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रिसर्च में खुलासा: युवाओं की तरह बच्चे भी अपने फिगर को लेकर चिंतित, सोशल मीडिया का पड़ रहा प्रभाव

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 24, 2024, 5:46 PM IST

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वैज्ञानिक शोध से सामने आया है कि सोशल मीडिया के कारण युवा और बच्चे सबसे ज्यादा डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं. ऐसे ही किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) में फिगर पर हुए शोध में भी सोशल मीडिया का प्रभाव बच्चों और युवाओं पर देखने को मिला है. देखें पूरी खबर...

केजीएमयू में हुई रिसर्च की जानकारी साझा करते मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. पवन कुमार गुप्ता.

लखनऊ : किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) के मनोरोग विभाग में एक रिसर्च हुआ है. जिसमें यह देखा गया कि 1200 लोगों में करीब 800 से अधिक लोग अपने फिगर को लेकर स्ट्रेस में रहते हैं. इसमें न महिलाएं पीछे हैं और न ही पुरुष. दोनों की बराबरी की भागीदारी है. हर महिला अच्छे फिगर के साथ सुंदर दिखना चाहती है. वहीं, हर पुरुष हैंडसम दिखने की चाह रखता है. केजीएमयू के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. विवेक अग्रवाल ने इस पर शोध किया है. उनके शोध के मुताबिक रोजाना विभाग में आने वाले करीब 90 मरीजों को स्ट्रेस सिर्फ इसलिए है, क्योंकि उनका शरीर फैल रहा है. इसमें बच्चे भी शामिल हैं.

केजीएमयू में हुई रिसर्च की जानकारी.
केजीएमयू में हुई रिसर्च की जानकारी.

सोशल मीडिया से पनप रहा रोग : केजीएमयू के मनोरोग विभाग के डॉ. पवन कुमार गुप्ता ने बताया कि सोशल मीडिया के दौर में हर कोई सुंदर दिखना चाहते हैं. चाहे लड़का हो या लड़की हर कोई सोशल मीडिया में मिलने वाले लाइक कमेंट और व्यू से अपने आप को जज करते हैं. बच्चे बहुत कम उम्र में मोबाइल से फैमिलियर हो जाते हैं और अधिक से अधिक समय मोबाइल पर बिता रहे हैं. उन्हें मोबाइल की भारी लत लग चुकी है. ऐसे में अपने आप को फिट रखने या दूसरों से कंपेयर करते हैं. बॉडी इमेज डिसऑर्डर और सोशल मीडिया के बीच में बहुत अंतर नहीं है. क्योंकि यह दोनों आपस में कोरिलेट कर रहे हैं. वर्तमान समय में युवा अधिक से अधिक समय सोशल मीडिया पर बिताते हैं. दूसरों की लाइफ स्टाइल को देखते हैं. इस लाइफस्टाइल को अपने जीवन में शामिल करना चाहते हैं.

केजीएमयू में रिसर्च.
केजीएमयू में रिसर्च.


सोशल मीडिया बढ़ा रहा एंजायटी का स्तर : डॉ. पवन कुमार गुप्ता के अनुसार जब भी कोई किशोर यहां आते हैं तो वह कभी यह नहीं बताते हैं कि वह अपने अंदर क्या कमी महसूस कर रहे हैं. वह हमेशा सिर्फ एक वजह बताते हैं कि उन्हें एंजायटी हो रही है, घबराहट हो रही है, बेचैनी हो रही है या फिर दम घुट रहा है. जब इस तरह के कारण बताते हैं तो जाहिर सी बात है कि मरीज के दिमाग में कोई बात चल रही है. जिसके बारें में लगातार वह सोच रहा है. लगातार सोचने से एंजायटी होती है. यह सारी चीजें मरीज के दिमाग में अमूमन सोशल मीडिया का इस्तेमाल से आती है.

डिप्रेशन के कारण : डॉ. गुप्ता ने बताया कि गोरखपुर का रहने वाला 17 साल का एक लड़का केजीएमयू के मनोरोग विभाग में आया था. उसने अपने बारे में झिझकते हुए बताया कि बहुत डिप्रेशन हो रही है. बहुत अकेलापन फील कर रहा हूं. जब काउंसिलिंग शुरू की गई तो पता चला कि वह अपने आप में ही खामियां देखता है. उसे अपनी कद-काठी पसंद नहीं है. उसे अपने बाल भी पसंद नहीं. कुल मिलाकर वह अपने आप को गुड लुकिंग नहीं मानता था और यही उसके डिप्रेशन का कारण था. फिलहाल काउंसिलिंग की जा रही है और इलाज चल रहा है.

दूसरे की बात सुनकर डिप्रेशन के हो रहे शिकारः डॉ. पवन कुमार गुप्ता ने कहा कि इसी तरह एक और के सामने आया था. जिसमें लड़के की उम्र 16 साल थी. वह 12वीं कक्षा का स्टूडेंट था और उसे हर कोई बोलता था कि वह सुंदर नहीं है और बहुत मोटा है. यह बात उसके मन में बैठ गई. इसके बाद वह दूसरों की फोटो को सोशल मीडिया पर देखता और अपने आप को हमेशा डिमोटिवेट करने लगा. मन में तमाम तरह की कहानी खुद ही पिरोने लगा. जब तनाव में आकर वह परेशान होने लगा उस समय वह विभाग में आया और अपने तनाव के बारे में बताया. काउंसिलिंग में यही बात सामने आई कि वह सोशल मीडिया का इस्तेमाल बहुत अधिक कर रहा है. अपने दोस्तों और सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर को देखकर उनसे अपने आप को कोरिलेट कर रहे हैं.

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