बताया जाता है कि आप वह दादी-नानी बनिए. इसका मतलब है कि आप वह कहानी सुनाइए की उस घर में क्या घटना घट रही है उस घटना पर घर के सदस्यों का कैसा रिस्पॉन्स है. उस घर में उसकी सास कैसी है फोटो कैसी है बेटी कैसी है बेटी का बॉयफ्रेंड कैसा है. इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए एक सीरियल की पटकथा लिखी जाती है.

महिलाएं होती हैं सीरियल की प्रमुख दर्शकः सीरियल में महिला कैरेक्टर को एक आदर्श महिला, पीड़ित महिला, शोषित महिला और त्यागी महिला दिखाने के सवाल पर प्रभात बांधुल्य ने बताया कि लोग जब सीरियल लिखते हैं तो उन्हें पता होता है कि उनके जो दर्शक हैं वह महिलाएं हैं और महिलाओं को ध्यान में रखते हुए ही पटकथा लिखी जाती है. एक मैसेज दिया जाता है कि समाज में अगर किसी महिला को दबाया जा रहा है तो वह महिला एक समय पर हीरो भी है. टीवी सीरियल के लिए पटकथा लिखते वक्त ध्यान दिया जाता है कि जो प्रमुख महिला कैरेक्टर है वह एक हीरोइज्म एक्टिविटी कर रही होती है. टीवी सीरियल की प्रमुख दर्शक महिलाएं होती हैं इसलिए कहानी के इर्द-गिर्द सिर्फ महिलाएं ही होती हैं.


बिहार के पंचायती सिस्टम पर बना रहे वेब सीरीज: प्रभात बांधुल्य ने बताया कि हाल ही में उनकी एक शॉर्ट फिल्म आई है 'फिक्स रेट'. इसे वह सीरीज के तौर पर लाने जा रहे हैं. यह कहानी बिहार के पंचायती सिस्टम पर तंज कसती है कि किस प्रकार से बिना कोई नियम के एक नियम बना लिया जाता है. पहले ₹2000 खाना तब बनेगा पखाना. उन्होंने बताया कि जब शौचालय बनाने के लिए गांव-गांव में कमीशन लिए जा रहे थे, सेंट्रल से ₹12000 आता था और गांव में पंचायती सिस्टम से जुड़े लोग पैसा डलवाने से पहले ही ₹2000 ले लेते थे, इसी व्यवस्था को दिखाते हुए उन्होंने यह कहानी तैयार की है.

एक भोजपुरी फिल्म की कहानी है तैयारः प्रभात बताते हैं कि 2000 रुपये देने में सरकार का कोई निर्देश नहीं था और लोग स्वेच्छा से 2000 रुपये का कमीशन दे रहे थे. इसके अलावा वह एमएक्स प्लेयर के लिए एक सीरीज लिख रहे हैं, जो बिहार की पृष्ठभूमि पर है. इसके अलावा उनकी एक भोजपुरी फिल्म की कहानी भी तैयार हो गई है. इस पर शूटिंग शुरू है और जल्द ही आएगी.

अपनी कहानी में बिहार का बदला रूप दिखा रहे प्रभातः प्रभात बांधुल्य ने बताया कि वह चाहे वेब सीरीज के लिए लिख रहे हों या भोजपुरी फिल्मों के लिए लिखे, उनका प्रयास रहता है कि वह एक बदले हुए बिहार की तस्वीर दुनिया के सामने पेश करें. लोग बिहार के बारे में कट्टा, बंदूक और अपराध दिखा रहे थे और वह बदला हुआ बिहार दिखाना चाहते हैं. भले ही 90 के दशक में बिहार में अपराध का दौर रहा हो, लेकिन उनका जन्म 90 के दशक का है और उन्होंने होश संभाला है तो 2000 के बाद का दौर देखा है. इसमें उन्होंने लिखना, सुनना सीखा है. वह अपनी वेब सीरीज के माध्यम से जो बिहार दिखा रहे हैं उसमें बदला हुआ बिहार दिख रहा है. यहां स्टार्टअप की बात हो रही है, जहां बिहारी होने पर गर्व की अनुभूति होने की बात हो रही है.

मुंबई में बेची जा रही बिहार की कहानीः प्रभात बांधुल्य ने बताया कि उन्होंने एक कविता लिखी है और उनका यह मानना भी है कि 'हम गांव के लोग रे बाबू, सब कुछ कर जाते हैं, खेत खलिहान पोरा गांज, अपनी किस्मत को खुद ही मांज, मंजिल को चूम आते हैं'. उन्होंने कहा कि आज के समय में मुंबई में हमारी कहानी बेची जा रही है. यूपी बिहार की कहानी कही जा रही है. हमारे घर की कहानी कही जा रही है. हमारा खटिया और मचान दिख रहा है, जब खटिया और मचान लिखने वाले लोग वहां हैं और हमारी कहानी को लिख करके अपना मार्केट बना रहे हैं तो हम लोग जो बिहार के हैं और लिखना जानते हैं तो क्यों ना अपने गांव को अपने समाज को फिल्मों और वेब सीरीज के माध्यम से और बेहतर तरीके से दर्शाए.

हमेशा से पटना पुस्तक मेला आता रहा हूंः प्रभात ने कहा कि अब पूरा मौका है, क्योंकि ओटीटी प्लेटफॉर्म आने से नए लेखकों को काफी बड़ा मंच मिला है. कलाकार पहले भी थे लेकिन अलग-अलग प्लेटफार्म आने से नए लेखकों को बड़ा मौका मिल रहा है और उन्हें अपना बेहतर करने का पूरा अवसर भी मिल रहा है. प्रभात ने बताया कि राजधानी पटना में बहुत समय के बाद पटना पुस्तक मेला लगा है और उन्हें लिखने पढ़ने का शौक है इसलिए हमेशा से वह पटना पुस्तक मेला में आते रहे हैं. कॉलेज के समय भी यहां आते थे और इस बार भी वह यहां पहुंचे हुए हैं नए लेखकों की कहानी देख रहे हैं किताबें खरीद रहे हैं ताकि फुर्सत के समय में पढ़कर अपने ज्ञान को और समृद्ध करें.

" पुस्तक लिखकर टीवी सीरियल के लिए स्क्रीन प्ले राइटिंग में आया और फिर वेब सीरीज के लिए लिखना शुरू किया. पुस्तक लिखने में लेखक की अपनी स्वतंत्रता रहती है. वहीं स्क्रीनप्ले राइटिंग के समय राइटर स्वतंत्र नहीं होता. वहां सिर्फ उसका अपना दिमाग नहीं होता, इसके लिए एक राइटर्स रूम रहता है जहां कई लोग बैठे होते हैं कई लोगों के आइडियाज रहते हैं, एक कहानी तैयार की जाती है, एक दिशा निर्देश रहता है कि इस डायरेक्शन में कहानी को आगे बढ़ाना है और फिर उस अनुसार पटकथा लिखी जाती है" - प्रभात बांधुल्य, स्क्रीन प्ले राइटर

Last Updated :Dec 13, 2022, 8:36 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.