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छठ पर टूटी धर्मों की दीवारः जानिए पूजा को लेकर भागलपुर की मुस्लिम महिलाओं ने क्यों त्यागा मांसाहार

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Published : Oct 29, 2022, 12:46 PM IST

लोक आस्था के महापर्व (Chhath Puja In Bhagalpur) के लिए हिंदू धर्म के रक्षा कवच (बद्धी) का निर्माण भागलपुर की मुस्लिम महिलाएं करती हैं. यह काम उनका पुश्तैनी है. बद्धी निर्माण करने वाली इन महिलाओं के घर में एक महीने पहले से ही मांस और लहसुन प्याज खाना वर्जित हो जाता है.

मुस्लिम बनाते हैं छठ के लिए बद्धी
मुस्लिम बनाते हैं छठ के लिए बद्धी

भागलपुरः पूरे देश में लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा (Chhath Puja 2022) की धूम है. हर जगह छठ व्रती आस्था और पवित्रता के साथ छठ पूजा के कार्यों में जुटे हैं. छठ पूजा में मुस्लिमों का योगदान भी भरपूर होता है. छठ के अवसर पर आपसी सद्भाव, भाईचारा और सौहार्द्र अगर देखना हो तो आप भागलपुर के काजीचक खरादी टोला पन्नामील जरूर आएं, क्योंकि हिंदूओं के सबसे बड़े आस्था के इस पर्व में मुस्लिम समुदाय की महिलाओं का बहुत बड़ा योगदान है. यहां के मुस्लिम परिवार की महिलाएं छठ पर्व के लिए बद्धी का निर्माण पूरी आस्था और श्रद्धा के साथ करती हैं.

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बद्धी का निर्माण करती हैं मुस्लिम महिलाएंः काजीचक खरादी टोला की रहने वाली मुस्लिम महिलाओं ने गंगा जमुनी तहजीब को चरितार्थ किया है, कहा जाता है हिंदू धर्म में बद्धी (सूत की माला) का उपयोग ऐसे प्रसाद के तौर पर होता है, जो पूरे शरीर का रक्षा कवच माना जाता है. इस सूत की माला को पूरी नेम निष्ठा और पाक साफ तरीके से तैयार करने में मुस्लिम महिलाओं का हाथ है. छठ पर्व में पवित्रता का विशेष महत्व है. जिसे मुस्लिम परिवार की महिलाएं छठ पर्व के लिए बद्धी का निर्माण करती हैं उनके घर में एक महीने पहले से ही मांस और लहसुन प्याज खाना वर्जित हो जाता है, ये लोग पाक साफ होकर हिंदू धर्म की आस्था पर विश्वास करते हुए पूरी निष्ठा से बद्दी का निर्माण करती हैं.

आस्था के अथाह सागर में लगाते हैं डुबकीः मुख्य रूप से महिलाएं इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं. सामाजिक सद्भाव और समरसता का ऐसा दूसरा उदाहरण सनातनी पर्व त्योहार में नहीं दिखता, सभी जाति संप्रदाय के लोग सिर्फ पवित्रता और समर्पित भाव से एकाकार होकर आस्था के अथाह सागर में डुबकी लगाते नजर आते हैं. यह परिवार छठ पूजा में कच्चे बांस के बने सूप पर चढ़ाने वाले बद्दी का निर्माण करते हैं, दिल्ली और कोलकाता से कच्चा माल किरची धागा मंगवा कर पूरे परिवार एक साथ छह महीने पहले से ही बद्दी निर्माण में जुट जाता है.

"पहले कच्चे माल को दिल्ली या कोलकाता से मंगाया जाता है. जिसमें धागा के रूप में किर्चि कहे जाने वाले धागे से बद्दी का निर्माण किया जाता है. महिलाएं और युवतियां मन लगाकर पाक साफ होकर इस कार्य में जुट जाती है और इसका सप्लाई भागलपुर के अलावे नवगछिया, पूर्णिया, कटिहार, समस्तीपुर, मुंगेर, बांका जैसे इलाकों में बृहद पैमाने पर किया जाता है"-आफताब आलम, करीगर



पवित्रता का रखा जाता है खास ख्यालः भागलपुर में कई ऐसे इलाके हैं जहां मुस्लिम महिलाएं सूत की माला जिसे हम बद्दी भी कहते हैं उसका निर्माण करती हैं. दर्जनों मुस्लिम परिवार की महिलाएं यह काम कई वर्षों से करती आ रही हैं, हम यह कह सकते हैं कि इनका यह काम पुश्तैनी है. ये लोग बद्दी, अनंत, डोरा, जितिया बंधन आदि का निर्माण भी करती हैं. भागलपुर के काजीचक, लोहापट्टी, हुसैनाबाद नाथनगर के तकरीबन 50 से 60 मुस्लिम परिवार महीनों छठ पूजा आने का इंतजार करते हैं. इसे बनाने के लिए लोग महीनों पहले से जुट जाते हैं. इस दौरान पवित्रता और शुद्धता का खास ख्याल रखा जाता है.

"हिंदूधर्म के सबसे बड़े आस्था के पर्व छठ के लिए बद्दी के अलावा आनंद चतुर्दशी जितिया और डोरा हम लोग वर्षों से बना रहे हैं. दादा परदादा के टाइम से बन रहा है. पवित्रता के लिए हम लोग 1 महीने पहले से मांस मछली और लहसुन प्याज खाना छोड़ देते हैं, ताकि शुद्धता पूरी तरह से बनी रहे. हमे ये काम करने में बहुत अच्छा लगता है"- बीबी यासमीन, कारीगर

क्या है छठ पूजा का महत्वः आपको बता दें कि छठ पर्व श्रद्धा और आस्था से जुड़ा पर्व है, जो व्यक्ति इस व्रत को पूरी निष्ठा और श्रद्धा से करता हैं उसकी मनोकामनाएं पूरी होती है. छठ व्रत, सुहाग, संतान, सुख-सौभाग्य और सुखमय जीवन की कामना के लिए किया जाता है. इस पर्व में सूर्य देव की उपासना का खास महत्व है. मान्यताओं के अनुसार, छठ पूजा के दौरान पूजी जाने वाली छठी मईया सूर्य देव की बहन हैं. इस व्रत में सूर्य की आराधना करने से छठ माता प्रसन्न होती हैं और आशीर्वाद देती हैं. इस व्रत में जितनी श्रद्धा से नियमों और शुद्धता का पालन किया जाएगा, छठी मैया उतना ही प्रसन्न होंगी. छठ पर विशेष रूप से बनने वाले ठेकुए को प्रसाद के रूप में जरूर चढ़ाया जाता हैं. वहीं इस चार दिवसीय छठ पूजा में कई तरह की सामग्रियों की जरूरत होती है, जिसकी तैयारी में कारीगर महीनों पहले से जुट जाते हैं.

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