शिमला: आज परिवहन का क्षेत्र काफी व्यापक हो गया है. आजकल सिर्फ बस, ट्रेन या हवाई जहाज ही यात्रा का जरिया नहीं है. कई नए माध्यम आज दुनियाभर में लोगों की यात्रा को सुगम बना रहे हैं. खासकर पहाड़ी राज्यों में परिवहन हमेशा से ही एक चुनौती रहा है. पर्यटन सीजन के दौरान हिल स्टेशन की सड़कों पर रेंगती गाड़ियों के दृश्य अब आम हो चले हैं. पहाड़ों पर परिवहन सेवा को विस्तार देने के लिए ही भारत सरकार की एक ऐसी योजना चल रही है जो पहाड़ों पर यात्रा को और भी सुगम बनाएगा. इस योजना का नाम है पर्वतमाला योजना.
क्या है पर्वतमाला योजना ?
पर्वतमाला योजना का लक्ष्य इन क्षेत्रों में पर्यटन को बढ़ावा देना, शहरी क्षेत्रों में सड़कों पर यातायात ट्रैफिक के बोझ को कम करना साथ ही चीन के साथ लगती सीमाओं पर लॉजिस्टिक स्पोर्ट को मजबूत करना है. पहाड़ी राज्यों और भीड़ भाड़ वाले शहरों में परिवहन सेवा को मजबूत करने करने के लिए भारत सरकार ने पर्वतमाला योजना शुरू की थी. चिन्हित राज्यों और शहरों में इस योजना के तहत रोपवे का निर्माण किया जा रहा है, ताकि पर्वतीय राज्यों में आवागमन को आसान बनाया जा सके. पर्वतमाला योजना के तहत उन क्षेत्रों में रोपवे का निर्माण होगा, जहां सड़क निर्माण मुश्किल है या असंभव है. पर्वतमाला परियोजना के जरिए भारत पहाड़ी राज्यों के साथ चीन के साथ सीमाओं में परिवहन संसाधनों को मजबूत करने में जुटा है.
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National Ropeways Development Programme to be taken up in PPP mode, the aim is to improve connectivity, besides promoting #Tourism
— PIB India (@PIB_India) February 1, 2022
Construction of 8 ropeway projects for 60 km to be awarded in 2022-23
- FM @nsitharaman #AatmaNirbharBharatKaBudget #Budget2022 pic.twitter.com/7fW1Ju9K8i
यह योजना वर्तमान में उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, जम्मू और कश्मीर और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में शुरू की की गई है. पर्वतमाला परियोजना या राष्ट्रीय रोपवे विकास कार्यक्रम इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट का हिस्सा है. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2022-23 के केंद्रीय बजट में पहाड़ी क्षेत्रों में कनेक्टिविटी में सुधार के लिए राष्ट्रीय रोपवे विकास कार्यक्रम – पर्वतमाला की घोषणा की थी. पर्वतमाला को पीपीपी मोड पर संचालित किया जा रहा है. फरवरी 2021 में भारत सरकार (व्यवसाय का आवंटन) नियम 1961 में संशोधन किया गया, जिससे सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय को कुछ और अधिकार दिए गए, जिसने सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय को रोपवे और वैकल्पिक गतिशीलता समाधानों के विकास की देखभाल करने में भी सक्षम बनाया.
पर्वतमाला के तहत बनेंगी 200 नई रोपवे परियोजनाएं
पर्वतमाला योजना दुनिया की सबसे बड़ी रोपवे परियोजना है. इसका लक्ष्य लक्ष्य 2030 तक पांच वर्षों में पीपीपी मोड में ₹1,250 बिलियन खर्च कर 1,200 किलोमीटर से अधिक के क्षेत्र को कवर करने वाली 200 नई रोपवे परियोजनाओं को बनाना है. 2022-23 के बजट में वित्त मंत्री ने ये घोषणा की थी कि 60 किलोमीटर लंबाई की 8 रोपवे परियोजनाओं के लिए अनुबंध किए जाएंगे. 24 मार्च 2023 को पर्वतमाला योजना के तहत पीएम मोदी ने देश की पहली शहरी रोपवे परियोजना का शिलान्यास किया था. वाराणसी कैंटोनमेंट और गोदौलिया चौक के बीच 3.75 किलोमीटर लंबी रोपवे प्रणाली में पांच स्टेशन होंगे. हिमाचल में भी बिजली महादेव रोपवे, तारादेवी-शिमला रोपवे का निर्माण भी पर्वतमाला योजना के तहत किया जाएगा.
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उत्तराखंड में बनेंगे सबसे अधिक रोपवे
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी के एक पूर्व बयान के अनुसार, 'रोपवे विकास के प्रस्तावों के बाद, पर्वतमाला योजना के तहत विचार के लिए विभिन्न राज्य सरकारों ने कुल 256 रोपवे परियोजनाओं का प्रस्ताव रखा था. इसमें उत्तराखंड में 49, हिमाचल प्रदेश में पांच और जम्मू-कश्मीर में 18 परियोजनाएं शामिल हैं.'
पर्वतमाला के तहत बनने वाले कुछ रोपवे
पर्वतमाला के तहत जम्मू कश्मीर में शिवखोड़ी, वैष्णोदेवी रोपवे, उत्तराखंड में हेमकुंड, केदारनाथ, हेमकुंड रोपवे, हरियाणा का धौसी रोपवे, मध्य प्रदेश में महाकाल और ग्वालियर रोपवे, कर्नाटक का नंदी हिल्स रोपवे शामिल हैं. ये रोपवे पीपीपी मोड पर बनेंगे.
रोपवे के फायदे
- किफायती परिवहन का माध्यम
रोपवे परिवहन का किफायती माध्यम है. इसके निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहण की लागत भी कम होती है. सड़क मार्ग की अपेक्षा रोपवे के निर्माण की लागत अधिक होती है इसके बाद भी रोपवे परियोजनाओं की निर्माण लागत रोड की तुलना में अधिक किफायती हो सकती है. पहाड़ी क्षेत्रों और भीड़ भाड़ वाले इलाकों में सड़क निर्माण काफी मुश्किल होता है. इसलिए ये योजना इन इलाकों में गेमचेंजर हो सकती है.
- रोपवे निर्माण पर्यावरण हितैषी
रोपवे के निर्माण के लिए पहाड़ों, पेड़ों की कटिंग की जरूरत नहीं पड़ती है. साथ ही निर्माण के समय धूल, मिट्टी जैसे पर्यावरण प्रदूषकों का खतरा भी कम होता है. साथ ही ये परंपरागत ईंधन जैसे डीजल, पेट्रोल का भी उपयोग इनमे नहीं होता है.
- समय की बचत
रोप-वे हवाई मार्ग से जाते हैं, और सीधी लाइन में बनते हैं, इसलिए पहाड़ों पर दूरी कम हो जाती है. इसलिए समय की बचत होगी. इसके अलावा नदियों, इमारतों, खाई, सड़कों जैसी बाधाओं को आसानी से पार कर सकती है।
पर्वतीय क्षेत्रों की सुरक्षा और विकास को धार
भारत की पड़ोसी देश चीन के साथ 3,488 किमी लंबी सीमा लगती है, चीन से सटे भारत के सभी राज्य हिल एरिया में आते हैं. चीन सीमा पर अपना इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित कर रहा है. इसके चलते भारत के इन पर्वतीय राज्यों में चीन के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा साझा करने के चलते कई तरीके की सुरक्षा और उससे जुड़ी कई अन्य चुनौतियां हैं. ऐसे में यहां भारत का लॉजिस्टक स्पोर्ट सिस्टम का मजबूत होना जरूरी है.