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जयंती पर विशेष: बदहाल है जेपी की कर्मभूमि मनफर गांव, आज भी मौजूद हैं उनकी कई स्मृतियां

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Published : Oct 11, 2022, 10:33 AM IST

भूदान आंदोलन के समय वर्ष 1962 में जेपी गया के बाराचट्टी प्रखंड अंतर्गत मनफर गांव (Manfar Village Of Gaya) आए थे. 1962 में वे लगातार दो महीने यहां रहे थे. इसके बाद वर्ष 1963, 64, और 65 में भी लगातार आते रहे. ऐसी कई स्मृतियां इस मनफर गांव में हैं, जो जेपी की याद को ताजा करती हैं.

बदहाल है जेपी की कर्मभूमि मनफर गांव
बदहाल है जेपी की कर्मभूमि मनफर गांव

गया: बिहार के गया का मनफर गांव लोकनायक जयप्रकाश नारायण (Lok Nayak Jai Prakash Narayan) की कर्मभूमि रही है. इस गांव में आज भी जेपी से जुड़ी कई स्मृतियां मौजूद हैं. यह गांव उन्हें आज तक नहीं भूला है. एक ओर पूरा देश आज जेपी की 120वीं जयंती मना रहा है, तो वहीं ये गांव जेपी द्वारा किए गए कामों को याद कर रहा है. जेपी ने भूदान आंदोलन के समय इस गांव के लोगों के लिए कई कार्य किए थे. जिसे लोग आज भी याद करते नहीं थकते. लेकिन यहीं गांव (Bad Condition Of JP karmbhoomi Manafar Village) आज विकास की राह देख रहा है.

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1962 में मनफर गांव गए थे जेपीः दरअसल भूदान आंदोलन के समय वर्ष 1962 में जेपी गया के बाराचट्टी प्रखंड अंतर्गत मनफर गांव आए थे. 1962 में वे लगातार दो महीने यहां रहे थे. इसके बाद वर्ष 1963, 64, और 65 में भी लगातार आते रहे. इसके बाद भी उनका इस गांव में आना जाना लगा रहा. मनफर गांव जेपी की कर्मभूमि रही है. इस गांव को उन्होंने कार्य क्षेत्र के रूप में चुना था और चतुर्दिक विकास की योजना यहीं से बनाते थे. आज भी मनफर गांव में सर्वोदय आश्रम जर्जर हालत में मौजूद है. जेपी की पहल पर बना अनुसूचित विद्यालय और उनके नाम का आहर आज भी मौजूद है.


गांव में बनवाया अनुसूचित विद्यालयः जेपी की पहल पर तत्कालीन मुख्यमंत्री केबी सहाय ने महज 7 दिनों में अनुसूचित जाति विद्यालय बनवाया था. मुख्यमंत्री केबी सहाय जब बाराचट्टी के डाकबंगला पर आए थे, तो जयप्रकाश नारायण ने 15 मार्च 1965 को अनुसूचित विद्यालय की पहल की थी. जेपी की पहल के बाद महज 7 दिनों बाद यानी 22 मार्च मार्च 1965 को विद्यालय शुरू कर दिया गया था. यहां सिंचाई के लिए बनाया गया एक आहर आज भी मौजूद है. इस आहर को लोग जयप्रकाश नारायण आहर के नाम से ही जानते हैं.

गांव में की चकबंदी की शुरुआतः इतना ही नहीं जयप्रकाश नारायण ने गांव में चकबंदी की शुरुआत की, सभी किसानों को एक-एक जोड़ा बैल दिया था. वो यहां से सर्वोदय आश्रम से चतुर्दिक विकास की योजना बनाते थे. उन्होंने मनफर की जमीन की चकबंदी की. कई कुआं का निर्माण करवाया और सिंचाई के लिए कई आहर बनवाए. आहर का निर्माण श्रमदान से किया गया था, जिसमें देश भर से श्रमदान के लिए लोग आए थे.

1974 आंदोलन में मनफर से शामिल थे 25 लोगः जेपी का 1974 का आंदोलन देश भर में उफान पर था. जेपी आंदोलन में शामिल होने मनफर गांव से 25 लोग गए थे, जिन्हें पटना के गांधी मैदान में गिरफ्तार कर लिया गया था और जेल भेजा गया था. इसमें 25 लोग जो जेल गए थे, उसमें तीन लोग आज भी जीवित हैं. मनफर गांव के गौरव सिंह भोक्ता, देवकी सिंह भोक्ता, गोवर्धन सिंह भोक्ता आज भी जीवित हैं. वे आज भी जेपी की यादों को ताजा कर भावुक हो जाते हैं, जो भूदान आंदोलन से लेकर जेपी क्रांति की कहानी सुनाते हैं.

अनुसूचित जाति विद्यालय के प्रथम छात्र है हरेंद्र सिंह भोक्ताः अनुसूचित जाति विद्यालय जब बना था, तो उसके प्रथम छात्र के रूप में हरेंद्र सिंह भोक्ता का नाम आता है. हरेंद्र सिंह भोक्ता बताते हैं कि भूदान आंदोलन के समय जेपी को बिहार का प्रभारी बनाया गया था. 1962 में मनफर को सेवा क्षेत्र के रूप में उन्होंने चुना था. मनफर में जिस कुर्सी पर वह बैठते थे, वह आज भी मौजूद है. उन्होंने गांव के विकास के लिए कई प्रयोग किए थे. वहीं चतुर्दिक विकास की योजना गांव में रहकर बनाते थे. चकबंदी को बढ़ावा दिया तो कई कुएं बनवाए. ऐसी कई स्मृतियां इस मनफर गांव में है, जो जेपी की याद को ताजा करती है.

"अनुसूचित जाति विद्यालय जेपी की पहल से बना था. आज इसमें 450 छात्र पढ़ रहे हैं और कई डॉक्टर- इंजीनियर बने. जेपी ने किसानों की खुशहाली बढाई. श्रमदान से आहर का निर्माण करवाया था, इसमें पूरे देश के लोग आए थे. जेपी जब तक जीवित रहे, कार्यकर्ता आते-जाते रहे. वे क्या गए, हर किसी का ध्यान इस ऐतिहासिक मनफर गांव से हट गया. उनके निधन के बाद कोई देखने नहीं आया"- हरेंद्र सिंह भोक्ता, अनुसूचित जाति विद्यालय के प्रथम छात्र

गांव को गोद लेने की सरकार से मांगः हरेंद्र सिंह भोक्ता ने कहा कि वो सरकार से मांग करते हैं कि वर्तमान सरकार इस गांव को गोद ले. किसानों की मदद, बेरोजगारों को रोजगार एवं शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करें, ताकि मनफर गांव की ऐतिहासिकता बरकरार रह सके. उन्होंने का कि वो लोग जेपी के आभारी हैं, जिन्होंने गांव और देश को विकास की राह दिखाई.

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