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ईटीवी भारत से बोले पशुपति पारस- 'हमेशा अपने भाई साहब के साथ साये की तरह रहा'

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Published : Sep 4, 2021, 7:44 PM IST

Updated : Sep 30, 2021, 6:50 AM IST

ईटीवी भारत के रीजनल एडिटर सचिन शर्मा से बात करते हुए पशुपति पारस ने अंदर के कई राज खोले. उन्होंने बताया कि किस तल्खी के साथ वो चिराग से अलग हुए और आज लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) पर पूरी तरह उन्हीं का अधिकार है. आप भी इस रोमांचक और चौंकानी वाली बातचीत को सुनिए..

पशुपति पारस
पशुपति पारस

पटना: केन्द्रीय मंत्री पशुपति पारस (Pashupati Paras) ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. उन्होंने चिराग पासवान (Chirag Paswan) से लेकर सूरजभान तक हर मुद्दे पर बेबाकी से अपनी बात रखी. ईटीवी भारत के रीजनल एडिटर सचिन शर्मा ने कई तीखे प्रश्न भी किए, जिस पर भी उन्होंने अपना जवाब दिया. तो आइये जानते हैं बातचीत के पूरे अंश.

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सवाल: जातीय जनगणना पर आपकी क्या राय है ? आप पीएम मोदी के साथ है या नीतीश कुमार के साथ हैं ? क्योंकि हम सभी जानते हैं कि इस मामले में भाजपा और जदयू के बीच मतभेद हैं.

जवाब: मैं एनडीए का हिस्सा हूं. उस एनडीए के गठबंधन में हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी हैं. उसमें एक छोटे गठबंधन के रूप में हमारी पार्टी भी है, मैं भी हूं. जो मेरी राय है कि जो सर्वसम्मति से गठबंधन में फैसला होगा, उस फैसले के साथ मैं और मेरी पार्टी दोनों रहेंगे. अब समय आने दीजिए, जब भी एनडीए गठबंधन की बैठक होगी, बैठक में सर्वसम्मति से आम राय बनेगी और उसी दृष्टिकोण से जातीय जनगणना पर विचार किया जाएगा.

केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस EXCLUSIVE

सवाल: आप केंद्रीय मंत्री बनने के बाद हाजीपुर आए थे. इस दौरान आप पर स्याही फेंकी गई. इसका क्या कारण है ? क्या हाजीपुर की जनता आपसे नाराज है ?

जवाब: हाजीपुर की जनता मुझसे नाराज नहीं है. 1977 में जब हमारे बड़े भाई (रामविलास पासवान) हाजीपुर से चुनाव लड़े, गिनीज बुक में उनका नाम आया, उस समय से मैं साये की तरह उनके साथ रहा. आज भी हाजीपुर की जनता हमारे साथ है. आपने उस दिन ये तो देखा कि काला झंडा दिखाया गया और मुझ पर स्याही फेंकी गई, लेकिन आपने ये भी देखा होगा कि उस दिन हमारे साथ अपार भीड़ थी और कितने लोग थे. मैं समझता हूं कि हिंदुस्तान की राजनीति में पहली बार 5 क्विंटल की माला क्रेन से पहनाई गई. यदि वहां के लोगों की मेरे प्रति श्रद्धा नहीं होती तो ऐसा नहीं होता. विरोध करने वाले सिर्फ 4-5 लोग थे, बाकी जनसमर्थन अभी भी मेरे साथ है.

सवाल: चिराग पासवान ने आपको अपना चाचा मानने से इनकार कर दिया. वे कहते हैं कि पिता के जाने के बाद पासवान जाति पर उनकी ही पकड़ है. पासवानों ने उन्हें अपना नेता मान लिया है. लेकिन आप कहते हैं कि 'रामविलास पासवान का वास्तविक राजनीतिक उत्तराधिकारी मैं हूं, चिराग नहीं'... तो असली पकड़ किसकी है पासवानों पर ?

जवाब: भारत के संविधान के मुताबिक पिता की संपत्ति पर बेटे का अधिकार होता है. यानी रामविलास जी की संपत्ति पर उनके बेटे चिराग पासवान का अधिकार है. लेकिन राजनीतिक उत्तराधिकारी मैं हूं. 1969 में यानी आज से 52 वर्ष पहले जब स्वर्गीय पासवान जी अलौली से पहली बार विधायक बने. उसके बाद 1977 में लोकसभा के सदस्य बन गए तो वे हाजीपुर आ गए. हाजीपुर आने के बाद उन्होंने मुझे बुलाकर कहा कि पारस अलौली से चुनाव तुम्हीं जीतो, तुम्हीं मेरे उत्तराधिकारी हो सकते हो. जबकि उस समय मुझे राजनीति की उतनी समझ नहीं थी. उसके बावजूद बड़े भईया के आदेशानुसार अलौली से चुनाव लड़ा और 1977 में पहली बार विधानसभा का सदस्य बना. 1977 के बाद से 2019 तक पार्टी का काम मैं करता था. स्वर्गीय पासवान जी राज्यसभा के सदस्य बने तो 2019 में उन्होंने मुझसे हाजीपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए कहा. उस समय भी उन्होंने अपने बेटे को नहीं चुना.

सवाल: आप अपने बड़े भाई की खाली हुई कुर्सी पर आज विराजमान हैं. केन्द्र में मंत्री हैं. इसमें प्रधानमंत्री मोदी की भूमिका है या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ?

जवाब: मैं एनडीए का हिस्सा हूं. एनडीए गठबंधन में लोक जनशक्ति पार्टी के 6 सांसद हैं. लोकसभा अध्यक्ष के सामने हमने 13 जून को 5 सांसदों ने हस्ताक्षर करके उनसे आग्रह किया कि हमारी पार्टी में लोकतंत्र खत्म हो गया है और प्रजातंत्र में नेता परिवर्तन का अधिकार है. बहुमत जिसके साथ हो उसकी बात सुननी चाहिए. उन्होंने अपने सचिव को बुलाया और आदेश दिया कि इसकी जांच करो. जब चिराग पासवान ने कहा कि नीतीश कुमार को हम जेल भेज देंगे, तो मैंने इसका विरोध किया.

हमने कहा कि नीतीश कुमार अच्छे प्रशासक हैं. उन्होंने बिहार का विकास किया, लॉ एंड ऑर्डर को दुरूस्त किया. इस बात की जानकारी जब चिराग पासवान को मिली, तो वे मुझ पर आग बबूला हो गए. उन्होंने कहा कि आपने ऐसा बयान क्यों दिया कि नीतीश कुमार सुशासन बाबू हैं. मैंने कहा कि मैंने सही बयान दिया है, कोई गलत बयान नहीं दिया है. उसके बाद उन्होंने कहा कि आपको पता है कि मैं पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष हूं. मैं आपको पार्टी से 6 साल के लिए निष्कासित कर दूंगा. तब मैंने कहा कि मैं खुद लोकसभा कि सदस्यता से इस्तीफा दे दूंगा. बड़े भईया के निधन के बाद हमने महसूस किया कि हम अकेले हैं, उनके बाद पार्टी और परिवार की स्थिति बहुत ही खराब हो गई थी.

सवाल: क्या वर्चस्व की इस जंग में बीजेपी ने आपको चुन लिया है. और क्या अब आप भी अपने बड़े भाई की तरह भाजपा का साथ देंगे या भविष्य में नीतीश कुमार के साथ चले जाएंगे ?

जवाब: मैं एनडीए का हिस्सा हूं, मैं एनडीए के साथ रहूंगा. मुझे पूरा भरोसा है कि एनडीए आज भी एकजुट है और भविष्य में भी एनडीए एकजुट रहेगा. गठबंधन में लोक जनशक्ति पार्टी की भूमिका है.

सवाल: आपने गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर 'जेड प्लस' सुरक्षा की मांग की है. आखिर आपको किससे जान का खतरा पैदा हो गया है ? आप इस संबंध में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी पत्र लिख चुके हैं.

जवाब: मुझे किसी से जान का खतरा नहीं है और न ही मुझे किसी से डर है. लेकिन, जब कोई आगे बढ़ता है, उसकी लोकप्रियता में बढ़ोतरी होती है तो उसके पीछे अधिक दुश्मन पैदा हो जाते हैं. आपको याद होगा कि 2005 में मेरे खगड़िया जिले के गेस्ट हाउस को डायनमाइट लगाकर उड़ा दिया गया था. उस समय भारत सरकार के होम मिनिस्टर को मैंने पत्र लिखकर सुरक्षा की मांग की थी. गृह मंत्री ने इसकी सूचना बिहार सरकार को दी थी. जिसके बाद पासवान जी को वाई श्रेणी की सुरक्षा मिली थी. आज पासवान जी नहीं रहे, मैं उनका उत्तराधिकारी हूं और ऐसे में कुछ लोग हमारे पीछे लगे हुए हैं. साथ ही हमारे सहयोगियों को भी जान का खतरा है. मोबाइल पर मुझे गालियां दी गई हैं. इसलिए मैंने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और गृह मंत्री से सुरक्षा मांगी है.

सवाल: जहां तक मुझे जानकारी है...रामविलास पासवान ने आपसे 1977-78 में खगड़िया के अलौली से विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए कहा था और 2019 में बिहार के हाजीपुर से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए कहा. इन दोनों सीटों का प्रतिनिधित्व पहले रामविलास पासवान करते थे. मतलब पासवान आपको अपना उत्तराधिकारी मानते थे. फिर उनके निधन के बाद इतनी जद्दोजहद क्यों ?

जवाब: पार्टी के अंदर कोई जद्दोजहद नहीं हुआ है. जब कोई व्यक्ति तानाशाह बन जाए, कोई व्यक्ति निरंकुश बन जाए, तो ऐसे में हमारा संविधान और हमारी पार्टी का संविधान भी कहता है कि ऐसा होने पर पार्टी में नेतृत्व परिवर्तन की आवश्यकता है. हमारे 5 सांसदों ने जाकर लोकसभा अध्यक्ष को यही कहा कि हमारे दल में लोकतंत्र समाप्त हो रहा है. हमारे दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष तानाशाह बन रहे हैं. इसलिए संविधान के तहत आपसे गुहार लगाने आया हूं कि आप नेतृत्व परिवर्तन करें.

सवाल: 2005 में रामविलास पासवान की लोजपा ने कमाल करते हुए 29 विधानसभा सीटें अपने नाम की थीं. उस चुनाव में बड़ी संख्या में भूमिहार कैंडिडेट लोजपा के टिकट से चुनकर आए थे. अभी भी बिहार के भूमिहार वोटरों का अच्छा सपोर्ट लोजपा को मिलता है. ऐसा इसलिए क्योंकि पार्टी में सूरजभान सिंह समेत कई दिग्गज नेता भूमिहार हैं. हालांकि, अब नीतीश कुमार ने भी ललन सिंह को आगे करके आपके इस वोट बैंक में सेंधमारी की है. हालांकि ललन सिंह का नाम चाचा-भतीजे को अलग करने में भी प्रमुखता से लिया जा रहा है. सच्चाई क्या है ?

जवाब: ललन सिंह, मुझमें और भाजपा में अंतर क्या है. तीनों ही एक गठबंधन में हैं. खिचड़ी बनती है तो खिचड़ी में भी पांच यार होते हैं. इसी तरह एनडीए गठबंधन में हम लोग पांच हैं. चाहे बड़े दल हों या छोटे दल हों सभी मिलकर हम लोग पांच दल हैं. गठबंधन के हमारे पांचों साथियों की राय के साथ लोजपा और पशुपति पारस चलेंगे.

सवाल: आखिर में एक सवाल जो पूरा बिहार जानना चाहता है कि क्या रामविलास परिवार का पूरा परिवार (चिराग) आने वाले दिनों में एक होगा ? क्या कोई गुंजाइश अब भी बाकी है या सब कुछ खत्म हो चुका है ?

जवाब: देखिए, आपका जो प्रश्न है वो बहुत जटिल है और बहुत आसान भी है, दोनों चीज हैं. यदि लोग अपनी गलती को स्वीकार भविष्य में करें, प्रायश्चित करें, मंथन करें. मैं बार-बार कहता हूं, मैंने पहले भी कहा था कि चिराग मेरा बेटा है, भतीजा है और परिवार का अंग है. लेकिन, वो रास्ते से भटक गया है. वो अपनी गलती को स्वीकार करें. अगर वो परिवार और पार्टी के लिए कुछ करना चाहता हैं तो सौरभ पांडेय जैसे व्यक्ति से अलग हों. देखिए, आदमी बलवान नहीं होता है, समय बलवान होता है. समय की पुकार है, कि यदि वो अपने आप में मंथन करें कि चाचा के साथ दुर्व्यवहार क्यों किया. हम तीनों भाईयों में जो प्यार मोहब्बत थी, शायद हिन्दुस्तान में किसी परिवार में नहीं होगी. बड़े भईया के जाने के बाद मुश्किल से 15 दिन के बाद मेरा परिवार टूट गया. यदि उसका प्रायश्चित और मंथन करें, तो समय आएगा तो उस पर विचार किया जाएगा.

सवाल: आपकी पार्टी और परिवार में जो दो-फाड़ हुआ, उस समय सबसे सक्रिय सूरजभान सिंह दिखे. सूरजभान रामविलास पासवान के महत्वपूर्ण सहयोगियों में एक थे. एक समय ऐसा भी था जब सूरजभान सिंह के नाम से ही लोग कांपने लगते थे. तो क्या रामविलास पासवान की राजनीतिक विरासत का फैसला अब बाहुबलियों के दम पर होगा ?

जवाब: देखिए, सूरजभान सिंह जी बहुत अच्छे व्यक्ति हैं. स्वर्गीय राम विलास पासवान जी का बयान आपको याद होगा. उन्होंने स्वीकार किया था कि सूरजभान सिंह बाहुबली हैं, लेकिन मेरे लिए प्रिय हैं. सूरजभान सिंह में एक विशेषता है कि वे काफी मृदुभाषी हैं. कभी उन्होंने व्यक्तिगत कारणों से किसी व्यक्ति को सताया नहीं, डराया नहीं, धमकाया नहीं है. वो बहुत अच्छे इंसान हैं. उनको लोक जनशक्ति पार्टी पर पूरा विश्वास है और पार्टी को भी उन पर पूरा विश्वास है.

अब देखिए एक परिवार से तीन सांसद हुए. ये उन पर विश्वास का ही फल है. सूरजभान सिंह , उनकी पत्नी वीणा सिंह सांसद बनीं, उनके भाई चंदन सिंह भी सांसद बने. राम विलास पासवान के प्रति उनका अटूट विश्वास था. अब मैं उनका छोटा भाई हूं. मुझे भी वो छोटे भाई के रूप में मानते हैं.

बता दें कि रामविलास पासवान के छोटे भाई पशुपति पारस हमेशा अपने भाई साहब के साथ साये की तरह रहे. उनसे राजनीति सीखी और आठ बार विधायक बने. 2019 में पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए और पहले ही कार्यकाल में केन्द्रीय मंत्री भी बन गए. यह सब तब हुआ जब पासवान के निधन के तत्काल बाद परिवार में कलह का माहौल बन गया. भतीजे चिराग पासवान से अनबन के चलते चाचा पारस ने अलग रास्ता लिया और उनका साथ दिया प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने. आज पशुपति पारस ना सिर्फ रामविलास पासवान की संसदीय सीट रही हाजीपुर से सांसद हैं बल्कि केन्द्र में पासवान की जगह कैबिनेट मंत्री भी हैं. पारस के पास खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय का प्रभार है.

Last Updated :Sep 30, 2021, 6:50 AM IST
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