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आंख में गिरे तिनके को निकाल रोशनी बांट रहे नंदलाल, PGI से निराश लौटे लोगों को भी पहुंचा चुके हैं राहत - Nandlal removing straw from eyes - NANDLAL REMOVING STRAW FROM EYES

करसोग के नंदलाल पिछले 43 सालों से लोगों की आंखों से घास के तिनके, रेत, धूल कण को निकालने का काम कर रहे हैं. इस काम के लिए नंदलाल कोई फीस भी नहीं लेते. रोजाना दर्जनों लोग उनके पास आंखों से कचरा निकलवाने आते हैं.

महिला की आंख से कचरा निकालते नंदलाल
महिला की आंख से कचरा निकालते नंदलाल (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Sep 30, 2024, 5:37 PM IST

Updated : Sep 30, 2024, 9:58 PM IST

करसोग: ये आंखें ही हैं जिनके कारण हम संसार के रंगों और सुंदरता का आनंद लेते हैं. आंखें इतनी नाजुक होती हैं कि बाल बराबर भी तिनका इनके भीतर चला जाए तो असहनीय पीड़ा और आंखों की लौ जाने की नौबत आ जाती है. करसोग में एक निरक्षर व्यक्ति नंदलाल को परमात्मा ने ऐसा हुनर दिया है कि वो आंख में पड़े किसी भी तिनके को अपनी हस्त विद्या के जरिए फट से बाहर निकाल देते हैं, जिस कारण नंदलाल के पास दूर दूर से लोग आंखों से कचरा निकलवाने के लिए आते हैं. कोई उनके पास से निराश वापस नहीं लौटता है.

यहां तक कि जिन मरीजों को आज तक चंडीगढ PGI से भी आराम नहीं मिला उन्हें भी नंदलाल ने अपने हाथों के हुनर से ठीक किया है. वो पिछले करीब 43 सालों से काम जरूरी कामों को छोड़कर लोगों की आंखों से घास, कचरा और किसी भी तरह के कणों को बाहर निकालने के लिए मानवता की सेवा के इस पुनीत कार्य में जुटे हैं. इस काम के लिए नंदलाल लोगों से एक भी पैसा नहीं लेते हैं.

18 साल की उम्र में सीख लिया था हुनर

मूल माहुनाग के रहने वाले नंदलाल ने 18 साल की उम्र में आंखों के अंदर से किसी भी तरह के तिनके सहित अन्य धूल और मिट्टी के कणों को पल भर में बाहर निकालने का हुनर सीखा था. नंदलाल ने बताया कि, वो आंखों के अंदर घुसे पुराने से पुराने तिनके या गहराई तक गए अन्य किसी भी तरह के कण को बाहर निकाल देते हैं. चुराग की रहने वाली एक महिला सरोज ने बताया कि, 'कुछ साल पहले बेटे की आंख में एक तिनका घुस गया था, जिसको इलाज के लिए PGI तक ले जाया गया, लेकिन इलाज पर लाखों रुपए खर्च करने पर भी कोई लाभ नहीं हुआ. इसके बाद वो बेटे को नंदलाल के पास लेकर आई. इसके बाद नंदलाल बेटे की आंखों से घास का तिनका निकाल दिया.'

बरसात खत्म होने के बाद आते हैं अधिक लोग

नंदलाल ने बताया कि, 'बरसात का सीजन खत्म होने के बाद उनके पास आंखों की समस्या लेकर अधिक लोग आते हैं, क्योंकि बरसात खत्म होने के बाद घासनियों में कटाई का दौर शुरू होता है. घास कटाई के दौरान महिलाओं के आंखों में घास के तिनके, दूसरे प्रकार का कचरा चला जाता है. बच्चों की आंखों में खेलते समय भी रेत भी चलता जाता है. इसके अलावा सेब के बगीचों में खरपतवार हटाते समय लोगों की आंखों में भी रेत के कण चले जाते हैं. ये भारी और सफेद होने के कारण आसानी से नजर नहीं आते हैं इसके चलते इन्हें निकालने में कठिनाई होती है. इन्हें निकालना मुश्किल होता है. बरसात खत्म होने के बाद रोजाना उनके पास 10 से 12 लोग आंखों की इस तरह की समस्या लेकर आते हैं. उनका उपचार करने का वो कोई पैसा नहीं लेते. वो आंखों से घास के तिनके, गुम्मर, रेत के कण और अन्य किसी भी प्रकार का कचरा निकाल देते हैं'

पैसा लिया तो, छिन जाएगा हुनर
नंदलाल ने कहा कि, 'आंखों से घास निकालने का हुनर माहुनाग आए एक बाबा ने सिखाया था. बाबा तीन दिन तक मेरे घर पर रुके थे. उस वक्त मेरी उम्र करीब 18 साल थी. बाबा ने मुझे आंखों से घास, कचरा, धूल कण निकालने और छोटे बच्चों की बीमारी को जड़ी बूटी से ठीक करने का हुनर सिखाया था. बाबा ने उन्हें बिना पैसे के ही लोगों की सेवा करते रहने को कहा था. उस दिन के बाद से वो बिना पैसे लिए ही लोगों की सेवा करते आ रहे हैं. वो आंखों से कचरा निकालने के लिए पहाड़ी घास जिसे लोकल भाषा में (जूब) कहा जाता है उसका इस्तेमाल करते हैं. इस जूब के सहारे वो आंखों के अंदर गहराई तक घुसे किसी भी तिनके को बाहर निकाल देते हैं.'

ये भी पढ़ें: लगभग 5000 पितरों का श्राद्ध करेंगे शांतनु, तीन दशकों से लावारिस लाशों का कर रहे अंतिम संस्कार

करसोग: ये आंखें ही हैं जिनके कारण हम संसार के रंगों और सुंदरता का आनंद लेते हैं. आंखें इतनी नाजुक होती हैं कि बाल बराबर भी तिनका इनके भीतर चला जाए तो असहनीय पीड़ा और आंखों की लौ जाने की नौबत आ जाती है. करसोग में एक निरक्षर व्यक्ति नंदलाल को परमात्मा ने ऐसा हुनर दिया है कि वो आंख में पड़े किसी भी तिनके को अपनी हस्त विद्या के जरिए फट से बाहर निकाल देते हैं, जिस कारण नंदलाल के पास दूर दूर से लोग आंखों से कचरा निकलवाने के लिए आते हैं. कोई उनके पास से निराश वापस नहीं लौटता है.

यहां तक कि जिन मरीजों को आज तक चंडीगढ PGI से भी आराम नहीं मिला उन्हें भी नंदलाल ने अपने हाथों के हुनर से ठीक किया है. वो पिछले करीब 43 सालों से काम जरूरी कामों को छोड़कर लोगों की आंखों से घास, कचरा और किसी भी तरह के कणों को बाहर निकालने के लिए मानवता की सेवा के इस पुनीत कार्य में जुटे हैं. इस काम के लिए नंदलाल लोगों से एक भी पैसा नहीं लेते हैं.

18 साल की उम्र में सीख लिया था हुनर

मूल माहुनाग के रहने वाले नंदलाल ने 18 साल की उम्र में आंखों के अंदर से किसी भी तरह के तिनके सहित अन्य धूल और मिट्टी के कणों को पल भर में बाहर निकालने का हुनर सीखा था. नंदलाल ने बताया कि, वो आंखों के अंदर घुसे पुराने से पुराने तिनके या गहराई तक गए अन्य किसी भी तरह के कण को बाहर निकाल देते हैं. चुराग की रहने वाली एक महिला सरोज ने बताया कि, 'कुछ साल पहले बेटे की आंख में एक तिनका घुस गया था, जिसको इलाज के लिए PGI तक ले जाया गया, लेकिन इलाज पर लाखों रुपए खर्च करने पर भी कोई लाभ नहीं हुआ. इसके बाद वो बेटे को नंदलाल के पास लेकर आई. इसके बाद नंदलाल बेटे की आंखों से घास का तिनका निकाल दिया.'

बरसात खत्म होने के बाद आते हैं अधिक लोग

नंदलाल ने बताया कि, 'बरसात का सीजन खत्म होने के बाद उनके पास आंखों की समस्या लेकर अधिक लोग आते हैं, क्योंकि बरसात खत्म होने के बाद घासनियों में कटाई का दौर शुरू होता है. घास कटाई के दौरान महिलाओं के आंखों में घास के तिनके, दूसरे प्रकार का कचरा चला जाता है. बच्चों की आंखों में खेलते समय भी रेत भी चलता जाता है. इसके अलावा सेब के बगीचों में खरपतवार हटाते समय लोगों की आंखों में भी रेत के कण चले जाते हैं. ये भारी और सफेद होने के कारण आसानी से नजर नहीं आते हैं इसके चलते इन्हें निकालने में कठिनाई होती है. इन्हें निकालना मुश्किल होता है. बरसात खत्म होने के बाद रोजाना उनके पास 10 से 12 लोग आंखों की इस तरह की समस्या लेकर आते हैं. उनका उपचार करने का वो कोई पैसा नहीं लेते. वो आंखों से घास के तिनके, गुम्मर, रेत के कण और अन्य किसी भी प्रकार का कचरा निकाल देते हैं'

पैसा लिया तो, छिन जाएगा हुनर
नंदलाल ने कहा कि, 'आंखों से घास निकालने का हुनर माहुनाग आए एक बाबा ने सिखाया था. बाबा तीन दिन तक मेरे घर पर रुके थे. उस वक्त मेरी उम्र करीब 18 साल थी. बाबा ने मुझे आंखों से घास, कचरा, धूल कण निकालने और छोटे बच्चों की बीमारी को जड़ी बूटी से ठीक करने का हुनर सिखाया था. बाबा ने उन्हें बिना पैसे के ही लोगों की सेवा करते रहने को कहा था. उस दिन के बाद से वो बिना पैसे लिए ही लोगों की सेवा करते आ रहे हैं. वो आंखों से कचरा निकालने के लिए पहाड़ी घास जिसे लोकल भाषा में (जूब) कहा जाता है उसका इस्तेमाल करते हैं. इस जूब के सहारे वो आंखों के अंदर गहराई तक घुसे किसी भी तिनके को बाहर निकाल देते हैं.'

ये भी पढ़ें: लगभग 5000 पितरों का श्राद्ध करेंगे शांतनु, तीन दशकों से लावारिस लाशों का कर रहे अंतिम संस्कार

Last Updated : Sep 30, 2024, 9:58 PM IST
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