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बिहार में अब लीची के गुठली से बने चारे से मछलियां होंगी स्वस्थ

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Published : Jun 3, 2022, 10:54 AM IST

बिहार की रसभरी लीची से किसान दोहरा लाभ उठा सकते हैं. इसका गुठली मछलियों के स्वास्थ्य के लिए काफी अच्छा माना गया है. आगे पढ़ें पूरी खबर...

Litchi Seed
Litchi Seed

पटना: बिहार की चर्चित लीची (Litchi In Bihar) अब किसानों को दोहरा लाभ देने वाली है. लीची के फल के आलावा अब उसके बीज के भी दाम मिलेंगे. यह संभव हुआ है राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के शोध की सफलता के कारण, जिन्होंने लीची की गुठली से मछलियों के लिए चारा बनाने में सफलता पाई (Litchi Seed will make fish healthy) है. उत्तर बिहार में मत्स्य पालन में काफी वृद्धि हुई है. इससे मछली चारे की मांग के साथ कीमत भी बढ़ी है. दाम कम होने के साथ पौष्टिक चारा मछली पालकों को उपलब्ध हो, इसके लिए डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के कुलपति डॉ. आर सी श्रीवास्तव के निर्देश पर अनुसंधान की शुरुआत की गई थी.

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इस शोध को करने वाले मत्स्यकी महाविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. शिवेंद्र कुमार का कहना है कि यह चारा काफी पोषक है. उन्होंने बताया कि लीची के बीज में करीब पांच फीसदी प्रोटीन और वसा की मात्रा 1.5 फीसदी रहती है. डॉ. शिवेंद्र के अनुसार मछली को प्रोटीन की ज्यादा जरूरत होती है. उसके चारे में इसकी मात्रा 28 से 30 फीसद होनी चाहिए. यही कारण है कि अभी मछलियों के लिए जो चारा बनाया जा रहा, उसमें 40 से 50 फीसद राइस ब्रान होता है.

''इसमें प्रोटीन की मात्रा 10-12 फीसद होती है. अनुसंधान के दौरान राइस ब्रान की मात्रा 10 फीसद कम कर उसकी जगह लीची के बीज का उपयोग किया गया. इससे बना चारा जब मछली को दिया गया तो उसकी ग्रोथ में कोई अंतर नहीं आया रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ी. डॉ. शिवेंद्र कहते हैं कि लीची के बीज में कुछ ऐसे तत्व भी हैं जो मछली को मरने के बाद ज्यादा देर तक सड़न या खराब होने से बचाते हैं. इस पर अभी अनुसंधान चल रहा है.''- डॉ. शिवेंद्र कुमार, एसोसिएट प्रोफेसर, मत्स्यकी महाविद्यालय

आम तौर पर, लीची के बीज और छिलकों को बेकार माना जाता है जिससे कई पर्यावरणीय समस्याएं पैदा होता है. बीजों और छिलके में पोषक तत्वों की उपलब्धता के बारे में प्रारंभिक जानकारी के साथ, इस कचरे को एक उपयोगी उत्पाद 'अपशिष्ट से धन' में बदलने के लिए उपयुक्त माना गया. शिवेंद्र बताते हैं कि लीची के बीज और छिलके की संरचना के विश्लेषण के बाद, लीची बीज भोजन और लीची छिलका भोजन अकेले या मछली फीड में संयोजन में पाचन क्षमता और इष्टतम स्तर का अध्ययन करने के लिए मत्स्य पालन ढोली कॉलेज की गीली प्रयोगशाला में पांच अलग-अलग प्रयोग किए गए थे.

अंतिम अनुशंसित लीची अपशिष्ट (लीची बीज और छिलका) आधारित मछली फीड का परीक्षण कॉलेज के तालाबों के साथ-साथ पांच अलग-अलग किसानों के तालाबों में तालाब आधारित मछली पालन प्रणाली में वाणिज्यिक फीड के तौर पर किया गया था. उन्होंने बताया कि 15 प्रतिशत लीची के छिलके का खल (एलपीएम) और 5 प्रतिशत लीची के बीज का खल (एलएसएम) को विकास और पोषक तत्वों के उपयोग से समझौता किए बिना रोहू (लाबियो रोहिता) के आहार में 20 फीसदी चावल की भूसी और मक्का को बदलने के लिए इष्टतम अनुपात के रूप में पाया गया.

डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर के प्रोफेसर एस के सिंह बताते हैं कि लीची के कचरे को फिश फीड सामग्री के रूप में शामिल करने के बारे में यह पहली रिपोर्ट है और साथ ही प्रस्तावित फिश फीड की लागत उपलब्ध वाणिज्यिक फीड की तुलना में 3.00 रुपये से कम है.

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