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ये जो रोज कमाने-खाने वाले मजदूर हैं...लॉकडाउन ने छीना रोजगार, अब रोजी-रोटी का संकट

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Published : May 14, 2021, 8:06 PM IST

बिहार में कोरोना के खिलाफ जंग का असर ये भी है कि राज्यव्यापी लागू लॉकडाउन के कारण रोज कमाने-खाने वाले दिहाड़ी मजदूरों के सामने रोजी-रोटी का संकट आ गया है. वे दो जून की रोटी के लिए रोज जद्दोजहद कर रहे हैं. देखिए खास रिपोर्ट..

दिहाड़ी मजदूर
दिहाड़ी मजदूर

पटनाः कोरोना से जंग के लिए बिहार इन दिनों लॉकडाउन है. इसी डर के कारण पहले ही दूसरे प्रदेशों से लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर वापस लौट चुके हैं. घर लौटने के बाद उन्हें रोजगार की तलाश है. वहीं, लॉकडाउन के कारण रोज कमाने और खाने वाले दिहाड़ी मजदूरों की जिंदगी पर भी असर पड़ा है. लॉकडाउन में रोजगार की कमी के कारण दिहाड़ी मजदूरों के सामने खाने को भी लाले पड़े हैं.

काम के इंतजार में फुटपाथ पर बैठे दिहाड़ी मजदूर
काम के इंतजार में फुटपाथ पर बैठे दिहाड़ी मजदूर

लॉकडाउन का गहरा प्रभाव
कोरोना संक्रमण की चेन को तोड़ने के लिए बिहार सरकार ने पहले 15 मई तक राज्य में पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा की. फिर इसकी मियाद 25 मई तक बढ़ा दी. लॉकडाउन के दौरान सरकार ने निर्माण कार्य पर प्रतिबंध तो नहीं लगाया, लेकिन बावजूद इसके महामारी जैसी विकट स्थिति में निर्माण कार्य कम हो गए. इस बीच रोज-कमाने खाने वाले दिहाड़ी मजदूरों की जिंदगी पर गहरा प्रभाव पड़ा है. राजधानी पटना के चौक चौराहों पर दो वक्त की रोटी के लिए जद्दोजहद करते दिहाड़ी मजदूर आपको रोज मिल जाएंगे. ईटीवी भारत की टीम ने उनसे बातचीत की है.

पटना के चौक-चौराहों पर काम की तलाश में रोज जुटते हैं मजदूर
पटना के चौक-चौराहों पर काम की तलाश में रोज जुटते हैं मजदूर

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कोई नहीं...जो काम दे सके
दिहाड़ी मजदूरों की बात की जाए तो केवल राजधानी पटना में रोज करीब 6000 दिहाड़ी मजदूर चौक-चौराहों पर काम की तलाश में जुटते हैं. पटना जंक्शन गोलंबर, बोरिंग रोड चौराहा, सचिवालय गोलंबर, गांधी मैदान, इनकम टैक्स चौराहा, मलाही पकड़ी चौक इन्ही चौराहों में शामिल है. लेकिन काम की आस में यहां आए मजदूर इन दिनों खाली हाथ वापस लौट जा रहे हैं. फुटपाथ पर सुबह से शाम गुजर जाती है, लेकिन कोई नहीं आता जो इन्हें काम दे सके.

दिहाड़ी मजदूरों का हाल
दिहाड़ी मजदूरों का हाल

चौराहों पर जुटे मजदूरों ने ईटीवी भारत से अपना दर्द साझा करते हुए कहा कि वे यहां रोज इस आस के साथ आते हैं कि उन्हें काम मिलेगा. लेकिन जब से लॉकडाउन लगा है, काम का अभाव हो गया है. वे मायूस होकर घर लौट जाते हैं. अब उनके सामने भूखमरी जैसी नौबत आ गयी है.

सरकार के 10 किलो अनाज से क्या होगा?
मजदूरों ने दर्द साझा करते हुए बताया कि लॉकडाउन में हम तो सरकार का पूरा सहयोग कर रहे हैं, लेकिन इससे क्या हमारा पेट चलेगा? सरकार उनके परिवार को 5 से 10 किलो अनाज देती है. उनके परिवार में 5 से 6 लोग हैं. महीने का 10 किलो अनाज में परिवार का पेट कैसे भरेगा, बताइए? इस हाल में हर रोज की जिंदगी जीना दुसवार हो गया है.

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सरकार के मेगा प्लान का क्या?
बता दें कि बिहार सरकार के श्रम संसाधन विभाग ने हाल ही में वापस लौटे प्रवासी मजदूरों को अपने राज्य में ही रोजगार उपलब्ध कराने के लिए मेगा प्लान तैयार किए जाने का दावा किया था. विभाग के मंत्री जीवेश मिश्रा ने कहा था कि पंचायत स्तर पर स्किल मैपिंग कराई जा रही है. हुनरमंदों को रोजगार देने के लिए सरकार उन्हें लोन मुहैया करवाएगी. जिससे वे अपना खुद का रोजगार कर सकेंगे. मंत्री ने यहां तक बताया कि करीब 9.5 लाख मजदूरों की स्किल मैपिंग कराई जा चुकी है. सरकार उन्हें उद्यमी योजना के तहत 10 लाख तक लोन मुहैया करा रही है. काफी मशक्कत के बाद पटरी पर लौटी इन दिहाड़ी मजदूरों की जिंदगी लॉकडाउन के कारण जब बदहाल हो गई है. उनके सामने रोजी-रोटी का संकट आ गया है, उस स्थिति में लाखों की संख्या में दूसरे प्रदेशों से वापस लौटे प्रवासी मजदूरों को रोजगार देने का सरकार के दावे खोखले साबित हो रहे हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

सरकार के दावे हवा-हवाई
सरकार के दावे हवा-हवाई साबित हो रहे हैं. कुछ दिन पहने ही श्रम मंत्री जीवेश मिश्रा की ओर से ये दावा किया गया था कि मजदूरों को उनकी योग्यता के हिसाब से काम देंगे. ये दावा ऐसे समय में झूठा साबित होता है, जब बिहार लॉकडाउन हो गया है. मजदूर दो जून की रोटी के लिए सड़क पर हैं. उसे सुबह से शाम तक इंतजार और भूख के सिवा कुछ नहीं मिलता. जरूरत है सरकार ऐसे दिहाड़ी मजदूरों की तरफ भी ध्यान दे, ताकि लॉकडाउन में इनका परिवार भी भुखमरी का शिकार नहीं हो.

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