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केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे ने बक्सर में छठ घाटों का लिया जायाजा, खुद से कुदाल चलाकर किया श्रमदान

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Published : Oct 27, 2022, 2:36 PM IST

बक्सर में सांसद अश्विनी चौबे ने छठ घाटों का लिया जायाजा
बक्सर में सांसद अश्विनी चौबे ने छठ घाटों का लिया जायाजा

केंद्रीय राज्य मंत्री अश्विनी चौबे ने गंगा घाटों पर महापर्व छठ की तैयारियों (Preparation for Chhath Puja in Buxar) का जायजा लिया. छठ घाटों पर तैयारी को लेकर कई दिशा निर्देश भी दिये. पढ़ें पूरी खबर..

बक्सरः बिहार के बक्सर में लोक आस्था के महापर्व छठ की तैयारियों का जायजा लेने केंद्रीय राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे घाट पर पहुंचे. बक्सर में रामरेखा घाट सहित गंगा घाटों पर छठ महापर्व की तैयारियों का जायजा (MP Ashwini Choubey inspected Chhath Ghats in Buxar) लिया. बिजली, शौचालय सफाई, सुरक्षा, गोताखोरों की व्यवस्था, स्वास्थ्य सुविधा आदि की जानकारी ली. अधिकारियों को सभी आवश्यक कदम उठाने को निर्देशित किया.

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छठ घाट पर सांसद ने किया श्रमदानः बक्सर में लोक आस्था का महापर्व छठ को लेकर तैयारियां जोर-शोर से चल रही है. केंद्रीय मंत्री श्री चौबे ने छठ पूजा के लिए गंगा घाटों पर बनाए जा रहे पूजा स्थलों पर श्रमदान भी किया. उन्होंने खुद से कुदाल पकड़ कर घाट बनाने में अपना श्रमदान भी किया. उन्होंने कहा कि छठ लोक आस्था का महापर्व है. गंगा घाटों पर बहुत ही हर्षोल्लास के साथ छठ पर्व मनाया जाता है. प्रशासनिक स्तर पर सभी तैयारियां की जा रही हैं. व्रतियों को किसी भी तरह की परेशानी नहीं होगी. घाटों पर चाक चौबंद व्यवस्था होगी.

छठ का पौराणिक महत्व: धीरे धीरे प्रवासी भारतीयों द्वारा लोकआस्था का यह महापर्व देश में ही नहीं बल्कि विश्वभर में प्रचलित हो गया है. इस पर्व में किसी मूर्ति की नहीं बल्कि सूर्य की उपासना की जाती है और इसे छठी मईया कहा जाता है. छठ पूजा की परंपरा कैसे शुरू हुई, इस संदर्भ में कई कथाएं प्रचलित हैं. एक मान्यता के अनुसार, जब राम-सीता 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, तब रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया. सीता ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी. सप्तमी को सूर्योदय के समय फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था.

महाभारत में भी मिलता है उल्लेखः छठ को लेकर एक और कथा प्रचलित है. किवदंती के अनुसार जब पांडव सारा राजपाठ जुए में हार गए, तब द्रोपदी ने छठ व्रत रखा था. इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को सब कुछ वापस मिल गया. सूर्य की उपासना सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि अन्य कई देशों में भी होती है. लेकिन कहीं सूर्य को देवता तो कहीं देवी के रूप में पूजा जाता है. सूर्य की उपासना ऋग्वैदिक युग से ही होती रही है, जिनका ऋग्वैदिक नाम ‘सविता’ भी है. ऋग्वैदिक काल में वे जगत के चराचर जीवों की आत्मा हैं. वे सात घोड़े के रथ पर सवार रहते हैं और जगत को प्रकाशित करते हैं. वे प्रकृति के सर्वश्रेष्ठ रूप हैं. कालांतर में देशभर में उनकी पूजा प्रारंभ हुई.

कई देश करते हैं सूर्य की पूजा: भारत के साथ ही अमेरिका, जापाना सहित कई देशों में सूर्य की उपासना की जाती है. मध्य अमेरिका के लोग सूर्य को तोनातिहू के रूप में पूजते हैं. यहां माना जाता है कि सूर्य फसलों को खुशहाली देते हैं और इंसानों को जीवन. वहीं जापान में सूर्य को माता के रूप में पूजा जाता है. उन्हें संपूर्ण ब्रह्मांड की भी देवी माना गया है. जापान के होनशू द्वीप पर इनका मंदिर है.

विदेशी लोककथाओं में भी मिलता है प्रमाण: ईरान में भी सूर्य को ईश्वर माना गया है. ग्रीक और रोमन लोग मित्रदेव जिसका जिक्र हिंदू पुराणों में भी है, को सूर्य का ही प्रतीक मानते हैं. माना जाता है कि ‘मित्र’ की उत्पत्ति ब्रह्मांड में स्वयं ही एक गुफा के भीतर 25 दिसंबर को हुई और उनपर किसी का वश नहीं चलता. वहीं मिस्त्र में उगते हुए सूर्य को होरुस दोपहर के सूर्य को रा कहा जाता है. मिस्र के लोगों के अनुसार दुनिया पर रा का ही राज है और यह बाज का सिर लिए पूरी दुनिया की चौकसी और इंसान का असुरों से संरक्षण कर रहे हैं. यूनानी गाथाओं में अपोलो को ईश्वर के समकक्ष तो दर्जा दिया गया लेकिन सूर्य के रथ के साथ वो दृष्टिगोचर नहीं हुए. दूसरी ओर रोमन लोगों ने अपालो की तुलना सूर्य से की और उनकी पूजा सूर्य रूप में ही की जाने लगी.महापर्व छठ की महता के कारण लोग इससे जुड़ते चले गए. इस मौके पर बाहर काम कर रहे लोग भी अपने घर लौट आते हैं और पूरे परिवार के साथ इस महापर्व को मनाया जाता है. हर साल दिवाली से छठे दिन छठ पूजा का आयोजन होता है. इस साल भी छठ पूजा को लेकर लोगों का उत्साह चरम पर है.

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