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अपने संसदीय क्षेत्र में भी चिराग की पकड़ कमजोर, तारापुर में हार लोकसभा चुनाव में खड़ी कर सकती है मुश्किल

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Published : Nov 2, 2021, 4:49 PM IST

चिराग पासवान
चिराग पासवान

तारापुर और कुशेश्वरस्थान उपचुनाव (Tarapur and Kusheshwarsthan By-elections) में चिराग पासवान (Chirag Paswan) की पार्टी एलजेपी (रामविलास) का प्रदर्शन 2020 के विधानसभा चुनाव की तुलना में काफी खराब रहा है. दोनों सीटों पर पिछली बार से काफी कम वोट मिले हैं. ऐसे में न केवल पार्टी के अस्तित्व पर सवाल उठ खड़े हुए हैं, बल्कि आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर खुद उनकी सीट पर भी खतरा मंडराने लगा है.

पटना: बिहार विधानसभा की 2 सीटों पर हुए उपचुनाव का परिणाम चिराग पासवान (Chirag Paswan) के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं. कुशेश्वरस्थान सीट से जेडीयू उम्मीदवार अमन भूषण हजारी ने जीत हासिल किया है. उन्होंने आरजेडी कैंडिडेट गणेश भारती को भारी मतों से हराया है. एलजेपी (रामविलास) अपना अस्तित्व भी बचाने में असफल रही है. चिराग ने 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव की तरह ही इस बार उपचुनाव में भी अकेले चुनाव लड़ने का निर्णय लिया और उन्हें विधानसभा की तरह ही उपचुनाव में भी मुंह की खानी पड़ी है. राजनीतिक जानकार कहते हैं कि जमुई लोकसभा क्षेत्र के तहत आने वाले तारापुर विधानसभा क्षेत्र में हारना उनके सियासी भविष्य के लिए ठीक नहीं है.

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पॉलिटिकल एक्सपर्ट डॉ. संजय कुमार की मानें तो बिहार विधानसभा चुनाव में जेडीयू को डैमेज करने में चिराग पासवान की बड़ी भूमिका रही थी, लेकिन उपचुनाव में यह देखने को नहीं मिला है. जिस वजह से तेजस्वी यादव मजबूत भूमिका में दिख रहे हैं, इसमें चिराग पासवान की बड़ी अहम भूमिका है. चिराग या उनकी पार्टी जो लगातार जीत के दावे कर रहे थे, वह खोखले साबित हुए हैं. अब आने वाले समय में चिराग पासवान की मेहनत क्या रंग लाती है, यह तो समय बताएगा लेकिन लोकसभा चुनाव अब उनके लिए आसान नहीं होगा.

संजय कुमार का बयान

"तारापुर चिराग के ही लोकसभा क्षेत्र में आता है. ऐसे में उनके लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है. भविष्य में जमुई सीट पर उनके लिए दावेदारी आसान नहीं होगी. विपक्षी उम्मीदवार पूछेगा कि जब तारापुर में कुछ नहीं कर पाए तो लोकभा चुनाव में क्या कर पाएंगे"- डॉ. संजय कुमार, राजनीतिक विशेषज्ञ

दरअसल चिराग पासवान अपने संसदीय क्षेत्र की तारापुर विधानसभा सीट को बचाने में असफल रहे हैं. इससे साफ जाहिर होता है कि आगामी लोकसभा चुनाव में जमुई से चुनाव लड़ना उनके लिए मुसीबत खड़ी कर सकती है. चिराग पासवान ने 2020 के विधानसभा और 2021 में अपने चाचा पशुपति पारस से अलग होकर चुनाव लड़कर जो साबित करना चाह रहे थे, उसमें भी वह विफल रहे हैं. ऐसे में कहा जा सकता है कि चाचा पशुपति पारस उन पर बीस साबित हुए हैं.

चिराग पासवान बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान लगातार खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान बताते नहीं थकते थे. उम्मीद जताई जा रही है कि बिहार विधानसभा के उपचुनाव के परिणाम के बाद वह फिर से साथ आ सकते हैं. हालांकि चिराग पासवान ने नीतीश कुमार और उनकी पार्टी को काफी डैमेज करने की कोशिश की, लेकिन इसका उल्टा परिणाम उन्हें भी भुगतना पड़ा है. चिराग पासवान की पार्टी में पहले जहां दो विधायक हुआ करते थे, वह बिहार विधानसभा 2020 में अपनी दोनों सीट भी बचाने में असफल रहे. 2020 विधानसभा चुनाव में एलजेपी ने एक सीट जरूर हासिल की थी, लेकिन वह भी उनके नसीब में नहीं थी. नीतीश कुमार ने उन्हें भी तोड़ कर जेडीयू में शामिल करवा लिया.

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पॉलिटिकल एक्सपर्ट डॉ. संजय कुमार कहते हैं कि उपचुनाव में दोनों सीटों पर हारना चिराग पासवान के लिए भविष्य नहीं तय कर सकता है. वे कहते हैं कि राजनीति में कभी कोई मजबूत होता है तो कभी कमजोर हो जाता है. अब चिराग पासवान की मेहनत और गठबंधन पर तय होगा कि चिराग भविष्य में क्या कर सकते हैं. हालांकि बिहार विधानसभा चुनाव के बाद वे लगातार आशीर्वाद यात्रा कर रहे थे और बड़े-बड़े दावे कर रहे थे कि रामविलास पासवान का असली उत्तराधिकारी हम ही हैं, उसका असर उपचुनाव में नहीं देखने को मिला है.

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