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जानिए क्यों मनाया जाता है छठ महापर्व, क्या है इसका पौराणिक महत्व

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Published : Nov 7, 2021, 6:05 AM IST

बिहार में छठ का विशेष महत्व है. छठ सिर्फ एक पर्व नहीं है, बल्कि महापर्व है, जो पूरे चार दिन तक चलता है. नहाए-खाए से इसकी शुरुआत होती है, जो अस्ताचलगामी और उदयीमान सूर्य को अर्घ्य देकर समाप्त होती है. जानिए छठ पूजा की परंपरा कब और कैसे शुरू हुई..

chhath puja vrat katha
chhath puja vrat katha

पटना: बिहार की संस्कृति बन चुके महापर्व छठ (Chhath Puja 2021) को मुख्य रूप से बिहार के साथ ही झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है. कार्तिक शुक्ल के पष्ठी को यह महापर्व मनाया जाता है इसलिए इसे षष्ठी पूजा भी कहते हैं. बिहारियों () का सबसे बड़ा पर्व, छठ माना जाता है. छठ की महत्ता को इसी बात से समझा जा सकता है कि इसे हिंदुओं के साथ ही अन्य धर्मालंबी भी मनाते देखे जाते हैं.

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धीरे धीरे प्रवासी भारतीयों द्वारा लोकआस्था का यह महापर्व देश में ही नहीं बल्कि विश्वभर में प्रचलित हो गया है. इस पर्व में किसी मूर्ति की नहीं बल्कि सूर्य की उपासना की जाती है और इसे छठी मईया कहा जाता है. छठ पूजा की परंपरा कैसे शुरू हुई, इस संदर्भ में कई कथाएं प्रचलित हैं. एक मान्यता के अनुसार, जब राम-सीता 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, तब रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया. सीता ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी. सप्तमी को सूर्योदय के समय फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था.

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छठ को लेकर एक और कथा प्रचलित है. किवदंती के अनुसार जब पांडव सारा राजपाठ जुए में हार गए, तब द्रोपदी ने छठ व्रत रखा था. इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को सब कुछ वापस मिल गया.

सूर्य की उपासना सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि अन्य कई देशों में भी होती है. लेकिन कहीं सूर्य को देवता तो कहीं देवी के रूप में पूजा जाता है. सूर्य की उपासना ऋग्वैदिक युग से ही होती रही है, जिनका ऋग्वैदिक नाम ‘सविता’ भी है. ऋग्वैदिक काल में वे जगत के चराचर जीवों की आत्मा हैं. वे सात घोड़े के रथ पर सवार रहते हैं और जगत को प्रकाशित करते हैं. वे प्रकृति के सर्वश्रेष्ठ रूप हैं. कालांतर में देशभर में उनकी पूजा प्रारंभ हुई.

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कई देश करते हैं सूर्य की पूजा: भारत के साथ ही अमेरिका, जापाना सहित कई देशों में सूर्य की उपासना की जाती है. मध्य अमेरिका के लोग सूर्य को तोनातिहू के रूप में पूजते हैं. यहां माना जाता है कि सूर्य फसलों को खुशहाली देते हैं और इंसानों को जीवन. वहीं जापान में सूर्य को माता के रूप में पूजा जाता है. उन्हें संपूर्ण ब्रह्मांड की भी देवी माना गया है. जापान के होनशू द्वीप पर इनका मंदिर है.

इरान में भी सूर्य को ईश्वर माना गया है. ग्रीक और रोमन लोग मित्रदेव जिसका जिक्र हिंदू पुराणों में भी है, को सूर्य का ही प्रतीक मानते हैं. माना जाता है कि ‘मित्र’ की उत्पत्ति ब्रह्मांड में स्वयं ही एक गुफा के भीतर 25 दिसंबर को हुई और उनपर किसी का वश नहीं चलता. वहीं मिस्त्र में उगते हुए सूर्य को होरुस दोपहर के सूर्य को रा कहा जाता है. मिस्र के लोगों के अनुसार दुनिया पर रा का ही राज है और यह बाज का सिर लिए पूरी दुनिया की चौकसी और इंसान का असुरों से संरक्षण कर रहे हैं. यूनानी गाथाओं में अपोलो को ईश्वर के समकक्ष तो दर्जा दिया गया लेकिन सूर्य के रथ के साथ वो दृष्टिगोचर नहीं हुए. दूसरी ओर रोमन लोगों ने अपालो की तुलना सूर्य से की और उनकी पूजा सूर्य रूप में ही की जाने लगी.

महापर्व छठ की महता के कारण लोग इससे जुड़ते चले गए. इस मौके पर बाहर काम कर रहे लोग भी अपने घर लौट आते हैं और पूरे परिवार के साथ इस महापर्व को मनाया जाता है. हर साल दिवाली से छठे दिन छठ पूजा का आयोजन होता है. इस साल भी छठ पूजा को लेकर लोगों का उत्साह चरम पर है.

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