Chhath Puja 2021:आस्था के साथ-साथ छठ पूजा का है वैज्ञानिक महत्व, कारण जान हो जाएंगे हैरान

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Published : Nov 6, 2021, 1:53 PM IST

Chhath Puja 2021

करोड़ों लोगों की आस्था छठ महापर्व (Chhath Puja 2021 In Bihar) से जुड़ी है. 4 दिनों के इस पावन व्रत से जीवन के हर हिस्से में बेहतरी आती है. लेकिन छठ का नाता केवल धर्म से ही नहीं है. इसके तमाम वैज्ञानिक पहलू भी हैं. कैसे इस महान पर्व का महत्व और भी बढ़ जाता है. आगे पढ़ें पूरी खबर..

पटना: छठ महापर्व (Chhath Puja 2021) का सिर्फ पौराणिक या सांस्कृतिक महत्व ही नहीं होता बल्कि वैज्ञानिक कारण (Scientific Significance Of Chhath Puja) भी उतना ही महत्वपूर्ण माना जाता है, जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे. दरअसल षष्ठी तिथि (छठ) एक विशेष खगोलीय अवसर है. इस दौरान सूर्य की पराबैंगनी किरणें यानी कि अल्ट्रावायलेट किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं.

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छठ का वैज्ञानिक महत्व: माना जाता है कि पराबैंगनी किरणों के कुप्रभावों से मनुष्य की रक्षा के लिए छठ महापर्व की परंपरा शुरू हुई. मान्यताओं के अनुसार छठ महापर्व (Bihar Chhath) के पालन से सूर्य के प्रकाश के हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा संभव है. सूर्य ग्रह एक विशालकाय तारा है, जिसके चारों ओर आठों ग्रह और अनेकों उल्काएं चक्कर लगाते रहते हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार सूर्य जलता हुआ विशाल पिंड है. इसके गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण ही सभी ग्रह इसकी तरफ खींचे रहते हैं. अगर ऐसा न हो तो सभी अंधकार में लीन हो जाएंगे.

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अस्ताचलगामी और उदयीमान सूर्य को अर्घ्य देने के समय मनुष्य पर सूर्य के किरणें पड़ती हैं. इसकी किरणों से चर्म रोग नहीं होता है और लोग निरोग होते हैं. कहा जाता है कि इससे सेहत से जुड़ी समस्याएं परेशान नहीं करती हैं. विज्ञान कहता है कि छठ के दौरान सूर्य उपासना करने से ऊर्जा का संचरण होता है और स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाए रखा जा सकता है. दीपावली के बाद सूर्यदेव का ताप पृथ्वी पर कम पहुंचता है. इसलिए व्रत के साथ सूर्य के ताप के माध्यम से ऊर्जा का संचय किया जाता है, ताकि शरीर सर्दी में स्वस्थ रहे. इसके अलावा सर्दी आने से शरीर में कई परिवर्तन भी होते हैं. खास तौर से पाचन तंत्र से संबंधित परिर्वतन. छठ पर्व का उपवास पाचन तंत्र के लिए लाभदायक होता है. इससे शरीर की आरोग्य क्षमता में वृद्धि होती है.

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वेदों के अनुसार सूर्य जगत रूपी शरीर की आत्मा है. जिसके बिना धरती की कल्पना करना संभव नहीं है. भूलोक और द्युलोक के मध्य में अन्तरिक्ष लोक होता है. इस द्युलोक में सूर्य भगवान, नक्षत्र तारों के मध्य में विराजमान रह कर तीनों लोकों को प्रकाशित करते हैं. पुराणों अनुसार सूर्य देवता के पिता का नाम महर्षि कश्यप व माता का नाम अदिति है. इनकी पत्नी का नाम संज्ञा है जो विश्वकर्मा की पुत्री है. संज्ञा से यम नामक पुत्र और यमुना नामक पुत्री तथा इनकी दूसरी पत्नी छाया से इनको एक महान प्रतापी पुत्र हुए जिनका नाम शनि है. इन तमाम कारणों के कारण की सूर्य की पूजा की परंपरा जो अनादि काल से चली आ रही है. आज भी निरंतर जारी है.

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