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रथयात्रा से लेकर बाबरी विध्वंस तक... ये न होते तो बीजेपी का 'कल्याण' ना होता

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Published : Aug 22, 2021, 9:30 PM IST

Kalyan Singh
Kalyan Singh

बीजेपी के राजनीतिक फलक पर चमकाने में कल्याण सिंह की अहम भूमिका थी. उन्होंने मंडल कमीशन से उपजे सोशल इंजीनियरिंग के जातीय समीकरण की सारी गोलबंदी को ध्वस्त करते हुए उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार बनवाई थी. पढ़ें पूरी रिपोर्ट.

पटना: बीजेपी (BJP) के वरिष्ठ नेता कल्याण सिंह (Kalyan Singh) अनंत यात्रा पर चले गए. बीजेपी को देश के राजनीतिक फलक पर चमकाने में कल्याण सिंह की महती भूमिका रही है. अगर आज बीजेपी देश में अपने बूते सरकार बनाकर ताकत का अहसास करा रही है तो इसकी पहली कील कल्याण सिंह ने ठोकी थी.

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उन्होंने देश में मंडल कमीशन (Mandal Commission) से उपजे सोशल इंजीनियरिंग के जातीय समीकरण की सारी गोलबंदी को ध्वस्त करते हुए उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार बनवाई थी. कल्याण सिंह की देश के सबसे बड़े हिंदूवादी नेता होने की छवि बनायी गई. उसके बाद भी कल्याण सिंह ने उत्तर प्रदेश में बीजेपी की पहली और पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी.

उत्तर प्रदेश की सियासत में 24 जून 1991 को कल्याण सिंह ने जब मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, उस समय नरेंद्र मोदी उत्तर प्रदेश में ही थे लेकिन इसकी पूरी भूमिका 25 सितंबर 1990 को रखी गई थी. इसे अमलीजामा पहनाया गया 23 अक्टूबर 1990 को जब सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा पर निकले लालकृष्ण आडवाणी (BJP leader LK Advani) को बिहार में गिरफ्तार किया गया.

लालू यादव ने लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार किया और दुमका के सिंचाई विभाग के गेस्ट हाउस में 12 दिनों तक रखा. इन 12 दिनों की सियासत में बनारस के घाट से लेकर हरिद्वार तक जो कुछ हुआ, उसने उत्तर प्रदेश और बिहार की पूरी सियासत ही बदल कर रख दी थी. हालांकि यह बदलाव बिहार में इस रूप में नहीं दिखा कि बीजेपी ने बहुत बड़ा फायदा पा लिया हो लेकिन उत्तर प्रदेश में इसका परिणाम तो तुरंत ही आ गया.

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जेपी आंदोलन के बाद देश जिस राजनीतिक हालात में बंटा था, उसमें कई ऐसे नेता थे जो सोशल इंजीनियरिंग की बदौलत गद्दी पर काबिज हो गए थे. दिल्ली की सल्तनत चलाने के लिए मजबूत मुद्दे की जरूरत थी और इसकी तलाश को लेकर एक भटकाव भी चल रहा था.

देश में मंडल कमीशन वी पी सिंह ने लागू किया. 25 सितंबर 1990 को वी पी सिंह ने मंडल कमीशन लागू कर दिया. यही वह तारीख थी जिस दिन लालकृष्ण आडवाणी ने संकल्प किया कि 25 सितंबर से सोमनाथ से अयोध्या तक की यात्रा पर रहेंगे. 30 अक्टूबर को अयोध्या में भूमि पूजन होगा. यात्रा शुरू हुई और जब बिहार पहुंची वहीं से पूरी सियासत ने यू-टर्न ले लिया.

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लालू यादव ने 23 अक्टूबर 1990 को लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार करवाया तो कार सेवकों का जो जत्था जा रहा था, उसे विश्व हिंदू परिषद और स्वयंसेवक संघ ने जो हवा दिया, वह 29 अक्टूबर 1990 को अयोध्या में हुए गोलीकांड को इतिहास बना गया. कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश में इतनी मजबूत छवि के साथ खड़े थे कि जो रथयात्रा बिहार में रुकी थी, उसे कल्याण सिंह ने ऐसी हवा दी की पूरी मुलायम सरकार ही उखड़ गई.

इस पूरी लड़ाई की पटकथा निर्मोही अखाड़े के उस मुकदमे से है जो 1959 में दायर किया गया था. मुकदमा चलता रहा. 1984 में मुद्दा और बड़ा इसलिए भी हुआ कि कांग्रेस ने हस्तक्षेप किया. कल्याण सिंह 1985 में जब सदन फिर पहुंचे तब तक उनकी हिंदूवादी छवि इतनी मजबूत हो चुकी थी विश्व हिंदू परिषद और भाजपा के लिए लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) के बाद वह देश में चेहरा बन चुके थे.

उत्तर प्रदेश की सियासत दिल्ली को सत्ता देती है और बिहार उसके लिए रास्ता तय करती है. इन दोनों पर बीजेपी ने मजबूती से कदम बढ़ा दिया था. कहा तो यह भी जाता है कि लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा को रिसीव करने के लिए बिहार की सीमा पर खुद कल्याण सिंह जाने वाले थे लेकिन सुरक्षा कारणों से उन्हें जाने ही नहीं दिया गया. जब लालकृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी हो गई, उसके बाद उत्तर प्रदेश की सियासत ने एक दूसरी करवट ले ली.

बिहार की गद्दी पर लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) काबिज थे और उत्तर प्रदेश की गद्दी पर मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) ने संभाला था. उत्तर प्रदेश में हिंदू कट्टरवादी छवि ने राजनीति को ऐसी हवा दी कि पूरा मुलायम का कुनबा ही बिखर गया. इसके पीछे अगर किसी एक व्यक्ति का दिमाग था तो वह थे कल्याण सिंह. हालांकि उसमें भी बिहार की बड़ी भूमिका इसलिए भी रही कि आज के समय में मंदिर निर्माण समिति में जो लोग भी बिहार से हैं, वे सभी उत्तर प्रदेश में सियासी जमीन को मजबूत करने में लगे हुए थे.

कल्याण सिंह ने उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार दी तो सियासत में चर्चा शुरू हो गई अब जाति की जकड़न टूट जाएगी. सिर्फ जाति की बात करके कोई भी राजनीतिक दल गद्दी नहीं पा सकता. कल्याण सिंह ने इसे देश के फलक पर उत्तर प्रदेश जीतकर स्थापित कर दिया था. यहां से ही बीजेपी ने पूरे देश में भगवा एजेंडे को ऐसा रंग दिया कि नरेंद्र मोदी आज उस के सबसे बड़े खेवनहार हो गए हैं.

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उस समय की राजनीति में यही लग रहा था कि बीजेपी कट्टर हिंदूवादी छवि लेकर पूरे देश में चलेगी. इसका फायदा होगा या नुकसान, बीजेपी उस समय नहीं तय कर पाई थी लेकिन यह भी तय है कि 2014 के चुनाव में नरेंद्र मोदी ने जो जीत हासिल की उसमें सिर्फ जाति मुद्दा नहीं था. जो भी चीजें मुद्दे में थीं उसमें बीजेपी की एक वह कट्टरवादी छवि जरूर थी जो 1991 में 24 जून को कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री बनाकर स्थापित की थी.

समस्तीपुर में रोकी गई रथ यात्रा और आडवाणी की गिरफ्तारी ने कल्याण सिंह की ताजपोशी सुनिश्चित कर दी थी क्योंकि मंडल कमीशन की पूरी भूमिका बिहार में लालू के नेतृत्व में तय हुई थी. जब आडवाणी बिहार से निकलकर यूपी पहुंचे तो बीजेपी की झोली में कल्याण सिंह ने जीत की गद्दी डाल दी थी. यह आज बीजेपी के लिए मंत्र भी है और उनके वार रूम में शोध का यह विषय भी कि कल्याण सिंह की सियासत ने बीजेपी को जो दिशा दी थी, उस दिशा को लेकर बीजेपी आज पहुंची कहां तक है.

कल्याण सिंह अनंत यात्रा पर चले गए हैं और अपने पीछे राजनीति की एक बड़ी कहानी लिख गये हैं. बीजेपी उसका अनुकरण भी कर रही है. यही वजह है कि जब कल्याण सिंह नाराज हुए तो उन्हें मनाकर लाया भी गया और यह मान लिया गया कि कल्याण सिंह की राजनीति उत्तर प्रदेश के लिए जरूरी है. अब जरुरत तो बीजेपी को तय करना है की जो राह कल्याण सिंह ने दिखाए हैं, उस पर कहां तक वे जाएंगे लेकिन एक बात तो साफ है कि आज की बीजेपी जिस रूप में चमक रही है, उस नींव की एक मजबूत धुरी कल्याण सिंह भी थे.

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