बिहार एनडीए में घमासान: कोआर्डिनेशन कमेटी के अभाव में नेताओं की नहीं थम रही बयानबाजी!

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Published : Jan 18, 2022, 7:37 PM IST

बिहार एनडीए में घमासान

पिछले कुछ समय से अलग-अलग मुद्दों को लेकर बिहार एनडीए में घमासान (Dispute In Bihar NDA) मचा हुआ है. बीजेपी की ओर से जेडीयू को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) की कुर्सी तक खिसक जाने की चेतावनी दी जाने लगी है. एनडीए के घटक दलों के बीच जिस तरह से जुबानी जंग चल रही है, उसके पीछे का बड़ा कारण एनडीए में कोआर्डिनेशन कमेटी (Coordination Committee in NDA) का ना होना भी माना जा रहा है. पढ़ें ये खास रिपोर्ट...

पटना: इन दिनों बिहार एनडीए में कोआर्डिनेशन कमेटी (Coordination Committee in NDA) की जरूरत महसूस होने लगी है. दरअसल, अटल बिहारी वाजपेयी के समय नेशनल डेमोक्रेटिक एलाइंस (NDA) में सभी दलों को साथ लेकर चलने के लिए कोआर्डिनेशन कमेटी बनाई गई थी. तब जेडीयू के वरिष्ठ नेता जॉर्ज फर्नांडिस को उसका संयोजक बनाया गया था, लेकिन नरेंद्र मोदी की सरकार में कोऑर्डिनेशन कमिटी का गठन नहीं किया गया. हालांकि जेडीयू की तरफ से इसको लेकर मांग होती रही. यही हाल बिहार का भी है. यहां भी शुरुआती दिनों में एनडीए में कोआर्डिनेशन कमेटी बनाई गई थी. नंदकिशोर यादव उसके संयोजक थे लेकिन बाद के दिनों में एनडीए में कोआर्डिनेशन कमेटी बनाने की बात भुला दी गई.

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बिहार में 2005 से नीतीश कुमार सत्ता में हैं और बीजेपी के साथ लंबे समय से गठबंधन है. विवादास्पद मुद्दों पर दोनों दलों के बीच सहमति बनी हुई थी लेकिन 2020 में जेडीयू को केवल 43 सीट मिली है. उसके बावजूद बीजेपी ने नीतीश को मुख्यमंत्री बनाया है. नीतीश अंकगणित के लिहाज से कमजोर हुए हैं, यह भी एक बड़ा कारण हो सकता है कि गठबंधन के अंदर बयानबाजी होती रहती है. हालांकि केवल बीजेपी के नेता ही नहीं हम अध्यक्ष जीतनराम मांझी और वीआईपी चीफ मुकेश सहनी भी लगातार बयानों से सरकार की मुश्किलें बढ़ाते रहते हैं.

पिछले कुछ महीनों की बात करें तो बिहार में जातीय जनगणना (Caste Census in Bihar), जनसंख्या नियंत्रण कानून, विशेष राज्य के दर्जे की मांग, शराबबंदी कानून की समीक्षा और अब सम्राट अशोक के मुद्दे पर जेडीयू और बीजेपी में तनातनी (Dispute Between JDU and BJP) बढ़ गई है. दोनों दलों के नेता एक-दूसरे के खिलाफ इस तरह की बयानबाजी कर रहे हैं, जितनी कि विपक्ष भी नहीं करता है.

विशेषज्ञ भी कहते हैं कि सरकार के अंदर शामिल दलों को सही मोर्चे पर ही बात रखनी चाहिए, क्योंकि खुलेआम बयानबाजी से जनता के बीच जो मैसेज आता है वह सही नहीं है. इसके लिए कोआर्डिनेशन कमेटी तो बननी ही चाहिए. अगर कोआर्डिनेशन कमेटी बनी होती तो शायद इस तरह की स्थिति पैदा नहीं होती. हम के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी महागठबंधन में जब थे, वहां भी कंडीशन कमेटी बनाने की मांग करते रहे और एनडीए में भी कोआर्डिनेशन कमेटी की मांग करते रहे हैं. एक बार फिर से उन्होंने इसकी मांग की है, ताकि विवादों का निपटारा किया जा सके.

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हालांकि, आरजेडी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी एनडीए में कोआर्डिनेशन कमेटी की मांग पर तंज कसते हुए कहते हैं कि जब कोआर्डिनेशन ही नहीं है तो कोआर्डिनेशन कमेटी क्या बनेगी. वहीं, राजनीतिक विशेषज्ञ प्रो. अजय झा का कहना है जेडीयू और बीजेपी नेताओं के बीच लंबे समय से संवादहीनता की स्थिति बनी हुई है. हाल के दिनों में जिस प्रकार से बयानबाजी हो रही है, इसमें और वृद्धि हो रही है. वे कहते हैं कि इसका एक बड़ा कारण कोआर्डिनेशन कमेटी नहीं होना भी हो सकता है. इसके साथ ही वे कहते हैं कि बीजेपी अब तक अपने दम पर बिहार में सरकार नहीं बना सकी है और नीतीश कुमार कमजोर हुए हैं, इसलिए नीतीश को असहज बनाकर रखने की उनकी कोशिश भी हो सकती है.

केंद्र में फिलहाल बीजेपी को बहुमत है. इसलिए उसे लगता है कि कोआर्डिनेशन कमेटी की जरूरत नहीं है लेकिन बिहार में एनडीए के चार घटक दलों के सहयोग से सरकार चल रही है. इसके बावजूद न तो नीतीश कुमार चाहते हैं कि कोआर्डिनेशन कमेटी बने और ना ही बीजेपी चाहती है. इसलिए जेडीयू और बीजेपी के नेता कमेटी के सवाल पर बोलने से बचते हैं.

राजनीतिक जानकार ये भी कहते हैं कि जेडीयू-बीजेपी और एनडीए के बाकी घटक दल अपने राजनीतिक फायदे के लिए नेताओं से बयानबाजी कराते हैं. पार्टी के प्रदेश स्तर तक के नेता बयानबाजी में शामिल होते हैं. हालांकि मुश्किल तब बढ़ती है, जब शीर्ष नेता की तरफ से भी बयानबाजी शुरू होती है या सोशल मीडिया का सहारा लिया जाता है.

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