लालू के साथ आए शरद, तेजस्वी की मौजूदगी में अपनी पार्टी LJD का RJD में किया विलय

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Published : Mar 20, 2022, 5:05 PM IST

Updated : Mar 20, 2022, 7:45 PM IST

लोकतांत्रिक जनता दल का आरजेडी में विलय

पूर्व केंद्रीय शरद यादव ने अपनी पार्टी एलजेडी का आरजेडी में विलय किया (Sharad Yadav Merged His Party LJD With RJD) है. इस मौके पर उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी का आरजेडी में विलय होना इस बात को बताता है कि ये वक्त की मांग है. अभी हमारा ध्यान विपक्ष को एकजुट करना है. उसके बाद हम इसके उपर विचार किया जाएगा कि विपक्ष का नेतृत्व कौन करेगा.

नई दिल्ली/पटना: पूर्व सांसद शरद यादव (Former MP Sharad Yadav) ने लोकतांत्रिक जनता दल का आरजेडी में विलय (Lokatantrik Janata Dal Merged With RJD) कर दिया है. नेता प्रतिपक्ष तेजस्‍वी यादव (Leader of Opposition Tejashwi Yadav) की मौजूदगी में नई दिल्ली में आयोजित विलय समारोह के दौरान एलजेडी (LJD) को राष्ट्रीय जनता दल में मर्ज किया गया है. साल 2018 में जेडीयू से अलग होकर शरद यादव ने अपनी पार्टी बनाई थी. इस मौके पर उन्होंने कहा कि ये एक नई शुरुआत है. ये विलय व्यापक एकता के लिए पहला कदम है. इसमें हमने अपनी पहल कर दी है, पूरे देश के विपक्ष अगर एकजुट हो जाए तो बीजेपी को हराया जा सकता है.

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आरजेडी में एलजेडी का विलय: समाजवादी नेता शरद यादव इन दिनों अस्वस्थ चल रहे हैं. जिस वजह से वे राजनीति में बहुत अधिक सक्रिय नहीं हैं. उनकी पार्टी के नेता और कार्यकर्ता भी बहुत कम ही किसी मुद्दे पर सड़कों पर नजर आते हैं. माना जा रहा है कि वर्तमान राजनीतिक स्थिति को देखते उन्होंने ये फैसला लिया है ताकि बिखरे हुए जनता परिवार को फिर एकजुट किया जा सके. पिछले दिनों जब तेजस्वी ने उनसे दिल्ली स्थिति उनके सरकारी आवास पर मुलाकात की थी, तभी ही उन्होंने संकेत दे दिए थे कि वे आरजेडी के साथ जाने वाले हैं. तेजस्वी से मुलाकात के बाद शरद यादव ने कहा था, 'मैंने और आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव ने जो राजनीति की है, उसकी कमान हमलोगों ने अब तेजस्वी को सौंप दी है. वे ही अब हमारी विचारधारा को आगे बढ़ाएंगे. तेजस्वी ही आरजेडी के तमाम फैसले लेंगे. वे पार्टी को आगे ले जाने में पूरी तरह से सक्षम हैं.'

दिल्ली में शरद यादव से मिले लालू: इससे पहले 3 अगस्त 2021 को लालू यादव और शरद यादव की मुलाकात हुई थी. जिसके बाद कई तरह की अटकलें लगाई जा रही थी. हालांकि मीडिया से बात करने के दौरान लालू ने कहा था, 'शरद यादव पार्लियामेंट में नहीं हैं. इसके कारण संसद में उनकी कमी खल रही है. वे हर मुद्दे पर मजबूती से सरकार को घेरते थे. मैं, शरद यादव और मुलायम सिंह यादव फिर से एकजुट होने की कोशिश में लगे हुए हैं.'

2018 में नीतीश से अलग हुए थे: दरअसल नीतीश कुमार के साथ राजनीतिक मनमुटाव के चलते शरद यादव ने 2018 में जेडीयू से बगावत कर लोकतांत्रिक जनता दल नाम से अपनी अलग राजनीतिक पार्टी का गठन किया था. शरद यादव के साथ अली अनवर सहित कई बड़े नेताओं ने पार्टी छोड़ दी थी. इसके बाद शरद यादव 2019 लोकसभा चुनाव में आरजेडी के टिकट पर मधेपुरा से चुनाव भी लड़े लेकिन जेडीयू के दिनेशचंद्र यादव से एक लाख वोटों से हार गए.

2018 में बनाई थी अलग पार्टी: शरद यादव ने 2018 में नीतीश कुमार से अलग होकर लोकतांत्रिक जनता दल का गठन किया था. हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान तकनीकी कठिनाईयों की वजह से उन्होंने आरजेडी के सिंबल पर ही मधेपुरा से चुनाव लड़ा था. उनके एक अन्य साथी और पूर्व सांसद अर्जुन राय ने भी आरजेडी के सिंबल पर सीतामढ़ी से चुनाव लड़ा लेकिन दोनों को शिकस्त हाथ लगी थी. उसके बाद 2020 के विधानसभा चुनाव में मधेपुरा के बिहारीगंज विधानसभा सीट से उनकी बेटी सुभाषिनी यादव ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन उनको भी जीत नसीब नहीं हुई.

शरद का सियासी सफर: एक जुलाई 1947 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद में जन्मे शरद यादव ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत जबलपुर से की थी. जब जेपी आंदोलन अपने चरम पर था, तब उन्होंने 70 के दशक में जबलपुर उपचुनाव जीतकर पहली बार लोकसभा में प्रवेश किया. लालू प्रसाद यादव के साथ उनकी दोस्ती 1970 के दशक की है, जब आपातकाल के बाद जनता दल का गठन किया गया था. हालांकि 90 के दशक में दोनों के बीच मतभेद इतना बढ़ा कि दोनों अलग हो गए. बाद के दिनों में वे नीतीश कुमार के साथ चले गए.

जब एक-दूसरे के खिलाफ लड़े दोनों: इस बीच मधेपुरा लोकसभा सीट पर दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव भी लड़ा. 1999 में शरद ने लालू प्रसाद को करीब 30 हजार वोटों से हराया था. हालांकि, 1998 और 2004 में उनको लालू से मात भी मिल चुकी है. मधेपुरा से सबसे ज्यादा जीत का रिकॉर्ड शरद यादव के नाम है. वे यहां से चार बार सांसद चुने गए हैं. इसके अलावे वे तीन बार राज्यसभा के सदस्य भी रहे हैं. वहीं केंद्र में कैबिनेट मंत्री भी रह चुके हैं.

शरद की मदद से सीएम बने लालू: 1990 में शरद यादव की मदद से लालू प्रसाद यादव पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने थे. कहा जाता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह तब राम सुंदर दास को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे लेकिन शरद यादव और नीतीश कुमार चाहते थे कि लालू यादव मुख्यमंत्री बनें. शरद यादव ने चंद्रशेखर सिंह को इस बात के लिए मना लिया कि अगड़ी जाति से एक कैंडिडेट को खड़ा किया जाए. जिसके बाद रणनीति के तहत रघुनाथ झा को मैदान में उतारा गया और वोटों का बंटवारा हुआ. नतीजा ये हुआ कि लालू यादव 4 वोट से जीत गए.

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राज्यसभा जाना पक्का: शरद यादव ने हालांकि ऐलान किया है कि वे बिना शर्त अपनी पार्टी का आरजेडी में विलय कर रहे हैं लेकिन अनुमान लगाया जा रहा है कि आरजेडी उन्हें या उनकी बेटी को राज्यसभा भेज सकता है. शरद यादव को हाइकोर्ट ने 15 दिनों में उन्हें आवंटित सरकारी बंगला खाली करने का आदेश दे दिया है. बिहार में जुलाई महीने में राज्यसभा की पांच सीटें खाली होंगी. जिनमें दो सीटें बीजेपी, एक सीट जेडीयू के पास जाएगी. दो सीटें आरजेडी के पास आएगी. शरद यादव के राज्यसभा का कार्यकाल जुलाई माह 2022 में ही समाप्त हो रहा है. वैसे ये भी चर्चा हो रही है कि उनकी बेटी सुभाषिनी यादव को आरजेडी विधान परिषद भी भेज सकता है.

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Last Updated :Mar 20, 2022, 7:45 PM IST
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