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'बिहार यात्रा' के बहाने नीतीश की 'खोई जमीन' मजबूत करेंगे या JDU में अपनी 'स्वीकार्यता' बढ़ाएंगे कुशवाहा?

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Published : Jul 7, 2021, 8:44 PM IST

जेडीयू नेता उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) चंपारण से अपनी यात्रा की शुरुआत करेंगे. वे पूरा बिहार घूमेंगे और लोगों से फीडबैक लेंगे. उनकी इस यात्रा को लेकर सियासी गलियारों में सवाल उठ रहे हैं कि कुशवाहा बिहार यात्रा से अपनी खोई जमीन मजबूत करेंगे या फिर नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के लिए जमीन तैयार करेंगे.

उपेंद्र कुशवाहा
उपेंद्र कुशवाहा

पटना: जेडीयू में शामिल होने के बाद से उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) पार्टी को मजबूत करने की कोशिश में 10 जुलाई से बिहार यात्रा की शुरुआत करने वाले हैं. वे विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election) में पार्टी के खराब परफॉर्मेंस की वजह तो तलाशेंगे ही, लोगों से फीडबैक भी लेंगे. उनका दावा है कि जेडीयू (JDU) को वे एक बार फिर से बिहार की सबसे बड़ी पार्टी बनाएंगे.

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नीतीश कुमार ने पिछले 15 सालों में अपनी यात्राओं का रिकॉर्ड बनाया है. एक दर्जन से भी अधिक बार उन्होंने यात्रा की है. 2005 से 'न्याय यात्रा' की शुरुआत की थी और लगातार यात्रा करते रहे. कभी 'विकास यात्रा' तो कभी 'धन्यवाद यात्रा' और कभी 'हरियाली यात्रा' की. नीतीश कुमार हर बार अपनी यात्रा की शुरुआत चंपारण से ही करते रहे हैं.

नीतीश कुमार के 'पदचिह्नों' पर चलते हुए उनके छोटे भाई उपेंद्र कुशवाहा भी अपनी आगामी यात्रा की शुरुआत चंपारण से करेंगे. एक तरफ नीतीश 12 जुलाई से जनता दरबार शुरू कर रहे हैं तो दूसरी तरफ उपेंद्र कुशवाहा ठीक 2 दिन पहले बिहार यात्रा पर निकल जाएंगे.

उपेंद्र कुशवाहा महत्वाकांक्षी नेता माने जाते हैं और उनकी नजर बिहार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रही है. कभी नीतीश कुमार के करीबी भी रहे और खुलकर विरोध में आंदोलन भी चलाया. अब फिर से वे नीतीश कुमार के साथ हैं और पार्टी को नंबर एक बनाने की बात करते रहे हैं.

देखें रिपोर्ट

उपेंद्र कुशवाहा को मिले नीतीश कुमार के नए टास्क को लेकर विपक्ष सवाल उठा रहा है. आरजेडी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी का कहना है कि वे अब कोई भी यात्रा करवा लें, उनकी जमीन तैयार होने वाली नहीं है. उपेंद्र कुशवाहा पहले अपनी यात्रा नीतीश कुमार के विरोध में करते थे, लेकिन अब लोगों के बीच जाकर क्या वे 'सुशासन बाबू' की झूठी 'विकासगाथा' सुनाएंगे.

"जब नीतीश कुमार के दौरे से कोई फर्क नहीं पड़ा और बिहार फिसड्डी राज्य में शामिल हो गया, तब उपेंद्र कुशवाहा ऐसी यात्रा कर क्या कर लेंगे."- मृत्युंजय तिवारी, प्रवक्ता, आरजेडी

हालांकि जेडीयू की सहयोगी बीजेपी के प्रवक्ता विनोद शर्मा कहते हैं कि निश्चित तौर पर उपेंद्र कुशवाहा की इस यात्रा से जेडीयू को सियासी लाभ मिलेगा और इससे बीजेपी को भी मजबूती मिलेगी.

वहीं, राजनीतिक जानकार प्रो. अजय झा मानते हैं कि इस यात्रा के माध्यम से उपेंद्र कुशवाहा अपनी स्थिति पार्टी में मजबूत करेंगे. साथ ही उनके इस दौरे से जेडीयू को भी फायदा होगा. इस का राजनीतिक संदेश हर किसी के लिए है. हालांकि पहले भी तमाम नेता इस तरह की यात्राएं निकालते रहे हैं.

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नीतीश कुमार की नजर 'लव-कुश' समीकरण को मजबूत करने पर हैं. ऐसे में उपेंद्र कुशवाहा पर 'कुश' यानी कोइरी जाति के लोगों के बीच एक बार फिर से पैठ मजबूत करने की जिम्मेदारी है. 2020 के विधानसभा चुनाव में 16 कुशवाहा समुदाय के विधायक चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं. हालांकि यह 2015 के 20 विधायकों के मुकाबले कम है.

हालिया चुनाव में बीजेपी से 3, जेडीयू से 4, आरजेडी से 4, सीपीआई (माले) से 4 और सीपीआई के टिकट पर एक विधायक जीते हैं. वहीं 2015 की बात करें तो जेडीयू से 11, बीजेपी से 4, आरजेडी से 4, कांग्रेस से एक और आरएलएसपी से विधायक बने थे. 2015 के चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी पार्टी आरएलएसपी से कुशवाहा समुदाय के 48 लोगों को टिकट दिया था, लेकिन जीत केवल एक सीट पर ही हुई थी.

ईटीवी GFX
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नीतीश कुमार जिस कुर्मी समाज से आते हैं, उस पर उनकी पकड़ आज भी काफी मजबूत मानी जाती है. 2020 विधानसभा चुनाव में 9 सीटों पर कुर्मी जाति के विधायक चुनाव जीते हैं, जबकि 2015 में इनकी संख्या 16 थी. इस बार जेडीयू के 12 कुर्मी प्रत्याशियों में से 7 की जीत हुई. वहीं बीजेपी के दो विधायक चुनाव जीते, जबकि आरजेडी और कांग्रेस से एक-एक कुर्मी विधायक जीते हैं. वहीं 2015 चुनाव की बात करें तो जेडीयू से 13, बीजेपी-कांग्रेस और आरजेडी से एक-एक कुर्मी विधायक चुनाव जीते थे.

बिहार में कुशवाहा और कुर्मी समाज से आने वाले विधायकों की संख्या लगातार घटी है. यही वजह है कि नीतीश कुमार और उपेंद्र कुशवाहा एक साथ आए हैं, जिससे 'लव-कुश' समीकरण मजबूत हो सके. यही समीकरण कभी उनका आधार वोट बैंक हुआ करता था. बाद में एक-एक कर कुशवाहा समाज के सभी लीडर नीतीश कुमार से दूर हो गए. अब उपेंद्र कुशवाहा को लाकर वे फिर से अपनी खोई जमीन को मजबूत करना चाहते हैं.

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बिहार में कुशवाहा का वोट बैंक 5 फीसदी के आसपास है. जेडीयू में आने के बाद पहले संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष और फिर विधान पार्षद बनने वाले उपेंद्र कुशवाहा की जिम्मेदारी और महत्वाकांक्षा दोनों बहुत बड़ी है. ऐसे में कुशवाहा वोट बैंक को सहेज कर कुशवाहा जाहिर तौर पर एक 'तीर' से दो निशाना साधना चाहेंगे. जिम्मेदारी निभाने में सफल रहे तो नीतीश कुमार का भरोसा बढ़ेगा और भविष्य में ओहदा भी बढ़ेगा. आरसीपी सिंह के केंद्रीय मंत्री बनने के बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर भी उनके नाम पर विचार हो सकता है.

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