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बिहार सिपाही भर्ती परीक्षा के एक अभ्यर्थी की याचिका पर SC का बड़ा फैसला, दिया ये निर्देश

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 2, 2024, 10:50 PM IST

बिहार सिपाही भर्ती परीक्षा के एक अभ्यर्थी की याचिका पर सुनवाई करते हुए मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने अभ्यर्थी के पक्ष में फैसला सुनाया और राज्य सरकार को आदेश दिया कि याचिकाकर्ता को भर्ती परीक्षा में सफल उम्मीदवार माना जाए और नियुक्ति पत्र जारी किया जाए. पढ़ें पूरी खबर..

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नई दिल्ली : बिहार सिपाही भर्ती परीक्षा के एक अभ्यर्थी की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उसके पक्ष में फैसला सुनाया है और बिहार सरकार को उसे भर्ती प्रक्रिया में सफल उम्मीदवार मानने का निर्देश दिया है. दरअसल, बिहार के धियोधा गांव के रहने वाले वशिष्ठ नारायण कुमार ने पुलिस कांस्टेबल की भर्ती के लिए ऑनलाइन आवेदन में अपनी जन्मतिथि (डीओबी) दर्ज करते समय अनजाने में गलती कर दी.

ऑनलाइन फार्म भरने में जन्मतिथि लिखने में हुई थी गलती : 2017 में उन्होंने पकरीबरावां में एक साइबर कैफे संचालक की सहायता से ऑनलाइन आवेदन किया था. 11 जून, 2018 को अंतिम परिणामों में वशिष्ठ भर्ती प्रक्रिया में सफल होने के बाद भी सिर्फ एक तकनीकी गलती के कारण नौकरी पाने से वंचित रह गए. 26 वर्षीय वशिष्ठ कुमार राहत पाने के लिए दर-दर भटकते रहे और एक लंबी और कठिन कानूनी लड़ाई लड़ी.

कोर्ट ने राज्य सरकार को लगाई फटकार : मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तकनीकी बदलाव हो जाने पर न्याय को छोड़ा नहीं जा सकता. साथ ही बिहार सरकार को निर्देश दिया कि वह केंद्रीय चयन बोर्ड और (कांस्टेबल भर्ती), पटना, द्वारा 2017 में जारी विज्ञापन के तहत आयोजित चयन प्रक्रिया में कुमार को जन्मतिथि 18 दिसंबर 1997 के साथ "उत्तीर्ण" उम्मीदवार के रूप में माना जाए. न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि “इस मामले में, अपीलकर्ता ने चयन प्रक्रिया में भाग लिया है और सभी चरणों को सफलतापूर्वक पार कर लिया है. आवेदन में जो त्रुटि है, वह मामूली है, जिसका चयन प्रक्रिया से कोई लेना देना नहीं है. राज्य के लिए इसे तिल का ताड़ बनाना उचित नहीं था.''

साइबर कैफे की गलती को बताया मामूली : पीठ की ओर से फैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति विश्वनाथन ने कहा कि शायद साइबर कैफे का माहौल अपीलकर्ता पर हावी हो गया. यही कारण था कि “उन्होंने त्रुटि पर ध्यान देना छोड़ दिया और प्रस्तावित सुधारात्मक तंत्र का लाभ भी नहीं उठा सके. पीठ ने प्रिंस जयबीर सिंह बनाम भारत संघ और अन्य (2021) का हवाला देते हुए कहा कि इस अदालत ने सही कहा है कि तकनीक एक महान प्रवर्तक है, लेकिन साथ ही, एक डिजिटल विभाजक भी है.

राज्य सरकार ने तर्क दिया था कि कई उम्मीदवारों ने एक से अधिक स्थानों पर आवेदन किया था. इसलिए एक से अधिक जिलों या क्षेत्रों में चयन प्रक्रिया का लाभ लेने के लिए जन्म तिथि में जानबूझकर बदलाव किया गया होगा. इस पर पीठ ने कहा कि यदि ऐसा कोई उपकरण या तरकीब अपनाई गई होती तो राज्य आसानी से इसका पता लगा लेता और उसे अदालत के समक्ष रख देता. “यह एक छोटी सी गलती है जो वास्तविक और प्रामाणिक गलती प्रतीत होती है. इसके लिए अपीलकर्ता को दंडित करना अन्याय होगा”.

राज्य सरकार ने लाभ लेने के लिए जानबूझकर बदलाव की दी दलील : वहीं राज्य ने तर्क दिया था कि निर्देशों में स्पष्ट रूप से निर्धारित किया गया है कि यदि दो या दो से अधिक उम्मीदवार शारीरिक पात्रता परीक्षा में समान अंक प्राप्त करते हैं, तो अंतिम मेरिट सूची में उनकी सापेक्ष रैंक उनकी जन्म तिथि के आधार पर निर्धारित की जा सकती है. अत: अदालत से आग्रह किया कि ऐसा न किया जाए और याचिकाकर्ता को कोई राहत न दें, याचिकाकर्ता से फॉर्म भरते समय अनजाने में हुई गलती से अपनी जन्मतिथि "18.12.1997" के बजाय "08.12.1997" दर्ज कर दी.

वशिष्ठ नारायण को नियुक्ति पत्र देने का निर्देश : शीर्ष अदालत ने कहा कि वशिष्ठ नारायण कुमार को इससे किसी भी तरह से कोई लाभ नहीं मिला, क्योंकि उन्होंने पात्रता मानदंड और आयु की आवश्यकता को पूरा किया था. कुमार ने प्रतिवादियों को चयन के लिए उनके दावे पर विचार करने के लिए राहत देने की मांग की थी और उन्हें जन्मतिथि 18.12.1997 मानते हुए एक नियुक्ति पत्र जारी करने का आग्रह किया था. जैसा कि उनके शैक्षिक प्रमाणपत्रों में दर्शाया गया है.

पहले पटना हाईकोर्ट में भी गया था मामला : प्रतिवादियों ने रिट याचिका का पुरजोर विरोध किया. उनका कहना था कि विज्ञापन में स्पष्ट रूप से यह निर्धारित किया गया था कि उम्मीदवारों को अपने 10वीं बोर्ड प्रमाणपत्र के अनुसार अपनी जन्मतिथि का सही उल्लेख करना चाहिए. यदि जानकारी के मिलान के दौरान कोई विसंगति पाई गई तो उम्मीदवारी रद्द कर दी जाएगी. पटना उच्च न्यायालय के एक एकल न्यायाधीश ने विज्ञापन में सुधार के प्रावधान सहित खंडों का उल्लेख करने के बाद कहा था कि चूंकि गलत जानकारी प्रदान की गई थी, इसलिए कोई राहत नहीं दी जा सकती.

पटना हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती : वशिष्ठ नारायण कुमार ने उच्च न्यायालय की खंडपीठ में लेटर पेटेंट अपील दायर की, जिसे खारिज कर दिया गया. खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश के आदेश की पुष्टि करते हुए अतिरिक्त निष्कर्ष भी दर्ज की है कि अपीलकर्ता ने 11 जून, 2018 को वेबसाइट पर घोषित परिणाम को रद्द करने की मांग नहीं की थी. कुमार ने उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया. शीर्ष अदालत ने कहा कि जिस पृष्ठभूमि में त्रुटि हुई, उस पर विचार करते हुए, "हम रद्दीकरण को रद्द करने के इच्छुक हैं".

हाईकोर्ट के निष्कर्ष से प्रभावित नहीं हुआ शीर्ष अदालत : शीर्ष अदालत ने कहा कि वह खंडपीठ के इस निष्कर्ष से प्रभावित नहीं है कि वेब पर घोषित परिणामों को रद्द करने की कोई मांग नहीं की गई थी. “रिट याचिका में प्रार्थना खंड को पढ़ने से संकेत मिलता है कि अपीलकर्ता ने आग्रह किया था. जिसमें प्रतिवादियों को उसकी जन्म तिथि 18.12.1997 मानते हुए उम्मीदवारी पर विचार करने का निर्देश दिया गया था और एक नियुक्ति पत्र जारी करने के लिए निर्देश भी मांगा था.

"तकनीकी पहलुओं में बदलाव के आधार पर न्याय को छोड़ा नहीं जा सकता. शीर्ष अदालत ने खंडपीठ के फैसले को रद्द कर दिया और बिहार सरकार को निर्देश दिया कि वह चयन प्रक्रिया में कुमार को "उत्तीर्ण" उम्मीदवार के रूप में माने".- न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन , सुप्रीम कोर्ट

चार सप्ताह के अंदर आदेश का अनुपालन का निर्देश : न्यायमूर्ति विश्वनाथन ने कहा कि “हम आगे निर्देश देते हैं कि रिक्ति न होने की स्थिति में भी इस मामले के विशेष तथ्यों पर नियुक्ति पत्र जारी करना होगा. हम भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए उक्त निर्देश देते हैं. हम आगे निर्देश देते हैं कि राज्य उस स्थिति में अगली भर्ती में रिक्ति को समायोजित करने के लिए स्वतंत्र होगा, जिसका वे आने वाले वर्षों में सहारा ले सकते हैं”. पीठ ने कहा, उसके आदेश का अनुपालन चार सप्ताह की अवधि के भीतर किया जाना चाहिए.

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